Mahishasura Mardini Stotram
- Mahishasura Mardini Stotra-महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र अयि गिरि नन्दिनी
- Mahishasura Mardini Stotra Hindi Arth-महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र हिंदी अर्थ
- Mahishasura Mardini Stotra ke Labh-महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र का पाठ करने के फायदे
- Mahishasura Kaun Tha-महिषासुर कौन था
- Mahishasura Mardini Stotra Lyrics Sanskrit-महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र अयि गिरि नन्दिनी
देवी दुर्गा ने राक्षस महिषासुर का वध किया था इसलिए उन्हें महिषासुर मर्दिनी कहा जाता है। महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र(mahishasura mardini stotra) में माँ की महिमा का गुणगान बहुत सुन्दर तरह से किया गया है जो बहुत कर्णप्रिय भी है। यह बहुत ही ताकतवर स्तोत्र है जिसका नित्य पाठ करने से माँ की कृपा प्राप्त होती है।
Mahishasura Mardini Stotra-महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र अयि गिरि नन्दिनी
अयि गिरि नन्दिनी नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते।
गिरिवर विन्ध्यशिरोधिनिवासिनी विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।1।।
सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते।
त्रिभुवनपोषिणि शंकरतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते।।
दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणी सिन्धुसुते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।2।।
अयि जगदम्बमदम्बकदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते।
शिखरिशिरोमणि तुङ्गहिमालय शृंगनिजालय मध्यगते।।
मधुमधुरे मधुकैटभगन्जिनि कैटभभंजिनि रासरते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।3।।
अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्ड गजाधिपते।
रिपु गजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रम शुण्ड मृगाधिपते।।
निजभुज दण्ड निपातित खण्ड विपातित मुंड भटाधिपते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।4।।
अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते।
चतुरविचारधुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते।।
दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदूत कृतान्तमते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।5।।
अयि शरणागत वैरिवधूवर वीरवराभय दायकरे।
त्रिभुवनमस्तक शूलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शूलकरे।।
दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिनकरे।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥6।।
अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते।
समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते।।
शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।7।।
धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके।
कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके।।
कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्वहुरङ्ग रटद्बटुके।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।8।।
सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते।
कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते।।
धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित ध्वनि धीर मृदंग निनादरते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।9।।
जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते।
झणझणझिझिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते।।
नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।10।।
अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते।
श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करवक्त्रवृते।।
सुनयनविभ्रमर भ्रमरभ्रमर भ्रमरभ्रमराधिपते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।11।।
सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते।
विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते।।
शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।12।।
अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमतङ्गजराजपते।
त्रिभुवनभूषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते।।
अयि सुदतीजन लालसमानस मोहन मन्मथराजसुते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।13।।
कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते।
सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले।।
अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्वकुलालिकुले।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।14।।
करमुरलीरव वीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते।
मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते।।
निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।15।।
कटितटपीत दुकूलविचित्र मयुखतिरस्कृत चन्द्ररुचे।
प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे।।
जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।16।।
विजितसहसकरेक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते।
कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते।।
सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।17।।
पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे।
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत्।।
तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।18।।
कनकलसत्कलसिन्धुजलेरनुषिञ्चति तेगुणरङ्गभुवम्।
भजति स किं न शचीकुचकुम्भतटीपरिरम्भसुखानुभवम्।
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम्।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।19।।
तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननुकूलयते।
किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखीसु मुखीभिरसौ विमुखीक्रियते।
ममतु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुतक्रियते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।20।।
अयि मयि दीन दयालु-तया कृपयेव त्वया भवितव्यमुमे।
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते।।
यदुचितमत्र भवत्पुररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।21।।
Mahishasura Mardini Stotra Hindi Arth–महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र हिंदी अर्थ
अयि गिरि नन्दिनी नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते।
गिरिवर विन्ध्यशिरोधिनिवासिनी विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१।।
हे पर्वत की पुत्री (हिमालय) जो की धरती को प्रसन्नता देती है और संसार को आनंदित कर देती है और नंदी गणों द्वारा पूजित है जो की विंध्य पर्वत पर रहती है भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाली और इन्द्र के द्वारा पूजित भगवान शिव की पत्नी ,जिनका बड़ा कुटुंब है और जो सबको संपन्नता प्रदान करने वाली हैं। अपने केशों के लताओं से आकर्षित करने वाली जिन्होंने महिषासुर का वध किया पर्वत की पुत्री आपकी जय हो।
सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते।
त्रिभुवनपोषिणि शंकरतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते।।
दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणी सिन्धुसुते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।२।।
देवताओ को वरदान देने वाली ,दुर्धर और दुर्मुख नामक असुरों का वध करने वाली जो हमेशा प्रसन्नचित है जो तीनो लोकों का पालन पोषण करने वाली ,शिव को प्रसन्न करने वाली पापों का नाश करने वाली और घोर गर्जना करने वाली ,दानवों पर क्रोध करने वाली, दिति के पुत्रों पर क्रोधित होने वाली, दुर्माद नामक दैत्य का वध करने वाली, सागर की पुत्री ,अपने केशों के लताओं से आकर्षित करने वाली जिन्होंने महिषासुर का वध किया पर्वत की पुत्री आपकी जय हो।
अयि जगदम्बमदम्बकदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते।
शिखरिशिरोमणि तुङ्गहिमालय शृंगनिजालय मध्यगते।।
मधुमधुरे मधुकैटभगन्जिनि कैटभभंजिनि रासरते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।3।।
हे हमेशा मुस्कुराते रहने वाली माँ जो की पूरे विश्व की माँ है जो कदम्ब के वृक्षों के बीच रहना पसंद करती हैं हिमालय की ऊँची चोटियां जिनका निवास स्थान है ,जो मधु की तरह मधुर हैं ,जिन्होंने मधु और कैटभ नामक राक्षसों का वध करने वाली नृत्य में व्यस्त रहने वाली अपने केशों के लताओं से आकर्षित करने वाली जिन्होंने महिषासुर का वध किया पर्वत की पुत्री आपकी जय हो।
अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्ड गजाधिपते।
रिपु गजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रम शुण्ड मृगाधिपते।।
निजभुज दण्ड निपातित खण्ड विपातित मुंड भटाधिपते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।4।।
हे देवी जो की युद्ध में अपने शत्रुओं के हाथियों की सूड़ को काटने वाली और सौ टुकड़े करने वाली और जो अपनी भुजाओं की शक्ति से उनकी सेना के हाथियों के मस्तक को काट देती है उनका संहार करती हैं जो क्रोधित सिंह पर सवार हैं अपने केशों के लताओं से आकर्षित करने वाली जिन्होंने महिषासुर का वध किया पर्वत की पुत्री आपकी जय हो।
अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते।
चतुरविचारधुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते।।
दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदूत कृतान्तमते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।5।।
रण में क्रोधित और माध में चूर शत्रुओं का नाश करने वाली हर तरह की शक्ति को धारण करने वाली हे देवी जिन्होंने स्वयं चतुर शिवजी को अपना दूत बना लिया, पापी , बुरे विचार रखने वाले दानव के दूत के प्रस्ताव का अंत करने वाली ,अपने केशों के लताओं से आकर्षित करने वाली जिन्होंने महिषासुर का वध किया पर्वत की पुत्री आपकी जय हो।
अयि शरणागत वैरिवधूवर वीरवराभय दायकरे।
त्रिभुवनमस्तक शूलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शूलकरे।।
दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिनकरे।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥6।।
शरणागत शत्रुओं की पत्नियों के आग्रह पर उन्हें अभयदान देने वाली ,तीनो लोकों के पापी दैत्यों का नाश करने हेतु त्रिशूल धारण करने वाली ,देवताओं की दुंदुभि से दुमी दुमी की ध्वनि से विश्व को व्याप्त करने वाली , गर्म सूर्य की भांति तेज वाली ,अपने केशों के लताओं से आकर्षित करने वाली जिन्होंने महिषासुर का वध किया पर्वत की पुत्री आपकी जय हो।
अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते।
समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते।।
शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।7।।
अपनी हुंकार से ध्रूमविलोचन नामक दैत्य को ध्रूम के समान भस्म करने वाली ,युद्ध में कुपित रक्तबीज के रक्त से उत्पन्न होने वाले अन्य रक्तबीज का रक्त पीने वाली ,शुम्भ और निशुंभ दैत्यों की बलि से शिव और भूत पिशाच को तृप्त करने वाली, अपने केशों के लताओं से आकर्षित करने वाली जिन्होंने महिषासुर का वध किया पर्वत की पुत्री आपकी जय हो।
धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके।
कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके।।
कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्वहुरङ्ग रटद्बटुके।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।8।।
युद्ध भूमि में जिनके हाथ के आभूषण धनुष बाण की गति का अनुसरण करते हैं , जो देवी चमचमाती हुई तलवार और सोने के तरकश से शत्रुओं की विशाल सेना का संहार करती हैं ,चारों प्रकार की सेना(हाथी ,घोड़ा ,पैदल ,रथ) का संहार करने के लिए शक्तिओं जैसे बटुक को उत्पन्न करने वाली ,अपने केशों के लताओं से आकर्षित करने वाली जिन्होंने महिषासुर का वध किया पर्वत की पुत्री आपकी जय हो।
सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते।
कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते।।
धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित ध्वनि धीर मृदंग निनादरते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।9।।
जो देवी देवताओं के कंठ से ताथैया ताथैया की ध्वनि पर नृत्य करने में प्रसन्न होती हैं ,जो देवी दैवीय संगीत को सुनकर आनंदित होती हैं ,जो देवी धुधुकुट धिमि -धिमि आदि मृदंग की ध्वनि को सुनकर हर्षित होती है,अपने केशों के लताओं से आकर्षित करने वाली जिन्होंने महिषासुर का वध किया पर्वत की पुत्री आपकी जय हो।
जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते।
झणझणझिझिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते।।
नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।10।।
देवी जिनकी विजय पर विश्व के लोग जयजयकार करते हैं और स्तुति करते हैं ,जिनके पैरों की पायल की घन घन करती घुंघरू की ध्वनि से समस्त भूतों के अधिपति (शिव) को भी आनंदित करती है ,शिव के साथ अर्धनारीश्वर रूप में नृत्य करके आनंदित होने वाली,अपने केशों के लताओं से आकर्षित करने वाली जिन्होंने महिषासुर का वध किया पर्वत की पुत्री आपकी जय हो।
अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते।
श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करवक्त्रवृते।।
सुनयनविभ्रमर भ्रमरभ्रमर भ्रमरभ्रमराधिपते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।11।।
देवी जो पुष्प के समान कांति वाली हैं जिनका ह्रदय पुष्प के समान कोमल और सदा प्रसन्न रहने वाली हैं , जिनका चेहरा रात्रि के आश्रित अर्थात चन्द्रमा के समान सुन्दर है और जिसकी कांति से तालाब के कमल को खिल जाते हैं ,जिनकी सुन्दर आंखें हैं और जिनकी आँखों की गति भ्रमर के समान लगती है और उन्हें आकर्षित करती हैं और जिन्होंने भ्रमराधिपति दैत्य को मारा था, अपने केशों के लताओं से आकर्षित करने वाली जिन्होंने महिषासुर का वध किया पर्वत की पुत्री आपकी जय हो।
सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते।
विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते।।
शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।12।।
देवी जो की मल्ल्युद्ध की कला में माहिर हैं और जो माहिर युद्ध करती हैं और उन्हें युद्ध में हराती हैं ,चमेली के पुष्पों की भाँति कोमल स्त्रियों के साथ रहने वाली तथा चमेली की लताओं की भाँति कोमल भील स्त्रियों से जो झींगुरों के झुण्ड की भाँती घिरी हुई हैं,चेहरे पर उल्लास(खुशी) से उत्पन्न,उषाकाल के सूर्य के समान और खिले हए लाल कोमल पत्ती के समान शरीर वाली, अपने केशों के लताओं से आकर्षित करने वाली जिन्होंने महिषासुर का वध किया पर्वत की पुत्री आपकी जय हो।
अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमतङ्गजराजपते।
त्रिभुवनभूषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते।।
अयि सुदतीजन लालसमानस मोहन मन्मथराजसुते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।13।।
जिसके कानों से अविरल(लगातार) मद बहता रहता है उस हाथी के समान उत्तेजित हे गजेश्वरी,तीनों लोकों के आभूषण रूप-सौंदर्य,शक्ति और कलाओं से सुशोभित हे क्षीर सागर की पुत्री ,सुंदर मुस्कान वाली स्त्रियों को पाने के लिए मन में मोह उत्पन्न करने वाली मन्मथ(कामदेव) को भी वश में करने वाली अर्थात जिनकी पूजा से व्यक्ति भाव बंधन से मुक्त हो जाता है, अपने केशों के लताओं से आकर्षित करने वाली जिन्होंने महिषासुर का वध किया पर्वत की पुत्री आपकी जय हो।
कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते।
सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले।।
अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्वकुलालिकुले।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।14।।
जिनका कमल दल (पखुड़ी) के समान कोमल,स्वच्छ और कांति (चमक) से युक्त मस्तक है, देवी जो की सभी नृत्य कलाओं में निपुण जो की हंस के समान मनोहारी चाल वाली हैं , जो देवी बालों में भंवरों से घिरे कुमुदनी के फूल और बकुल पुष्प सुशोभित हैं ,अपने केशों के लताओं से आकर्षित करने वाली जिन्होंने महिषासुर का वध किया पर्वत की पुत्री आपकी जय हो।
करमुरलीरव वीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते।
मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते।।
निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।15।।
जिनके हाथों की मुरली(बांसुरी) से बहने वाली ध्वनि से कोयल की आवाज भी लज्जित हो जाती है,जो खिले हुए फूलों से रंगीन पर्वतों से विचरती हुयी, माँ जो की सहृदय हैं अपने भूत गणो और महाशबरी गणो के साथ नृत्य और अन्य खेल खेलती हैं अपने केशों के लताओं से आकर्षित करने वाली जिन्होंने महिषासुर का वध किया पर्वत की पुत्री आपकी जय हो।
कटितटपीत दुकूलविचित्र मयुखतिरस्कृत चन्द्ररुचे।
प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे।।
जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।16।।
जिनकी कांति और तेज से चन्द्रमा की रौशनी भी फीकी पड़ जाती है , ऐसे सुन्दर रेशम के वस्त्रों से जिनकी कमर सुशोभित है,देवताओं और असुरों के सर झुकने पर उनके मुकुट की मणियों से जिनके पैरों के नाखून चंद्रमा की भाति चमकते हैं , जिनके वक्षस्थल सुनहरे पर्वत(मेरू पर्वत) की चोटी के समान और ऐरावत(हाथी) के कुम्भस्थल के समान हैं ,अपने केशों के लताओं से आकर्षित करने वाली जिन्होंने महिषासुर का वध किया पर्वत की पुत्री आपकी जय हो।
विजितसहसकरेक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते।
कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते।।
सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।17।।
देवी जो कि सहस्त्र हाथों वाले द्वारा पूजित हैं (सूर्य , कार्तवीर्य अर्जुन, बाणासुर इन तीनों को सहस्त्र हाथों वाला माना जाता है ),देवी जिन्होंने ताड़कासुर द्वारा देवताओं की रक्षा हेतु अपने पुत्र(कार्तिकेय) को तैयार किया और अपने पुत्र द्वारा पूजित,देवी जो कि राजा सुरथ और समाधि नामक वैश्य की भक्ति द्वारा समान रूप से संतुष्ट होकर उन्हें ज्ञान देने वाली ,अपने केशों के लताओं से आकर्षित करने वाली जिन्होंने महिषासुर का वध किया पर्वत की पुत्री आपकी जय हो।
पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे।
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत्।।
तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।18।।
हे दयामय देवी जो शिव के साथ हैं जो भी नित्य तुम्हारे पद कमलों की सेवा करता है वो भाग्यशाली है , देवी जिन्हें कमल में वास करना पसंद है जो अपने भक्तों के कमल ह्रदय में वास करना पसंद करती हैं (दर्शाता है कि देवी का वास ज्ञान और सम्पन्नता देता है ), हे माँ जिनके चरण कमलों का मैं नित्य ध्यान करता हूँ मुझे परमपद कैसे नहीं प्राप्त होगा, अपने केशों के लताओं से आकर्षित करने वाली जिन्होंने महिषासुर का वध किया पर्वत की पुत्री आपकी जय हो।
कनकलसत्कलसिन्धुजलेरनुषिञ्चति तेगुणरङ्गभुवम्।
भजति स किं न शचीकुचकुम्भतटीपरिरम्भसुखानुभवम्।
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम्।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।19।।
जो भी महान नदियों के जल को सोने के कलश में लाकर तुम्हारा अभिषेक करेगा वह आपकी कृपा से निश्चय ही इंद्र के पद को प्राप्त करेगा। हे भगवान शिव की पत्नी जो देवताओं की वाणी में निवास करती हैं मैं आपके चरणों में शरण लेता हूँ मुझे सारी सम्पन्नता प्रदान करो ,अपने केशों के लताओं से आकर्षित करने वाली जिन्होंने महिषासुर का वध किया पर्वत की पुत्री आपकी जय हो।
तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननुकूलयते।
किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखीसु मुखीभिरसौ विमुखीक्रियते।
ममतु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुतक्रियते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।20।।
चन्द्रमा के समान निर्मल मुख वाली देवी जिन्हें अर्धचंद्र जिन्हें और आकर्षक बनाता है उसका ध्यान करने से मन की सभी अशुद्धियाँ दूर हो जाती हैं , उसका मन इंद्रपुरी की सुन्दर स्त्रयों से विमुख क्यों नहीं होगा , आपकी कृपा के बिना मुझे शिवनाम रूपी धन की प्राप्ति कैसे संभव है, अपने केशों के लताओं से आकर्षित करने वाली जिन्होंने महिषासुर का वध किया पर्वत की पुत्री आपकी जय हो।
अयि मयि दीन दयालु-तया कृपयेव त्वया भवितव्यमुमे।
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते।।
यदुचितमत्र भवत्पुररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।21।।
हे दीनों पर दया करने वाली देवी उमा हमारे ऊपर दया कीजिये ,हे जगत जननी आपकी दया हमेशा बनी रहे, मैं अपने जीवन की समस्त चिंताओं को आपके ऊपर छोड़ता हूँ आपको जो उचित लगे आप कीजिये मेरे अंदर जो पाप और ताप हैं आप उन्हें दूर कीजिए ,अपने केशों के लताओं से आकर्षित करने वाली जिन्होंने महिषासुर का वध किया पर्वत की पुत्री आपकी जय हो।
Mahishasura Mardini Stotra ke Labh-महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र का पाठ करने के फायदे
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र बहुत ही चमत्कारी और शक्तिशाली स्तोत्र है। यदि विधिपूर्वक सच्चे मन से इस स्तोत्र का पाठ करें तो माँ समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। यदि आप नित्य इस स्तोत्र का पाठ न भी कर सकें तो नवरात आदि विशेष अवसरों पर पाठ अवश्य करना चाहिए। इस स्तोत्र के पाठ के निम्न लाभ हैं।
माँ की कृपा प्राप्त होती है। जिन लोगों की इष्ट माँ है उन्हें इस स्तोत्र का पाठ नित्य ही करना चाहिए।
यदि किसी बात का भय लग रहा हो तो इस स्तोत्र का पाठ शुरू कर दें आपको निश्चय ही भय से मुक्ति मिलेगी।
यदि कोई शत्रु परेशान कर हो तो महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र का नित्य पाठ करें।
जीवन कैसा भी संकट हो महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र का पाठ लाभदायक होता है।
Mahishasura Kaun Tha-महिषासुर कौन था
महिषासुर एक असुर (दानव) था। वह ब्रह्म-ऋषि कश्यप और दनु का पोता और रम्भ का पुत्र तथा महिषी का भाई था। उसे लोगों के बीच एक धोखेबाज राक्षस के रूप में जाना जाता है, जो रूप बदलकर बुरे कार्य किया करता था।
अंततः उसका देवी पार्वती ने वध कर दिया, जिसके बाद उन्हें महिषासुरमर्दिनी (“महिषासुर का वध करने वाली”) के नाम से पुकारा जाने लगा।
नवरात्रि का त्योहार, महिषासुर और देवी दुर्गा के बीच इस युद्ध को दर्शाता है, जिसका समापन विजय दशमी में होता है, जो उसके अंत का उत्सव है।
महिषासुर सृष्टिकर्ता ब्रम्हा का महान भक्त था और ब्रम्हा जी ने उसे वरदान दिया था कि कोई भी देवता या दानव उसपर विजय प्राप्त नहीं कर सकता।इस कारण उसे अपनी शक्ति का अभिमान हो गया था और वो इस कारण मनुष्यों और देवताओं को परेशान करता रहता था।
महिषासुर बाद में स्वर्ग लोक के देवताओं को परेशान करने लगा और पृथ्वी पर भी उत्पात मचाने लगा। उसने स्वर्ग पर एक बार अचानक आक्रमण कर दिया और इंद्र को परास्त कर स्वर्ग पर कब्ज़ा कर लिया तथा सभी देवताओं को वहाँ से खदेड़ दिया। देवगण परेशान होकर त्रिमूर्ति ब्रम्हा, विष्णु और महेश के पास सहायता के लिए पहुँचे।
ब्रम्हा, विष्णु और महेश और देवताओं ने उसके विनाश के लिए अपने तेज द्वारा देवी दुर्गा का सृजन किया जिसे शक्ति और पार्वती के नाम से भी जाना जाता है। ब्रम्हा, विष्णु और महेश और अन्य देवताओं देवी को अपने अस्त्र शस्त्र प्रदान किए। शिव जी ने त्रिशूल और भगवान विष्णु ने चक्र प्रदान दिया। इन्द्र ने वज्र प्रदान किया।
देवी दुर्गा ने महिषासुर पर आक्रमण कर उससे नौ दिनों तक युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध किया। इसी उपलक्ष्य में हिंदू भक्तगण दस दिनों का त्यौहार दुर्गा पूजा मनाते हैं और दसवें दिन को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। जो बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है।
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