भक्ति मार्ग में भक्ति के कई रूप हैं विशेषतः कृष्ण भक्ति मार्ग में। कोई भक्त अपने आराध्य को कभी सखा रूप में पूजता है तो कोई स्वामी के रूप में। गोपियां उन्हें अपने प्रियतम के रूप में पूजती हैं। कृष्ण भक्ति का एक अन्य सरल रूप है अपने आराध्य को अपने बच्चे के समान प्यार करना।ऐसे भक्त श्री कृष्ण के बाल रूप का ध्यान करते हैं और उनकी भक्ति में लीन रहते हैं।बाल मुकुंदष्टकम(Bala Mukundashtakam) श्री कृष्ण के बाल स्वरुप पर आधारित अष्टकं(आठ श्लोक का) है। यह भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप के दिव्य रूप, गुणों और मधुर लीलाओं का गुणगान करती है।
Bala Mukundashtakam Hindi Meaning–बाल मुकुंदष्टकम हिंदी अर्थ
करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम् ।
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥१॥
वट वृक्ष के पत्तो पर विश्राम करते हुए, कमल के समान कोमल पैरो को, कमल के समान हस्त से पकड़कर, अपने कमलरूपी मुख में धारण किया है, मैं उन सुन्दर बाल स्वरुप भगवान श्री कृष्ण को मन में धारण करता हूं।
संहृत्य लोकान् वटपत्रमध्ये शयानमाद्यन्तविहीनरूपम् ।
सर्वेश्वरं सर्वहितावतारं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥२॥
समस्त लोक(सृष्टि को बड़ (वट) के पत्तों में बाँधने वाले हैं, जो इसके मध्य में अपने आदि अंत से रहित रूप में विश्राम करते हैं।श्री कृष्ण जो सबके स्वामी हैं, और जिनका यह अवतार सभी लोगों के संताप को दूर करने और हित के लिए है। मैं उन सुन्दर बाल स्वरुप भगवान श्री कृष्ण को मन में धारण करता हूं।
इन्दीवरश्यामलकोमलाङ्गं इन्द्रादिदेवार्चितपादपद्मम् ।
सन्तानकल्पद्रुममाश्रितानां बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥३॥
जो बाल कृष्ण नीले कोमल कमल के समान और कोमल अंगों वाले हैं। जिनके चरण कमलों की पूजा इंद्र और अन्य देवताओं के द्वारा की जाती है। जिनकी शरण में आने वाला हर कोई अपनी इच्छाओं को कल्पतरु की भांति पाता है, ( जैसे कल्पतरु से समस्त इच्छाएं पूर्ण होती हैं), श्री कृष्ण के चरण कमल में आश्रय पा लेने से समस्त कामनाएं पूर्ण होती हैं। मैं उन सुन्दर बाल स्वरुप भगवान श्री कृष्ण को मन में धारण करता हूं।
लंबालकं लंवितहारयष्टिं शृङ्गारलीलाङ्कितदन्तपङ्क्तिम् ।
बिंबाधरं चारुविशालनेत्रं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥४॥
जिनके लम्बे और घुंघराले बाल हैं,जो श्री कृष्ण गले में एक लम्बा हार धारण किये हैं। जिनके दांत एक पंक्ति में शोभित हैं जो प्रेम उत्पन्न करते हैं। जिनके होंठ बिम्ब फल की भाँती हैं,जिनके नयन सुन्दर और विशाल हैं। मैं उन सुन्दर बाल स्वरुप भगवान श्री कृष्ण को मन में धारण करता हूं।
शिक्ये निधायाद्य पयोदधीनि बहिर्गतायां व्रजनायिकायाम् ।
भुक्त्वा यथेष्टं कपटेन सुप्तं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥५॥
बाल कृष्ण मधानी में से दूध और दही को चुराते हैं, जब बृज की गोपिकाएं घर से बाहर चली जाती हैं। दही माखन खाने के बाद वे निंद्रा में होना प्रदर्शित करते हैं। मैं उन सुन्दर बाल स्वरुप भगवान श्री कृष्ण को मन में धारण करता हूं।
कलिन्दजान्तस्थितकालियस्य फणाग्ररङ्गे नटनप्रियन्तम् ।
तत्पुच्छहस्तं शरदिन्दुवक्त्रं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥६॥
जिन्होंने यमुना के किनारे रहने वाले कालिया नाग के फ़न पर सवार होकर आनंदित होकर नृत्य किया जो यमुना कलिंद पहाड़ से निकलती हैं, कालिया की पूँछ को बाल कृष्ण में पकड़ कर घुमा मारा तब उनका मुख शरद के चाँद जैसा शोभित हो रहा है। मैं उन सुन्दर बाल स्वरुप भगवान श्री कृष्ण को मन में धारण करता हूं।
उलुखले बद्धमुदारशौर्यं उत्तुङ्गयुग्मार्जुनभङ्गलीलम् ।
उत्फुल्लपद्मायतचारुनेत्रं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥७॥
जिनको उनकी माता के द्वारा लकड़ी की ओंखली के साथ बाँध दिया गया था लेकिन जिन्होंने अपने मस्तक से वीर के जैसे चमक से जिन्होंने अर्जुन के वृक्ष को अपने शरीर से उखाड़ दिया , यह उनकी लीला है।जिनकी विशाल आँखें कमल के के पत्तों के सादृश्य सुन्दर हैं। मैं उन सुन्दर बाल स्वरुप भगवान श्री कृष्ण को मन में धारण करता हूं।
आलोक्य मातुर्मुखमादेण स्तन्यं पिबन्तं सरसीरुहाक्षम् ।
सच्चिन्मयं देवमनन्तरूपं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥८॥
श्री कृष्ण दूध के पान के समय अपनी माता को देखते हैं, स्तनपान करने के वक़्त उनका मुखमण्डल झील में उगे कमल के समान सुन्दर लग रहा है, उनका यह स्वरुप पूर्ण और सत्य(शुद्ध) चेतना को दर्शाता है। मैं उन सुन्दर बाल स्वरुप भगवान श्री कृष्ण को मन में धारण करता हूं।