आरती को 'आरात्रिक' अथवा 'नीराजन' के नाम से भी पुकारा गया है। प्राचीन काल से प्रभु की उपासना कई विधियों द्वारा की जाती रही है। जैसे संध्या वंदन, प्रात: वंदन, प्रार्थना, हवन, ध्यान, भजन, कीर्तन आदि। आरती भी पूजा का एक अंग है। आरती पूजा के अंत में की जाती है जिससे पूजा जो त्रुटि रह गई हो वह पूर्ण हो जाती है। अतः हर प्रकार की पूजा के पश्चात् आरती करने का विधान है। इस लेख के माध्यम से हम आपके सम्मुख कुछ प्रमुख आरती(aarti sangrah) प्रस्तुत करेंगे।
आरती कैसे करें यह जानने के लिए हमारा निम्न लेख पढ़ें।
Aarti Kya Hai Aur Aarti Ka Mahatva
Famous Aarti Sangrah– प्रमुख आरती संग्रह
कुछ प्रमुख आरतियों का संग्रह निम्न है।
Ganesh Ji Ki Aarti-गणेश जी की आरती
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी॥
।।जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।।
पान चढ़े फल चढ़े, और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा॥
।।जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।।
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया॥
।।जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।।
सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
।।जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।।
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो जाऊं बलिहारी॥
।।जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।।
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Lakshmi Ji Ki Aarti–ॐ जय लक्ष्मी माता
ॐ जय लक्ष्मी माता मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशदिन सेवत हरि विष्णु विधाता।
।।ॐ जय लक्ष्मी माता।।
उमा रमा ब्रह्माणी तुम ही जगमाता।
सूर्य चन्द्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता।
।।ॐ जय लक्ष्मी माता।।
दुर्गा रूप निरंजनी सुख सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत ऋद्धि-सिद्धि धन पाता।
।।ॐ जय लक्ष्मी माता।।
तुम पाताल निवासिनि तुम ही शुभदाता।
कर्मप्रभाव प्रकाशिनी भवनिधि की त्राता।
।।ॐ जय लक्ष्मी माता।।
जिस घर में तुम रहती सब सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता मन नहीं घबराता।
।।ॐ जय लक्ष्मी माता।।
तुम बिन यज्ञ न होते वस्त्र न कोई पाता।
खान पान का वैभव सब तुमसे आता।
।।ॐ जय लक्ष्मी माता।।
शुभ गुण मन्दिर सुन्दर क्षीरोदधि जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहीं पाता।
।।ॐ जय लक्ष्मी माता।।
महालक्ष्मीजी की आरती जो कोई नर गाता।
उर आनन्द समाता पाप उतर जाता।
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता
तुमको निशदिन सेवत हरि विष्णु विधाता।
।।ॐ जय लक्ष्मी माता।।
Hanuman Ji Ki Aarti–हनुमान जी की आरती
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥
जाके बल से गिरिवर कांपे। रोग दोष जाके निकट न झांके॥
अंजनि पुत्र महा बलदाई। सन्तन के प्रभु सदा सहाई॥
दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारि सिया सुधि लाए॥
लंका सो कोट समुद्र-सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई॥
लंका जारि असुर संहारे। सियारामजी के काज सवारे॥
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आनि संजीवन प्राण उबारे॥
पैठि पाताल तोरि जम-कारे। अहिरावण की भुजा उखारे॥
बाएं भुजा असुरदल मारे। दाहिने भुजा संतजन तारे॥
सुर नर मुनि आरती उतारें। जय जय जय हनुमान उचारें॥
कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई॥
जो हनुमानजी की आरती गावे। बसि बैकुण्ठ परम पद पावे॥
लंक विध्वंस कियो रघुराई। तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई॥
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥
Shiv Ji Ki Aarti- शिवजी की आरती
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा
।।ॐ जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे।
।।ॐ जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे।
।।ॐ जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी।
।।ॐ जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे।
।।ॐ जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगहर्ता जगपालनकर्ता।
।।ॐ जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका।
।।ॐ जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे।
।।ॐ जय शिव ओंकारा॥
Durga Ji Ki Aarti–जय अम्बे गौरी
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी॥
॥ जय अम्बे गौरी ॥
माँग सिन्दूर विराजत, टीको मृगमद को।
उज्जवल से दोउ नैना, चन्द्रवदन नीको॥
॥ जय अम्बे गौरी ॥
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला, कण्ठन पर साजै॥
॥ जय अम्बे गौरी ॥
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर-मुनि-जन सेवत, तिनके दुखहारी॥
॥ जय अम्बे गौरी ॥
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।
कोटिक चन्द्र दिवाकर, सम राजत ज्योति॥
॥ जय अम्बे गौरी ॥
शुम्भ-निशुम्भ बिदारे, महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती॥
॥ जय अम्बे गौरी ॥
चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥
॥ जय अम्बे गौरी ॥
ब्रहमाणी रुद्राणी तुम कमला रानी।
आगम-निगम-बखानी, तुम शिव पटरानी॥
॥ जय अम्बे गौरी ॥
चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरूँ।
बाजत ताल मृदंगा, अरु बाजत डमरु॥
॥ जय अम्बे गौरी ॥
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता।
भक्तन की दु:ख हरता, सुख सम्पत्ति करता॥
॥ जय अम्बे गौरी ॥
भुजा चार अति शोभित, वर-मुद्रा धारी।
मनवान्छित फल पावत, सेवत नर-नारी॥
॥ जय अम्बे गौरी ॥
कन्चन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति॥
॥ जय अम्बे गौरी ॥
श्री अम्बेजी की आरती, जो कोई नर गावै।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पत्ति पावै॥
॥ जय अम्बे गौरी ॥
Om Jai Jagdish Hare–ॐ जय जगदीश हरे
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी ! जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे ॥
॥ॐ जय जगदीश हरे॥
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का ॥
॥ॐ जय जगदीश हरे॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ मैं जिसकी ॥
॥ॐ जय जगदीश हरे॥
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी ॥
॥ॐ जय जगदीश हरे॥
तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥
॥ॐ जय जगदीश हरे॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूँ दयामय , तुमको मैं कुमति ॥
॥ॐ जय जगदीश हरे॥
दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा मैं तेरे ॥
॥ॐ जय जगदीश हरे॥
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा ॥
॥ॐ जय जगदीश हरे॥
तन मन धन सब है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा ॥
॥ॐ जय जगदीश हरे॥
श्री जगदीश जी की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे ॥
॥ॐ जय जगदीश हरे॥
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी ! जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे ॥
Ram Ji Ki Aarti–राम जी की आरती
जगमग जगमग जोत जली है,
राम आरती होन लगी है।
भक्ति का दीपक प्रेम की बाती,
आरती संत करें दिन राती।
आनंद की सरिता उभरी है,
राम आरती होन लगी है।
॥जगमग जगमग जोत जली है ॥
कनक सिंघासन सिया समेता,
बैठहिं राम होइ चित चेता।
वाम भाग में जनक लली है,
राम आरती होन लगी है।
॥जगमग जगमग जोत जली है ॥
आरती हनुमत के मन भावै,
राम कथा नित शंकर गावै।
संतों की ये भीड़ लगी है,
राम आरती होन लगी है।
॥जगमग जगमग जोत जली है ॥
Aarti Krishna Ji Ki–कृष्ण जी की आरती
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
गले में बैजंती माला,
बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रवण में कुण्डल झलकाला,
नंद के आनंद नंदलाला ।
गगन सम अंग कांति काली,
राधिका चमक रही आली ।
लतन में ठाढ़े बनमाली
भ्रमर सी अलक,
कस्तूरी तिलक,
चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥
कनकमय मोर मुकुट बिलसै,
देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै ।
बजे मुरचंग,
मधुर मिरदंग,
ग्वालिन संग,
अतुल रति गोप कुमारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥
जहां ते प्रकट भई गंगा,
सकल मन हारिणि श्री गंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा
बसी शिव सीस,
जटा के बीच,
हरै अघ कीच,
चरन छवि श्रीबनवारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥
चमकती उज्ज्वल तट रेनू,
बज रही वृंदावन बेनू ।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू
हंसत मृदु मंद,
चांदनी चंद,
कटत भव फंद,
टेर सुन दीन दुखारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥