Madhurashtakam(मधुराष्टकम्), भगवान कृष्ण को समर्पित संस्कृत भाषा में अत्यंत कर्णप्रिय अष्टकम है, जो हिंदू भक्ति संत वल्लभाचार्य द्वारा रचित है। वल्लभाचार्य एक तेलुगु ब्राह्मण थे जिन्होंने पुष्टिमार्ग का प्रचार किया, जो कृष्ण की भक्ति और सेवा पर जोर देता है। पौराणिक कथा के अनुसार, जब श्रावण शुक्ल एकादशी की आधी रात को कृष्ण स्वयं वल्लभाचार्य के सामने प्रकट हुए, तो उन्होंने ने श्री कृष्ण की स्तुति में मधुराष्टकम् की रचना की।
मधुराष्टकं का पाठ श्री कृष्ण की कृपा प्राप्त करने के लिए और जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर किया जा सकता है। जिनके इष्ट श्री कृष्ण है वह इसका नित्य पाठ करके उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
Madhurashtakam Adhram Madhuram Lyrics-मधुराष्टकम्
अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरम् ।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।।१।।
वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरं ।
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥२॥
वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥३॥
गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरं ।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥४॥
करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं रमणं मधुरं ।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥५॥
गुञ्जा मधुरा माला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा ।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥६॥
गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरं।
दृष्टं मधुरं सृष्टं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥७॥
गोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा ।
दलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥८॥
Madhurashtakam Adhram Madhuram Hindi Arth-मधुराष्टकम् हिंदी अर्थ
अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरम् ।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।।१।।
आपके होठ मधुर, मुख मधुर है, आंखें मधुर हैं, हास्य मधुर है. हृदय मधुर है, गति भी गति मधुर है हे।हे मधुराधिपति आपका सब कुछ मधुर है।
वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरं ।
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥२॥
आपके वचन मधुर हैं, चरित्र मधुर हैं, वस्त्र मधुर हैं, अंगभंगी मुद्रा मधुर है। चाल मधुर है , आपकी माया भी अति मधुर है। हे मधुराधिपति आपका सब कुछ मधुर है।
वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥३॥
आपकी बांसुरी मधुर है, चरण की धूल मधुर है, करकमल मधुर है, चरण मधुर है। आपका नृत्य मधुर है, मित्रता भी अति मधुर है। हे मधुराधिपति आपका सब कुछ मधुर है।
गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरं ।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥४॥
आपका गीत मधुर है, पान मधुर है, भोजन मधुर है, शयन मधुर है। आपका रूप मधुर है, तिलक भी अति मधुर है. हे मधुराधिपति आपका सब कुछ मधुर है।
करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं रमणं मधुरं ।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥५॥
आपका कार्य मधुर है, तैरना मधुर है, हरण मधुर है, रमण मधुर है, उद्धार मधुर है और शांति भी अति मधुर है। हे मधुराधिपति आपका सब कुछ मधुर है।
गुञ्जा मधुरा माला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा ।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥६॥
आपकी गुंजा मधुर है, माला मधुर है, यमुना मधुर है, उसकी तरंगें मधुर हैं, उसका जल मधुर है और कमल भी मधुर है। हे मधुराधिपति आपका सब कुछ मधुर है।