Devi Parvati Ki Stuti-सीता जी द्वारा देवी पार्वतीजी की स्तुति
पार्वती जी यह स्तुति गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित श्री रामचरितमानस के बालकाण्ड से ली गई है। सीता जी धनुषयज्ञ के पहले गौरी पूजन के लिए बाग में गई थीं। सीता जी श्री राम को देखने के पश्चात उन्हें पति रूप में पाने के लिए गौरी(पार्वती जी) का निम्न स्तुति द्वारा पूजन किया।
Devi Parvati Ki Stuti Jai Jai Girivar Raj Kishori -सीता जी द्वारा देवी पार्वतीजी की स्तुति
जय जय गिरिबरराज किसोरी । जय महेस मुख चंद चकोरी।।
जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनी दुति गाता।।
नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।।
भव भव बिभव पराभव करिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।।
पतिदेवता सुतीय महुँ मातु प्रथम तव रेख।
महिमा अमित न सकहिं कहि सहस सारदा सेष।।
सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरि।।
देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।।
मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबही कें।।
कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।।
बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसि माल मूरति मुसुकानी।।
सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरी हरषु हियँ भरेऊ।।
सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।।
नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।।
मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुन्दर साँवरो।
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो।।
एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली।
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली।।
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे।।
Devi Parvati Ki Stuti Hindi Meaning-देवी पार्वतीजी स्तुति का अर्थ
जय जय गिरिबरराज किसोरी । जय महेस मुख चंद चकोरी।।
जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनी दुति गाता।।
हे पर्वतराज हिमाचल की पुत्री आपकी जय हो, जय हो। महादेव के मुखरूपी चन्द्रमा को देखनेवाली चकोरी आपकी जय हो। हे बिजली सी कांति से युक्त शरीर वाली जगतजननी, हे हाथी के मुख वाले गणेश जी और षड्मुख वाले कार्तिकेय जी की माता आपकी जय हो।
नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।।
भव भव बिभव पराभव करिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।।
हे माता न आपका आरम्भ है, न मध्य है और न अंत है। आपके असीम प्रभाव को वेद भी नहीं जानते। आप संसार को उत्पन्न करनेवाली, पालन करनेवाली और नाश करनेवाली हैं। आप विश्व को मोहित करनेवाली हैं और स्वतंत्र रूप से विहार करनेवाली हैं।
पतिदेवता सुतीय महुँ मातु प्रथम तव रेख।
महिमा अमित न सकहिं कहि सहस सारदा सेष।।
पति को इष्टदेव माननेवाली श्रेष्ठ नारियों में हे माता आपकी प्रथम गणना है। आपकी अपार महिमा को हजारों सरस्वती और शेष जी भी नहीं कह सकते।
सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरि।।
देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।।
हे वर देने वाली त्रिपुरारी(त्रिपुर के शत्रु) शिव की पत्नी, आपकी सेवा से चारों फल(धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष) सुलभ हो जाते हैं। हे देवि ! आपके चरणकमलों की पूजा करके देवता, मनुष्य और मुनि सभी सुखी हो जाते हैं।
मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबही कें।।
कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।।
मेरे मनोरथ को आप भलीभाँति जानती हैं क्योंकि आप सदा सबके हृदय रुपी नगरी में रहती हैं। इसी कारण मैं उसको प्रकट नहीं कर रही, यह कहकर सीताजी ने उनके चरण पकड़ लिये।
बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसि माल मूरति मुसुकानी।।
सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरी हरषु हियँ भरेऊ।।
भगवती पार्वती सीताजी के विनय और प्रेम के वश में हो गयीं, उनके गले से माला खिसक के गिर गयी और उनकी मूर्ति मुस्कुरायी। माता पार्वती का हृदय हर्ष से भर गया और वे बोलीं
सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।।
नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।।
माता पार्वती का हृदय हर्ष से भर गया और वे बोलीं – “हे सीता ! मेरी सच्ची आशीष सुनो, तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी। नारदजी का वचन सदा पवित्र और सत्य है।
मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुन्दर साँवरो।
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो।।
जो वर तुम्हारे हृदय में बसा है वही वर तुम्हे मिलेगा। जिसमें तुम्हारा मन अनुरक्त हो गया है वही स्वाभाव से सुन्दर, साँवला वर तुम्हें मिलेगा। वह दया से पूर्ण और सर्वज्ञ है, तुम्हारे शील और स्नेह को जनता है।”
एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली।
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली।।
इस प्रकार गौरी जी का आशीर्वाद सुनकर जानकीजी सहित सभी सखियाँ हर्षित हुईं। तुलसीदासजी कहते हैं भवानी जी को बार-बार पूजकर सीताजी प्रसन्न मन से राजमहल को लौट चलीं।
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे।।
गौरी जी को अनुकूल जानकर सीताजी को जो हर्ष हुआ वह कहा नहीं जा सकता। सुन्दर मङ्गलों के सहित उनके वाम अंग फड़कने लगे।
Devi Parvati Ki Stuti Jai Jai Girivar Raj Kishori Lyrics
देवी पार्वतीजी की स्तुति
Devi Parvati Ki Stuti Ke Labh-देवी पार्वतीजी की स्तुति के लाभ
कुंवारी युवतियां यह स्तुति मनचाहा वर प्राप्त करने के लिए कर सकती हैं। इस स्तुति द्वारा सच्चे मन से भगवती पार्वती का पूजन करने से योग्य वर की प्राप्ति होती है और माँ भगवती की कृपा प्राप्त होती है।
जिन कुंवारी कन्याओं के विवाह नहीं हो पा रहा हो उन्हें भी श्रद्धापूर्वक इस स्तुति द्वारा पार्वती जी का पूजन करने से अच्छे वर की प्राप्ति होती है।