कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्दशी को वैकुण्ठ चतुर्दशी(Vaikunth Chaturdashi) का व्रत किया जाता है। वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन हरि और हर अर्थात भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा की जाती है। जहाँ वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की निशीथ काल में पूजा करने का विधान है वहीं भगवान शिव की पूजा अरुणोदय के समय पर की जाती है। भक्त प्रातःकाल अरुणोदय के समय काशी में मणिकर्णिका घाट पर स्नान करते हैं। इस स्नान का बहुत अधिक महत्व है। इस पवित्र स्नान को मणिकर्णिका स्नान भी कहा जाता है।
इस दिन भगवान विष्णु को कमल के पुष्प अर्पित करके विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए।
वैकुण्ठ चतुर्दशी के पवित्र दिन के अवसर पर काशी विश्वनाथ मंदिर में भगवान विष्णु की विशेष पूजा होती है जो एक एक विख्यात शिव मंदिर और द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन काशी विश्वनाथ वैकुण्ठ के समान पवित्र हो जाता है। विष्णु जी और शिवजी की विधि विधान से पूजा होती है क्योंकि वह इस दिन एक दूसरे की पूजा करते हैं। सिर्फ वैकुण्ठ चतुर्दशी के अवसर पर ही भगवान शिव को तुलसी पत्र और भगवान विष्णु को बेलपत्र अर्पित किये जाते हैं।
Vaikunth Chaturdashi Tithi-वैकुण्ठ चतुर्दशी मुहूर्त
वैकुण्ठ चतुर्दशी रविवार, 25 नवम्बर, 2023
वैकुण्ठ चतुर्दशी निशीथकाल – रात्रि 11:27,25 नवम्बर 2023 से रात्रि 12:20,26 नवम्बर 2023
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ – 25 नवम्बर, 2023 को सायं 05:22
चतुर्दशी तिथि समाप्त – 26 नवम्बर, 2023 को सायं 03:53
वैकुण्ठ चतुर्दशी पर भगवान विष्णु और भगवान शिव का पूजन कैसे करें
इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव का पूजन किया जाता है। इस दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु को कमल के पुष्प अवश्य अर्पित करने चाहिए। भगवान को अक्षत पुष्प आदि चढ़ा कर भोग लगाएं।
यदि संभव हो तो विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें और विष्णु जी द्वारा पठित भगवान शिव के शिव सहस्त्रनाम का पाठ करें।
वैकुण्ठ चतुर्दशी की कथा का श्रवण करें और आरती करें।
भगवान विष्णु का पूजन जहाँ निशीथ काल में किया जाता है वहीं भगवान शिव का पूजन अरुणोदय के समय होता है।
Vaikunth Chaturdashi Katha-वैकुण्ठ चतुर्दशी कथा
कथा 1
एक बार नारद जी मृत्यु लोक घूमकर बैकुंठ पहुंच। भगवान विष्णु ने प्रसन्नतापूर्वक बैठाते हुए आने का कारण पूछा ।
नारद जी ने कहा भगवान आपने अपना नाम तो कृपा निधान रख लिया है किंतु इससे तो केवल आपके प्रिय भक्त ही तर पाते हैं सामान्य नर नारी नहीं इसलिए आप कृपा करके ऐसा सुलभ मार्ग बताएं जिससे लोक के निम्न स्तरीय भक्त भी मुक्ति पा सके।
इस पर भगवान बोले हे नारद सुनो कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को जो नर नारी व्रत का पालन करते हुए श्रद्धा भक्ति से पूजा करेंगे उनके लिए साक्षात स्वर्ग की प्राप्ति होगी।
इसके बाद जय विजय को बुलाकर कार्तिक चतुर्दशी को स्वर्गद्वार खुला रखने का आदेश दिया भगवान ने यह भी बताया कि जो मनुष्य किंचित मात्र भी मेरा नाम लेकर पूजन करेगा उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होगी।
कथा 2
शिव पुराण के अनुसार, एक बार, भगवान विष्णु ने अपना निवास वैकुंठ छोड़ कर शिव की पूजा करने काशी (वाराणसी) गए। उन्होंने एक हजार कमल के साथ शिव की पूजा करने का संकल्प लिया। शिव की स्तुति में भजन गाते हुए, विष्णु ने हजारवां कमल गायब पाया। विष्णु, जिनकी आँखों की तुलना अक्सर कमल से की जाती है, उनमें से एक को निकालकर शिव को अर्पित कर देते हैं। प्रसन्न शिव ने विष्णु की आंख को पुनः उन्हें दे देते हैं और उन्हें सुदर्शन चक्र, विष्णु के चक्र और पवित्र हथियार से सम्मानित किया।
Katha3–कथा 3
वाराणसी उत्सव से संबंधित वैकुंठ चतुर्दशी की कथा के अनुसार, धनेश्वर नाम का एक ब्राह्मण था , जिसने अपना जीवन कई पापों को करते हुए बिताया था, गोदावरी नदी के तट पर स्नान करने और अपने पापों को धोने के लिए गया था, जब वैकुंठ चतुर्दशी एक द्वारा मनाई जा रही थी बड़ी संख्या में श्रद्धालु पवित्र नदी में मिट्टी के दीपक और बत्ती (बत्ती) चढ़ाते हैं।
भीड़ के बीच धनेश्वरकी मृत्यु हुई, तो उनकी आत्मा को मृत्यु के देवता यम ने दंड के लिए नरक में ले जाया गया। तब भगवान शिव ने हस्तक्षेप किया और यम को बताया कि वैकुंठ चतुर्दशी पर भक्तों के स्पर्श के कारण धनेश्वर के पाप साफ हो गए थे। तब धनेश्वर को नरक से मुक्त कर वैकुंठ में स्थान मिला
Vaikunth Chaturdashi Mela-वैकुण्ठ चतुर्दशी मेला, श्रीनगर
उत्तराखण्ड के गढ़वाल अंचल में श्रीनगर में बैकुंठ चतुर्दशी का मेला प्रतिवर्ष लगा करता है। श्रीनगर स्थित कमलेश्वर मन्दिर पौराणिक मन्दिरों में से है। इसकी अतिशय धार्मिक महत्ता है, किवदंती है कि यह स्थान देवताओं की नगरी भी रही है। इस शिवालय में भगवान विष्णु ने तपस्या कर सुदर्शन-चक्र प्राप्त किया तो श्री राम ने रावण वध के उपरान्त ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति हेतु कामना अर्पण कर शिव जी को प्रसन्न किया व पापमुक्त हुए।
उत्तराखण्ड के गढ़वाल अंचल में श्रीनगर में बैकुंठ चतुर्दशी का मेला प्रतिवर्ष लगा करता है।इस स्थान की प्राचीन महत्ता के कारण कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की चौदवीं तिथि को भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र प्राप्ति का पर्व माना गया है। इसे उपलब्धि का प्रतीक मानकर आज भी श्रृद्धालू पुत्र प्राप्ति की कामना से प्रतिवर्ष इस पर्व पर रात्रि में साधना करने हेतु मन्दिर में आते हैं। अनेक श्रृद्धालु दर्शन व मोक्ष के भाव से इस मन्दिर में आते हैं। जिससे उत्तराखण्ड के गढवाल क्षेत्र में यह मेला एक विशिष्ठ धार्मिक मेले का रूप ले चुका है।
श्रीनगर जो प्राचीन काल में श्री क्षेत्र कहलाता था। त्रेता युग में रावण वधकर रामचन्द्र जी द्वारा यहाँ पर 108 कमल प्रतिदिन एक माह तक भगवान शिव का अर्पण किया जाने का वर्णन मिलता है। प्रतिवर्ष कार्तिक मास की त्रिपुरोत्सव पूर्णमासी को जब विष्णु भगवान ने सहस कमल पुष्पों से अर्चनाकर शिव को प्रसन्न कर सुदर्शन चक्र प्राप्त किया था, उस आधार पर वैकुण्ठ चतुर्दशी पर्व पर पुत्र प्राप्ति की कामना हेतु दम्पत्ति रात्रि को हाथ में दीपक धारण कर भगवान शंकर को मनोवांछित फल प्राप्ति हेतु प्रसन्न करते हैं।