भज गोविन्दम्(Bhaja Govindam) जगद्गुरु आदि शंकराचार्य द्वारा लिखा गया था। इसे मोह मुद्गर(Moha Mudgara) नाम से भी जाना जाता है। भज गोविन्दम् आदि शंकराचार्य की छोटी रचनाओं में से एक है। यद्यपि यह भजन के रूप में गाया जाता है, परन्तु इसमें वेदांत का सार शामिल है और यह मनुष्य को यह सोचने के लिए प्रेरित करता है कि मैं यहाँ इस जीवन में क्यों हूं? मैं धन, परिवार क्यों जमा कर रहा हूं, लेकिन शांति नहीं है ? सत्य क्या है ? जीवन का उद्देश्य क्या है ? इस प्रकार जाग्रत व्यक्ति आंतरिक मार्ग के पथ पर चलकर ईश्वर को जान सकता है।
Bhaj Govindam Hindi Arth-भज गोविन्दम् का हिंदी अर्थ
भज गोविन्दम् भज गोविन्दम्, गोविन्दं भज मूढ़मते।
संप्राप्ते सन्निहिते काले, नहि नहि रक्षति डुकृङ्करणे॥1॥
हे मूर्ख बुद्धि वाले (मोह से ग्रसित), गोविंद को भजो, गोविंद को भजो, गोविंद को भजो क्योंकि अंत समय निकट होने पर में व्याकरण के नियम तुम्हारी रक्षा नहीं कर सकते हैं॥1॥
मूढ़ जहीहि धनागमतृष्णाम्, कुरु सद्बुद्धिमं मनसि वितृष्णाम्।
यल्लभसे निजकर्मोपात्तम्, वित्तं तेन विनोदय चित्तं॥2॥
हे मूर्ख बुद्धि वाले! धन एकत्रित करने के लोभ लोभ का त्याग करो। अपने मन से समस्त कामनाओं को त्याग कर, मन को सत्य की खोज में लगाओ। अपने परिश्रम(कर्म से) से जो धन प्राप्त हो उससे ही अपने मन को प्रसन्न रखो॥2॥
नारीस्तनभरनाभीदेशम्, दृष्ट्वा मागा मोहावेशम्।
एतन्मान्सवसादिविकारम्, मनसि विचिन्तय वारं वारम्॥3॥
स्त्री के स्तन और नाभि आदि अंगों पर मोहित होकर आसक्त मत हो। अपने मन में निरंतर स्मरण करो कि ये मांस-वसा आदि के विकार(रूपांतरण अर्थात ये मांस का ही रूप है) के अतिरिक्त कुछ और नहीं हैं॥3॥
नलिनीदलगतजलमतितरलम्, तद्वज्जीवितमतिशयचपलम्।
विद्धि व्याध्यभिमानग्रस्तं, लोकं शोकहतं च समस्तम्॥4॥
मनुष्य का जीवन कमल-पत्र पर पड़ी हुई पानी की बूंदों के समान अनिश्चित एवं अल्प (क्षणभंगुर) है। यह जान लो कि यह समस्त संसार व्याधि(रोग), अहंकार और दु:ख में डूबा हुआ है॥4॥
यावद्वित्तोपार्जनसक्त:, तावन्निजपरिवारो रक्तः।
पश्चाज्जीवति जर्जरदेहे, वार्तां कोऽपि न पृच्छति गेहे॥5॥