श्री कृष्णाश्रय स्तोत्र(Shri Krishnashray Stotram) महाप्रभु वल्लाभाचार्य द्वारा रचित 11 श्लोकों की कृति है। कृष्णाश्रय का अर्थ है श्री कृष्ण का आश्रय लेना या उनकी शरणागति को प्राप्त हो जाना। वल्लाभाचार्य जी श्री कृष्ण भक्ति के पुष्टिमार्ग के संस्थापक हैं।श्री कृष्णाश्रय स्तोत्र(Shri Krishnashray Stotram) के माध्यम से वल्लाभाचार्य जी यह उपदेश देते हैं कि इस कलयुग में धर्म अत्यंत पतित हो गया है और हर तरफ सिर्फ अधर्म ही व्याप्त है ऐसे में श्री कृष्ण को ही अपना सब कुछ मानना चाहिए अर्थात उनका आश्रय लेना चाहिए।
Shri Krishnashray Stotram Hindi Meaning-श्री कृष्णाश्रय स्तोत्र अर्थ
सर्वमार्गेषु नष्टेषु कलौ च खलधर्मिणि।
पाषण्डप्रचुरे लोके कृष्ण एव गतिर्मम॥१॥
कलियुग में धर्म के सभी मार्ग नष्ट हो गए हैं, विश्व में अधर्म और पाखंड का बाहुल्य है, ऐसे समय में केवल श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥१॥
म्लेच्छाक्रान्तेषु देशेषु पापैकनिलयेषु च।
सत्पीडाव्यग्रलोकेषु कृष्ण एव गतिर्मम॥२॥
दुर्जनों से आक्रांत (परेशान) देशों में, पाप पूर्ण स्थानों में, सज्जनों की पीड़ा से व्यग्र संसार में केवल श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥२॥
गंगादितीर्थवर्येषु दुष्टैरेवावृतेष्विह।
तिरोहिताधिदेवेषु कृष्ण एव गतिर्मम॥३॥
गंगा आदि प्रमुख तीर्थ भी दुष्टों द्वारा घिरे हुए हैं, प्रत्यक्ष देवस्थान लुप्त हो गए हैं, ऐसे समय में केवल श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥३॥
अहंकारविमूढेषु सत्सु पापानुवर्तिषु।
लोभपूजार्थयत्नेषु कृष्ण एव गतिर्मम॥४॥
अहंकार से मोहित हुए सज्जन व्यक्ति भी पाप का अनुसरण कर रहे हैं और लोभ वश ही पूजा करते हैं, ऐसे समय में केवल श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥४॥
अपरिज्ञाननष्टेषु मन्त्रेष्वव्रतयोगिषु।
तिरोहितार्थवेदेषु कृष्ण एव गतिर्मम॥५॥
मंत्र ज्ञान नष्ट हो गया है, योगी नियमों का पालन न करने वाले हो गए हैं, वेदों का वास्तविक अर्थ लुप्त हो गया है, ऐसे समय में केवल श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥५॥
नानावादविनष्टेषु सर्वकर्मव्रतादिषु।
पाषण्डैकप्रयत्नेषु कृष्ण एव गतिर्मम॥६॥
भिन्न-भिन्न प्रकार के मतों के कारण शुभ कर्म और व्रत आदि का नाश हो गया है, पाखंडपूर्ण कर्मों का ही आचरण हो रहा है, ऐसे समय में केवल श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥६॥
अजामिलादिदोषाणां नाशकोऽनुभवे स्थितः।
ज्ञापिताखिलमाहात्म्यः कृष्ण एव गतिर्मम॥७॥
आपका नाम अजामिल* आदि के दोषों का नाश करने वाला है, ऐसा सबने सुना है, आपके ऐसे संपूर्ण माहात्म्य को जानने के बाद, केवल आप श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥७॥
*श्रीमद् भागवत पुराण के अनुसार अजामिल बहुत बडा पापी था । उसके 10 पुत्र थे । उनमे से सबसे छोटे पुत्र का नाम नारायण था। वह अपने सभी पुत्रों मे नारायण से अधिक प्यार करता था। जब अजामिल का अन्त समय आया तो उसके पाप कर्म के अनुसार उसे लेने यमदूत आए । यमदूतों के भयानक रूप को देखकर वह बहुत भयभीत हुआ । उसने बडे कातर भाव से नारायण(अपने पुत्र) को पुकारा । भगवान नारायण के दूत नारायण के नाम सुनकर आ गए और चूँकि अजामिल ने अपने अन्त समय मे भगवान का नाम लिया था अतः उसे स्वर्ग ले गए , जबकि उसके पापकर्म के अनुसार उसे नर्क मे जाना था ।
प्राकृताः सकल देवा गणितानन्दकं बृहत्।
पूर्णानन्दो हरिस्तस्मात्- कृष्ण एव गतिर्मम॥८॥
सभी देवता प्रकृति के अंतर्गत हैं, विराट का आनंद भी सीमित है, केवल श्रीहरि पूर्ण आनंद स्वरुप हैं, अतः केवल श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥८॥
विवेकधैर्यभक्त्यादि रहितस्य विशेषतः।
पापासक्तस्य दीनस्य कृष्ण एव गतिर्मम॥९॥
विवेक, धैर्य, भक्ति आदि से रहित, विशेष रूप से पाप में आसक्त मुझ दीन के लिए केवल श्रीकृष्ण ही आश्रय हैं॥९॥
सर्वसामर्थ्यसहितः सर्वत्रैवाखिलार्थकृत्।
शरणस्थमुद्धारं कृष्णं विज्ञापयाम्यहम्॥१०॥
अनंत सामर्थ्यवान, सर्वत्र सभी प्रकार की मनोकामना पूर्ण करने वाले, शरणागतों का उद्धार करने वाले श्रीकृष्ण की मैं वंदना करता हूँ॥१०॥
कृष्णाश्रयमिदं स्तोत्रं यः पठेत्कृष्णसन्निधौ।
तस्याश्रयो भवेत्कृष्णबी इति श्रीवल्लभोऽब्रवीत्॥११॥
श्रीकृष्ण के आश्रय में और उनकी मूर्ति के समीप जो इस स्तोत्र का पाठ करता है उसके आश्रय श्रीकृष्ण हो जाते हैं, ऐसा श्रीवल्लभाचार्य का कथन है॥११॥