हनुमान जी के द्वादश नाम(Hanuman Dwadash Naam Stotra) का रोज जप करने से हनुमान जी की कृपा प्राप्त होती है तथा इस जीवन रुपी युद्ध में विषम परिस्थितियों का सामना करने की शक्ति प्राप्त होती है। यह हनुमान द्वादश नाम स्तोत्र अत्यंत शक्तिशाली और हनुमान जी की कृपा प्राप्त करने का आसान साधन है। अतः इसका रोजाना हनुमान चालीसा के साथ पाठ अवश्य करें।
- Hanuman Dwadash Naam Stotra Lyrics-हनुमान द्वादश नाम स्तोत्र हनुमानञ्जनसूनुर्वायुपुत्रो महाबलः
- हनुमान द्वादश नाम स्तोत्र हिंदी अर्थ-Hanuman Dwadash Naam Stotra Hindi Arth
- Hanuman ji 12 Names-हनुमानजी के द्वादश (12) नाम
- Hanuman Dwadash Naam Stotra Lyrics-हनुमान द्वादश नाम स्तोत्र
- Hanuman Dwadash Naam Stotra Importance-हनुमान द्वादश नाम स्तोत्र की महिमा
Hanuman Dwadash Naam Stotra Lyrics-हनुमान द्वादश नाम स्तोत्र हनुमानञ्जनसूनुर्वायुपुत्रो महाबलः
हनुमानञ्जनसूनुर्वायुपुत्रो महाबलः ।
रामेष्टः फाल्गुनसखः पिङ्गाक्षोऽमितविक्रमः ॥१॥
उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशनः ।
लक्ष्मणप्राणदाताश्च दशग्रीवस्य दर्पहा ॥२॥
एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मनः ।
स्वापकाले प्रबोधे च यात्रा काले च यः पठेत् ॥३॥
तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भवेत् ।
राजद्वारे गह्वरे च भयं नास्ति कदाचन ॥४॥
हनुमान द्वादश नाम स्तोत्र हिंदी अर्थ-Hanuman Dwadash Naam Stotra Hindi Arth
हनुमानञ्जनसूनुर्वायुपुत्रो महाबलः ।
रामेष्टः फाल्गुनसखः पिङ्गाक्षोऽमितविक्रमः ॥१॥
हनुमान, अंजना सुनु(देवी अंजना के पुत्र), वायु पुत्र(वायु देव के पुत्र), महाबला(जो महा बलशाली हैं), रामेष्ट (राम जिनके इष्ट हैं), फाल्गुनसखा(अर्जुन के मित्र), पिङ्गाक्ष(भूरे नेत्रों वाले), अमित विक्रम (जिनका साहस असीम है)
उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशनः ।
लक्ष्मणप्राणदाताश्च दशग्रीवस्य दर्पहा ॥२॥
उदधिक्रमणः (जिन्होंने समुद्र पार किया है), सीताशोक विनाशनः (देवी सीता के शोक का अंत करने वाले), लक्ष्मण प्राणदाता(संजीविनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी के प्राणों की रक्षा करने वाले), दशग्रीव दर्पहा (दस सर वाले अर्थात रावण के घमंड को खतम करने वाले)।
एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मनः ।
स्वापकाले प्रबोधे च यात्रा काले च यः पठेत् ॥३॥
कपीन्द्र(जो कापियों में सर्वश्रेष्ठ हैं) और जो महात्मा हैं यह द्वादश नाम हैं। जो सोते समय, जागते समय और यात्रा के समय इन्हें पढ़ता है।
तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भवेत् ।
राजद्वारे गह्वरे च भयं नास्ति कदाचन ॥४॥
उसे किसी का भय नहीं होता, चाहे वह राजा के महल में हो या युद्ध क्षेत्र में, उसके सभी भय समाप्त हो जाते हैं और वह युद्ध क्षेत्र(संसार रूपी युद्ध में) में विजयी होता है।