केतुपञ्चविंशतिनामस्तोत्रम्-Ketu 25 Names Stotra
केतु: काल: कलयिता धूम्रकेतुर्विवर्णक:।
लोककेतुर्महाकेतु: सर्वकेतुर्भयप्रद: ।।1।।
रौद्रो रूद्रप्रियो रूद्र: क्रूरकर्मा सुगन्ध्रक्।
पलालधूमसंकाशश्चित्रयज्ञोपवीतधृक् ।।2।।
तारागणविमर्दो च जैमिनेयो ग्रहाधिप:।
पंचविंशति नामानि केतुर्य: सततं पठेत् ।।3।।
तस्य नश्यंति बाधाश्चसर्वा: केतुप्रसादत:।
धनधान्यपशूनां च भवेद् व्रद्विर्नसंशय: ।।4।।
केतुपञ्चविंशतिनामस्तोत्रम् हिंदी अर्थ-Ketu 25 Names Stotra
केतु: काल: कलयिता धूम्रकेतुर्विवर्णक:।
लोककेतुर्महाकेतु: सर्वकेतुर्भयप्रद: ।।1।।
केतु देवता जो काल(मृत्यु/समय) का प्रतीक है,कलयिता (हिसाब लगाने वाले), वह धूम्ररूपी शीर्ष वाले, विभिन्न रंगों से युक्त है। वह सभी लोकों के राजा (प्रमुख) है, वह महान राजा है और सबके भयको हरने वाले हैं।
रौद्रो रूद्रप्रियो रूद्र: क्रूरकर्मा सुगन्ध्रक्।
पलालधूमसंकाशश्चित्रयज्ञोपवीतधृक् ।।2।।
वह रौद्र है, वह रुद्र (भगवान शिव) को प्रिय है, वह क्रूरता में रत है, सुगंध से युक्त है, जो पलाल(सूखे हुए पेड़-पौधे) से उत्पन्न ध्रूम(धुआँ) समान है, और वह पवित्र यज्ञोपवीत धारी है।
तारागणविमर्दो च जैमिनेयो ग्रहाधिप:।
पंचविंशति नामानि केतुर्य: सततं पठेत् ।।3।।
वह तारागण को नष्ट करने वाले है, वह जैमिनीय कुल से हैं, जो ग्रहाधिपति है, उनके पच्चीस नाम सदा पठने योग्य है।
तस्य नश्यंति बाधाश्चसर्वा: केतुप्रसादत:।
धनधान्यपशूनां च भवेद् व्रद्विर्नसंशय: ।।4।।
उनके प्रसाद से सभी बाधाएं और संकट नष्ट हो जाते हैं। धन, धान्य, और पशुओं की वृद्धि होती है, इसमें कोई संदेह नहीं है।