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Aarti Kya Hai Aur Aarti Ka Mahatva-आरती क्या है, महत्व, कब और कैसे करें आरती

Posted on March 23, 2021February 12, 2024 by santwana

Aarti ka Mahatva

हिन्दू धर्म की पूजा पद्धति में आरती करने का महत्व बहुत ज्यादा है। पूजा की समाप्ति पर आरती करने का विधान है। किसी भी पूजा-पाठ, यज्ञ, अनुष्ठान आदि के अंत में आरती की जाती है।अग्नि को अत्यंत पवित्र माना जाता है तथा आरती में देसी घी, कपूर, धूप आदि वस्तुओं का उपयोग होता है जिनसे वातावरण शुद्ध हो जाता है और नकारात्मकता दूर होती है ।

विषय-सूची
  1. आरती क्या है-Aarti Kya Hai
  2. आरती कैसे करें-Aarti kaise karen
  3. आरती करने का महत्व-Aarti Ka Mahatva
  4. आरती के प्रकार- Aarti Ke Prakar
    • Mangala Aarti-मंगला आरती
    • Shringar Aarti-श्रृंगार आरती
    • Bhog Aarti-भोग आरती
    • Sandhya Aarti-संध्या आरती
    • Shyan Aarti-शयन आरती
  5. आरती के पश्चात की जाने वाली स्तुति-Aarti Stuti

आरती क्या है-Aarti Kya Hai

आरती को “आरात्रिका” अथवा “आरार्तिक” और “नीराजन” भी कहते हैं। पूजा के अंत में आरती की जाती है। पूजन में जो त्रुटि रह जाती है ,आरती द्वारा उसकी पूर्ति होती है। स्कंद पुराण में कहा गया है –

“मन्त्रहीनं क्रियाहीनं यत् कृतं पूजनं हरे:।
सर्वं सम्पूर्णतामेति कृते नीराजने शिवे।।”

पूजन मंत्रहीन और क्रियाहीन होने पर भी नीराजन (आरती) कर लेने से उसमें सारी पूर्णता आ जाती है।

आरती कैसे करें-Aarti kaise karen

आरती करने के लिए एक थाल में ज्योति एवं विशेष वस्तुएं रखकर भगवान के सम्मुख घुमाते हैं। भगवान से ऊर्जा उस आरती के माध्यम से ग्रहण करते हैं।

आरती के थाल में अलग -अलग वस्तुएं रखने का अपना महत्व है। सबसे ज्यादा महत्व आरती के साथ गाई जाने वाली स्तुति की है। जितने भाव से स्तुति गायी जाएगी आरती उतनी ही अधिक प्रभावशाली होगी।

आरती में पहले मूलमंत्र (भगवान या जिस देवता का जिस मंत्र से पूजन किया गया हो ,उस मंत्र ) के द्वारा तीन बार पुष्पांजलि देनी चाहिए और ढोल, नगाड़े, शंख ,घड़ियाल आदि महावाद्यों की ध्वनि तथा जय जयकार  के शब्द के साथ शुद्ध पात्र में घृत से या कपूर से विषम संख्या की अनेक बत्तियां जलाकर आरती करनी चाहिए।

ततश्च मूलमन्त्रेण दत्वा पुष्पांजलित्रयम।
महानीराजनं  कुर्यान्महावाद्यजयस्वनैः।।   

प्रज्वलयेत तदर्थ च कर्पूरेण घृतेन वा।
आरार्तिकं शुभे पात्र विषमानेकवर्तिकम।।

साधारणतः पाँच बत्तियों से आरती की जाती है ,इसे पंच प्रदीप भी कहते हैं। एक, सात या उससे भी अधिक बत्तियों से आरती की जाती है। बत्तियों की संख्या एक ,पाँच ,सात ,नौ ,ग्यारह या इक्कीस रखनी चाहिए। तीन या तेरह संख्या अशुभ मानी जाती हैं।

कुमकुम, अगर, कपूर, चन्दन, रुई और देशी घी, धूप की एक, पाँच या सात बत्तियां बनाकर शंख, घण्टा आदि बाजे बजाते हुए आरती करनी चाहिए।

आरती के पाँच अंग होते हैं। प्रथम दीपमाला के द्वारा ,दूसरे जल युक्त शंख से ,तीसरे धुले हुए वस्त्र से ,चौथे आम और पीपल आदि के पत्तों से और पाँचवें साष्टांग दंडवत से आरती करें। आरती उतारते समय सर्वप्रथम भगवान की प्रतिमा के चरणों में उसे चार बार घुमायें ,दो बार नाभि देश में ,एक बार मुख मण्डल पर और सात बार समस्त अंगों पर घुमायें।

आरती करने का महत्व-Aarti Ka Mahatva

चक्षुर्द सर्व लोकानां तिमिरस्य निवारणं।
आर्तिक्यं कल्पितं भक्त्यां गृहाण परमेश्वरः।।

वास्तव में आरती पूजन के अन्त में इष्टदेव की प्रसन्नता के हेतु की जाती है। इसमें इष्टदेव को दीपक दिखाने के साथ ही उनका स्तवन तथा गुणगान किया जाता है।

धूपं चारात्रिकं पश्येत कराभ्यां च प्रवन्दते।
कुल कोटिं समुद्धृत्य याति विष्णोः परं पदम्।।

जो प्राणी धूप आरती को भक्ति भाव से देखता है तथा दोनों हाथों से आरती को श्रद्धा पूर्वक लेता है ,वह अपनी करोड़ों पीढ़ियों का उद्धार कर लेता है और विष्णु लोक में परम पद को प्राप्त होता है।

  • इसके अतिरिक्त आरती के द्वारा पूजा में पूर्णता आती है तथा जो त्रुटि रह जाती है वो समाप्त होती है।
  • आरती करने से नकारात्मकता दूर होती है तथा वातावरण शुद्ध और सकारात्मक होता है।
  • आरती भक्तों में नई ऊर्जा और उत्साह का संचार करती है तथा वातावरण को और भक्तिमय बनाती है।

आरती के प्रकार- Aarti Ke Prakar

Mangala Aarti-मंगला आरती

मंगला आरती दिन की पहली आरती है, इसका का अर्थ होता है “दिन शुभ (अच्छा) का प्रारम्भ”। यह आरती प्रातः भगवान को जगाने हेतु की जाती है। विभिन्न मंदिरों में सूर्योदय के पहले मंगला आरती का विधान है। शंख की ध्वनि के साथ प्रभु को जगाया जाता है। भोग लगाया जाता है और कीर्तन किया जाता है।

काशी विश्वनाथ मंदिर में प्रतिदिन सूर्योदय से पहले सुबह 3 से 4 बजे के बीच मंगला आरती की जाती है। यह काशी विश्वनाथ मंदिर के प्रमुख आकर्षणों में से एक है क्योंकि जो कोई भी इसमें शामिल होता है, उसे प्रार्थना करने और देवता के पास जाने की अनुमति होती है। चूंकि सभी पुष्प चढ़ाए हटा दिए जाते हैं, अतः भक्त मूल लिंगम को उसकी पूरी भव्यता में देख सकते हैं। अनुष्ठान के बाद अभिषेकम होता है, जहां लिंगम को फिर से ताजा मालाओं और फूलों से सजाया जाता है। इसके बाद प्रसाद वितरित किया जाता है।

इसी प्रकार से महाकाल में भोर के समय होने वाली भस्म आरती विश्व-प्रसिद्ध है। वृन्दावन में भी भिन्न मंदिरों में होने वाली मंगल आरती का विशेष महत्व होता है।

Shringar Aarti-श्रृंगार आरती

यह आरती प्रातः काल भगवान के श्रृंगार के बाद की जाती है। मथुरा वृन्दावन समेत कई अन्य बड़े मंदिरों में प्रभु का श्रृंगार करने के उपरांत आरती की जाती है। अधिकांश मंदिरों में यह आरती प्रातः 8-9 बजे के बीच होती है।

Bhog Aarti-भोग आरती

यह आरती में भगवान  को भोजन का भोग लगाते लगाते समय होती है। अधिकांश मंदिरों में यह आरती 11-12 के बीच होती है। भोग लगाने के पश्चात भोग को प्रसाद रूप में भक्तों में वितरित कर दिया जाता है।

Sandhya Aarti-संध्या आरती

सूर्यास्त के समय में संध्या काल में पूजन के पश्चात संध्या आरती करने का विधान है। संध्या पूजन करने से अनेक प्रकार के दोष का नाश होता है।संध्या आरती करने से ग्रह दोष और वास्तु दोष भी समाप्त होते हैं। सभी मंदिरों में यह आरती होती है। यह आरती संध्याकाल में 6-7 बजे के बीच होती है।
यदि आप कोई और आरती या पूजन न भी कर पाएं तो संध्या आरती अवश्य करनी चाहिए।इस आरती को करने से घर के अनेक वास्तु-दोष समाप्त हो जाते हैं और घर से नकारात्मकता दूर होती है।

Shyan Aarti-शयन आरती

रात्रि में भगवान को भोग लगाने के पश्चात शयन आरती की जाती है। इस आरती के पश्चात मंदिर के पट बंद हो जाते है और भगवान शयन में चले जाते हैं ।

आरती के पश्चात की जाने वाली स्तुति-Aarti Stuti

हिंदू धर्म में  मंदिरों में या घरों में होनी वाली दैनिक पूजा विधान में देवी देवताओं की आरती पूर्ण होने के बाद भगवान की स्तुति करने का विधान  है । सभी देवी-देवताओं की स्तुति के मंत्र भी अलग-अलग हैं, लेकिन जब भी यज्ञ या पूजा-पाठ संपन्न होता है, तो उसके बाद भगवान की आरती की जाती और आरती के पूर्ण होते ही निम्न दिव्य व अलौकिक मंत्रों को विशेष रूप से बोला जाता है ।

कर्पूरगौरं करुणावतारं, संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् ।
सदावसन्तं हृदयारविन्दे, भवं भवानीसहितं नमामि ॥

इस मंत्र में भगवान शिव की स्तुति की गई है ।  कपूर के समान गौर वर्ण वाले , करुणा के जो साक्षात् अवतार हैं, समस्त सृष्टि के जो सार हैं, जो सांप को हार के रूप में धारण करते हैं ।  जो शिव, पार्वती के साथ सदैव मेरे हृदय में निवास करते हैं, उनको मेरा नमस्कार है ।

त्वमेव माता च पिता त्वमेव ।त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
त्वमेव विद्या द्रविणम् त्वमेव ।त्वमेव सर्वम् मम देव देव ॥

हे प्रभु! आप ही माता हो, आप ही मेरे पिता भी हो, बंधु भी आप  ही हैं, सखा भी आप ही हैं । आप ही मेरे विद्या, आप ही धन  भी हैं। हे भगवान! आप ही मेरे सर्वेसर्वा हैं।

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Category: Aarti

4 thoughts on “Aarti Kya Hai Aur Aarti Ka Mahatva-आरती क्या है, महत्व, कब और कैसे करें आरती”

  1. Archana johari says:
    July 5, 2021 at 12:37 am

    बहुत अच्छी जानकारी धन्यवाद।

    Reply
  2. Rajan Vaid says:
    July 9, 2021 at 2:46 am

    Nice information

    Reply
    1. santwana says:
      July 10, 2021 at 4:55 am

      thank you

      Reply
  3. Pingback: जाने कैसे मनायें बसंत पंचमी ,क्या हैं विशेष ज्योतिषीय उपाय-Vasant Panchami Astrological Remedies 202 - astroradiance.com

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