Nirvana Shatkam
Nirvana Shatkam Hindi Arth-निर्वाण षट्कम हिंदी अर्थ
मनोबुद्ध्यहंकार चित्तानि नाहं
न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रे ।
न च व्योम भूमिर्न तेजो न वायुः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 1 ।।
मैं न तो मन बुद्धि चित्त अहंकार हूं। मैं न तो मैं कान,जिह्वा नाक,आँख हूं। मैं न तो आकाश, भूमि, अग्नि, वायु हूं। मैं केवल शुद्ध चेतना हूं मैं ही शिव हूं।
चेतना शक्ति को मन, बुद्धि, चित्त ,अहंकार भागों में बांटा गया है। इन चारों को अंतःकरण चतुष्टय कहते है। मन का कार्य इच्छा और कल्पना करना है। बुद्धि व्यक्ति को निर्णय लेने में सहायक होती है।
चित्त में व्यक्ति के इस जन्म और पूर्व जन्म के संस्कार होते हैं। अपने संबंध में स्थिर की गयी भावना को अहंकार कहते हैं। श्रोत्र, त्वचा, नेत्र, जिह्वा और घ्राण यह पांच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं। वाक्, पाणि, पाद, पायु तथा उपस्थ पांच कर्मेन्द्रियाँ हैं।
न च प्राणसंज्ञो न वै पंचवायुः,
न वा सप्तधातुः न वा पञ्चकोशः ।
न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायु,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 2 ।।
मैं न तो प्राण हूँ ना ही न ही पांच प्राण हूँ। न ही शरीर के सप्त धातु हूँ न ही मैं पंच कोष हूँ। न ही मैं वाणी ,पाणि (हाथ), पाद (पैर),उपस्थ(जननेन्द्रिय), पायु(मलद्वार) हूँ।
प्राण, अपान, उदान, व्यान और समान यह पंच वायु हैं। रस – प्लाज्मा, रक्त – खून (ब्लड), मांस – मांसपेशियां, मेद – वसा ,अस्थि – हड्डियाँ, मज्जा – बोनमैरो, शुक्र – प्रजनन संबंधी ऊतक यह सप्त धातु हैं।
अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनन्दमय यह पंचकोश हैं। वाणी ,पाणि (हाथ), पाद (पैर),उपस्थ(जननेन्द्रिय), पायु(मलद्वार) यह पांच कर्मेन्द्रियां हैं।
मैं केवल शुद्ध चेतना हूं मैं ही शिव हूं।
न मे द्वेषरागौ न मे लोभमोहौ,
न मे वै मदो नैव मात्सर्यभावः ।
न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्षः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 3 ।।
मैं न तो द्वेष हूँ न राग हूँ न ही लोभ और मोह हूँ। न मद हूँ न ही अहंकार हूँ। मैं न ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष हूँ। मैं केवल शुद्ध चेतना हूं मैं ही शिव हूं।
काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर – ये ष़ड्रिपु माने गये हैं।काम का अर्थ बहुत अधिक इच्छाओं का होना। क्रोध का अर्थ गुस्सा ,लोभ का अर्थ लालच ,मोह का लगाव ,मद का अर्थ अभिमान ,मात्सर्य का अर्थ ईर्ष्या, घृणा, जलन, दूसरों की समृद्धि और प्रगति सहन न होना।
मनुष्य के लिये वेदों में चार पुरुषार्थों का नाम लिया गया है – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। इसलिए इन्हें ‘पुरुषार्थचतुष्टय’ भी कहते हैं।
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं,
न मन्त्रो न तीर्थं न वेदा न यज्ञाः ।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 4 ।।
मैं न तो पुण्य हूँ न पाप सुख हूँ न ही दुःख।न ही मंत्र, तीर्थ, वेद और यज्ञ ही हूँ। मैं न भोगने वाला हूं, न भोगने योग्य वस्तु हूं, न भोक्ता हूं। मैं केवल शुद्ध चेतना हूं मैं ही शिव हूं।
न मे मृत्युशंका न मे जातिभेदः,
पिता नैव मे नैव माता न जन्मः ।
न बन्धुर्न मित्रं गुरूर्नैव शिष्यः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 5 ।।
मैं न तो मृत्यु से और न ही उसके भय से बंधा हूँ न ही जाति और उसके भेदों से बंधा हूँ। न तो मेरे पिता हैं न ही माता और न ही मैंने जन्म लिया है। न ही मेरा कोई संबंधी है न ही मित्र न ही गुरू है न ही शिष्य। मैं केवल शुद्ध चेतना हूं मैं ही शिव हूं।
अहं निर्विकल्पो निराकार रूपो,
विभुत्वाच सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम् ।
न चासङ्गतं नैव मुक्तिर्न मेयः,
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 6 ।।
मुझे कोई संदेह नहीं है मैं निराकार हूँ। मैं हर जगह उपस्थित हूँ और सब इंद्रियों से परे हूँ। मैं न तो किसी चीज से जुड़ता हूँ न मुक्त होता हूँ। मैं केवल शुद्ध चेतना हूं मैं ही शिव हूं।