astroradiance.com
Menu
  • Blog
  • About Us
  • Contact Us
  • Stotra/ Stuti
  • Astrology Hindi
  • Terms of Service
  • Services Offered
  • Consultation
Menu
Bhaja Govindam Hindi Arth

भज गोविन्दम् का हिंदी अर्थ सहित-Bhaja Govindam Hindi Arth

Posted on February 8, 2023April 12, 2024 by santwana

भज गोविन्दम्(Bhaja Govindam) जगद्गुरु आदि शंकराचार्य द्वारा लिखा गया था। इसे मोह मुद्गर(Moha Mudgara) नाम से भी जाना जाता है। भज गोविन्दम् आदि शंकराचार्य की छोटी रचनाओं में से एक है। यद्यपि  यह भजन के रूप में गाया जाता है, परन्तु इसमें वेदांत का सार शामिल है और यह मनुष्य को यह सोचने के लिए प्रेरित करता है कि मैं यहाँ इस जीवन में क्यों हूं? मैं धन, परिवार क्यों जमा कर रहा हूं, लेकिन शांति नहीं  है ? सत्य क्या है ? जीवन का उद्देश्य क्या है ? इस प्रकार जाग्रत व्यक्ति आंतरिक मार्ग के पथ पर चलकर ईश्वर को जान सकता है।

विषय-सूचि
  1. Bhaj Govindam Hindi Arth-भज गोविन्दम् का हिंदी अर्थ
  2. Bhaja Govindam Lyrics Sanskrit-भज गोविन्दम् लिरिक्स

Bhaj Govindam Hindi Arth-भज गोविन्दम् का हिंदी अर्थ

Bhaja Govindam Hindi Arth

भज गोविन्दम् भज गोविन्दम्, गोविन्दं भज मूढ़मते।
संप्राप्ते सन्निहिते काले, नहि नहि रक्षति डुकृङ्करणे॥1॥

हे मूर्ख बुद्धि वाले (मोह से ग्रसित), गोविंद को भजो, गोविंद को भजो, गोविंद को भजो क्योंकि अंत समय निकट होने पर  में व्याकरण के नियम तुम्हारी  रक्षा नहीं कर सकते हैं॥1॥

मूढ़ जहीहि धनागमतृष्णाम्, कुरु सद्बुद्धिमं मनसि वितृष्णाम्।
यल्लभसे निजकर्मोपात्तम्, वित्तं तेन विनोदय चित्तं॥2॥

हे मूर्ख बुद्धि वाले! धन एकत्रित करने के लोभ लोभ का त्याग करो। अपने मन से समस्त कामनाओं को त्याग कर, मन  को सत्य की खोज में लगाओ। अपने परिश्रम(कर्म से) से जो धन प्राप्त हो उससे ही अपने मन को प्रसन्न रखो॥2॥

नारीस्तनभरनाभीदेशम्, दृष्ट्वा मागा मोहावेशम्।
एतन्मान्सवसादिविकारम्, मनसि विचिन्तय वारं वारम्॥3॥

स्त्री के स्तन और नाभि आदि अंगों  पर मोहित होकर आसक्त मत हो। अपने मन में निरंतर स्मरण करो कि ये मांस-वसा आदि के विकार(रूपांतरण अर्थात ये मांस का ही रूप है) के अतिरिक्त कुछ और नहीं हैं॥3॥

नलिनीदलगतजलमतितरलम्, तद्वज्जीवितमतिशयचपलम्।
विद्धि व्याध्यभिमानग्रस्तं, लोकं शोकहतं च समस्तम्॥4॥

मनुष्य का जीवन कमल-पत्र पर पड़ी हुई पानी की बूंदों के समान अनिश्चित एवं अल्प (क्षणभंगुर) है। यह जान लो कि यह समस्त संसार व्याधि(रोग), अहंकार और दु:ख में डूबा हुआ है॥4॥

यावद्वित्तोपार्जनसक्त:, तावन्निजपरिवारो रक्तः।
पश्चाज्जीवति जर्जरदेहे, वार्तां कोऽपि न पृच्छति गेहे॥5॥

999Store Wooden Stretched Lord Gautam Buddha Budha paintings painting buddha with frame wall art bed room living décor home Golden Meditating Wall frames canvas modern stylish hanging ( Canvas 24X36 Inches Strectched Canvas) FLP24360073
999Store Wooden Stretched Lord Gautam Buddha Budha paintings painting buddha with frame wall art bed room living décor home Golden Meditating Wall frames canvas modern stylish hanging ( Canvas 24X36 Inches Strectched Canvas) FLP24360073
StickMe 'The Mind is Everything - What You Think You Become -Buddha - Office - Inspirational - Motivational - Quotes - Wall Sticker' -SM737 (Multi Colour, Vinyl - 100cm X 100 cm)
StickMe ‘The Mind is Everything – What You Think You Become -Buddha – Office – Inspirational – Motivational – Quotes – Wall Sticker’ -SM737 (Multi Colour, Vinyl – 100cm X 100 cm)
Kartique God Gautam Buddha Brass Idol Statue Murti Sitting Position Draped in Stone Embellished Shawl for Home Decoration Table Showpiece Height 5.5"
Kartique God Gautam Buddha Brass Idol Statue Murti Sitting Position Draped in Stone Embellished Shawl for Home Decoration Table Showpiece Height 5.5″

जबतक व्यक्ति धनोपार्जन में समर्थ है, तब तक परिवार में सभी उसके प्रति स्नेह प्रदर्शित करते हैं परन्तु बुढ़ापे में या जब शरीर जर्जर हो जाता है उसे सामान्य बातचीत में भी नहीं पूछा जाता है॥5॥

यावत्पवनो निवसति देहे, तावत् पृच्छति कुशलं गेहे।
गतवति वायौ देहापाये, भार्या बिभ्यति तस्मिन्काये॥6॥

जब तक शरीर में प्राण रहते हैं तब तक ही लोग कुशल पूछते हैं। शरीर से प्राण वायु के निकलते ही पत्नी भी उस शरीर से डरती है॥6॥

बालस्तावत् क्रीडासक्तः, तरुणस्तावत् तरुणीसक्तः।
वृद्धस्तावच्चिन्तासक्तः, परे ब्रह्मणि कोऽपि न सक्तः॥7॥

व्यक्ति की बाल्यावस्था में खेल में आसक्ति(रूचि) होती है , युवावस्था में युवा स्त्री के प्रति आसक्ति(आकर्षण) होता है, वृद्धावस्था में चिंताओं से घिरे रहते हैं लेकिन परम ब्रह्म से किसी की आसक्ति(आकर्षण) नहीं  होती है॥7॥

का ते कांता कस्ते पुत्रः, संसारोऽयमतीव विचित्रः।
कस्य त्वं वा कुत अयातः, तत्त्वं चिन्तय तदिह भ्रातः॥8॥

कौन तुम्हारी पत्नी है, कौन तुम्हारा पुत्र है, ये संसार का चक्रअत्यंत विचित्र है, तुम कौन हो, कहाँ से आये हो, बन्धु ! इस बात को पहले जान लो॥8॥

सत्संगत्वे निस्संगत्वं, निस्संगत्वे निर्मोहत्वं।
निर्मोहत्वे निश्चलतत्त्वं निश्चलतत्त्वे जीवन्मुक्तिः॥9॥

सत्संग से वैराग्य आता है, वैराग्य से निर्मोह(भ्रम से मुक्ति) मिलती है, निर्मोह से स्थिर तत्त्वज्ञान और तत्त्वज्ञान से मोक्ष(जन्म मरण के चक्र से मुक्ति) की प्राप्ति होती है॥9॥

व यसि गते कः कामविकारः, शुष्के नीरे कः कासारः।
क्षीणे वित्ते कः परिवारः, ज्ञाते तत्त्वे कः संसारः॥10॥

आयु बीत जाने के बाद काम भाव व्यर्थ है, पानी सूख जाने पर तालाब का व्यर्थ(काम का नहीं) है , धन चले जाने पर परिवार(रिश्तेदार) नहीं रहते और तत्त्व ज्ञान होने के बाद संसार(जन्म मरण का चक्र) नहीं रहता॥10॥

मा कुरु धनजनयौवनगर्वं, हरति निमेषात्कालः सर्वं।
मायामयमिदमखिलम् हित्वा, ब्रह्मपदम् त्वं प्रविश विदित्वा॥11॥

धन, जन(मित्र) और यौवन पर गर्व मत करो, समय क्षण भर में इनको नष्ट कर देता है| इस संसार को इस माया से घिरा हुआ जान कर तुम परमब्रह्म को प्राप्त करो॥11॥

दिनयामिन्यौ सायं प्रातः,शिशिरवसन्तौ पुनरायातः।
कालः क्रीडति गच्छत्यायुः, तदपि न मुञ्चत्याशावायुः ॥12॥

दिन और रात, शाम और सुबह, सर्दी और बसंत बार-बार आते-जाते रहते है। काल की इस क्रीडा के साथ जीवन नष्ट होता रहता है, यह जानते हुए भी इच्छाओ का अंत कभी नहीं होता है॥१२॥

काते कान्ता धन गतचिन्ता, वातुल किं तव नास्ति नियन्ता।
त्रिजगति सज्जनसंगतिरैका, भवति भवार्णवतरणे नौका॥13॥

मूर्ख तुम्हें पत्नी और धन की इतनी चिंता क्यों है, क्या उनका कोई नियंत्रक नहीं है| तीनों लोकों में केवल सज्जनों की संगति ही इस भवसागर(संसार के चक्र) से पार जाने की नौका है॥13॥

द्वादशमंजरिकाभिरशेषः, कथितो वैयाकरणस्यैषः।
उपदेशोऽभूद्विद्यानिपुणैः, श्रीमच्छंकरभगवच्चरणैः॥13अ॥

बारह गीतों का ये पुष्पहार(2-13), सर्वज्ञ प्रभुपाद श्री शंकराचार्य द्वारा एक वैयाकरण को प्रदान किया गया॥१२अ॥

जटिलो मुण्डी लुञ्छितकेशः, काषायाम्बरबहुकृतवेषः।
पश्यन्नपि च न पश्यति मूढः, उदरनिमित्तं बहुकृतवेषः॥14॥

बड़ी जटाएं, केश रहित सिर, बिखरे बाल , काषाय (भगवा) वस्त्र और भांति भांति के वेश , अरे मोहित मनुष्य तुम इसको देख कर भी क्यों नहीं देख पाते हो कि ये सब वेश अपना पेट भरने के लिए ही धारण किये जाते हैं॥14॥

अङ्गं गलितं पलितं मुण्डं, दशनविहीनं जतं तुण्डम्।
वृद्धो याति गृहीत्वा दण्डं, तदपि न मुञ्चत्याशापिण्डम्॥15॥

अंगों के क्षीण हो जाने पर, पके हुए बालों, दांतों से रहित मुख और हाथ में दंड लेकर चलने वाला वृद्ध भी इच्छाओं से बंधा रहता है॥15॥

अग्रे वह्निः पृष्ठेभानुः, रात्रौ चुबुकसमर्पितजानुः।
करतलभिक्षस्तरुतलवासः, तदपि न मुञ्चत्याशापाशः॥16॥

सूर्यास्त के बाद, रात्रि में अग्नि जला कर और सर्दी से बचने के लिए घुटनों में सर छिपाने वाला , हाथ में भिक्षा का अन्न खाने वाला, पेड़ के नीचे रहने वाला भी अपनी इच्छाओं के बंधन को छोड़ नहीं पाता है॥16॥

कुरुते गङ्गासागरगमनं, व्रतपरिपालनमथवा दानम्।
ज्ञानविहिनः सर्वमतेन, मुक्तिं न भजति जन्मशतेन॥17॥

किसी के गंगासागर जाने से, व्रत रखने से और दान देने से यह सब करने से भी ज्ञान विहीन रहने पर (मनुष्य को) सौ जन्मों में भी मुक्ति नहीं प्राप्त हो सकती है॥17॥

सुर मंदिर तरु मूल निवासः, शय्या भूतल मजिनं वासः।
सर्व परिग्रह भोग त्यागः, कस्य सुखं न करोति विरागः॥18॥

देवता के मंदिर या पेड़ के नीचे निवास करने वाला, पृथ्वी को शय्या बनाने वाला, अकेले ही रहने वाले, सभी संग्रहों और सुखों का त्याग करने वाले वैराग्य से किसको आनंद की प्राप्ति नहीं होगी॥18॥

योगरतो वाभोगरतोवा, सङ्गरतो वा सङ्गवीहिनः।
यस्य ब्रह्मणि रमते चित्तं, नन्दति नन्दति नन्दत्येव॥19॥

कोई योग(आत्म नियंत्रण) में लगा हो या भोग(सांसारिक सुखों में) में, किसी के संग(साथ) हो या निसंग(अकेला) हो, परन्तु जिसका मन निरंतर ब्रह्म में लगा रहता है वो ही आनंद प्राप्त करता है, आनंद ही प्राप्त करता है॥19॥

भगवद् गीता किञ्चिदधीता, गङ्गा जललव कणिकापीता।
सकृदपि येन मुरारि समर्चा, क्रियते तस्य यमेन न चर्चा॥20॥

जिन्होंने भगवदगीता का थोड़ा सा भी अध्ययन किया है, गंगा जल का कण भर भी पिया है अर्थात भक्ति की है, भगवान विष्णु(मुरारी) की एक बार भी पूजा की है, मृत्यु के देवता यम का उनपर नियंत्रण नहीं होता अर्थात उन्हें मृत्यु के बाद कष्ट नहीं होता ॥20॥

पुनरपि जननं पुनरपि मरणं, पुनरपि जननी जठरे शयनम्।
इह संसारे बहुदुस्तारे, कृपयाऽपारे पाहि मुरारे॥21॥

बार-बार जन्म लेना, बार-बार मृत्यु होना, बार-बार जननी(माँ) के गर्भ में शयन, इस संसार रूपी भवसागर से पार पाना बहुत कठिन है, हे मुरारी(विष्णु) कृपा करके मुझे इससे पार कराइए॥21॥

रथ्या चर्पट विरचित कन्थः,पुण्यापुण्य विवर्जित पन्थः।
योगी योगनियोजित चित्तो, रमते बालोन्मत्तवदेव॥22॥

रथ के नीचे आने से फटे हुए कपड़े पहनने वाले, पुण्य और पाप से रहित पथ पर चलने वाले, योग में अपने चित्त को लगाने वाले योगी, बालक के समान या पागल के समान आनंद में रहते हैं॥22॥

कस्त्वं कोऽहं कुत आयातः, का मे जननी को मे तातः।
इति परिभावय सर्वमसारम्, विश्वं त्यक्त्वा स्वप्न विचारम्॥23॥

तुम कौन हो?, मैं कौन हूँ?, कहाँ से आया हूँ?, मेरी माँ कौन है, मेरा पिता कौन है? सब पर विचार करो और इस विश्व को सारहीन समझ कर इसको एक स्वप्न के समान त्याग दो॥23॥

त्वयि मयि चान्यत्रैको विष्णुः, व्यर्थं कुप्यसि मय्यसहिष्णुः।
भव समचित्तः सर्वत्र त्वं, वाञ्छस्यचिराद्यदि विष्णुत्वम्॥24॥

तुममें, मुझमें और अन्यत्र(सभी जगह) भी सर्वव्यापक विष्णु ही हैं, तुम व्यर्थ ही क्रोध करते हो, यदि तुम शाश्वत विष्णु पद को प्राप्त करना चाहते हो तो सर्वत्र(सभी में) समान चित्त वाले हो जाओ और सभी चीजों में खुद को देखो ॥24॥

शत्रौ मित्रे पुत्रे बन्धौ, मा कुरु यत्नं विग्रहसन्धौ।
सर्वस्मिन्नपि पश्यात्मानं, सर्वत्रोत्सृज भेदाज्ञानम्॥25॥

शत्रु, मित्र, पुत्र, बन्धु-बांधवों(रिश्तेदारों) से प्रेम और द्वेष मत करो, सबमें अपने आप को ही देखो, इस प्रकार सर्वत्र ही भेद रूपी अज्ञान को त्याग दो॥25॥

कामं क्रोधं लोभं मोहं, त्यक्त्वाऽत्मानं भावय कोऽहम्।
आत्मज्ञान विहीना मूढाः, ते पच्यन्ते नरकनिगूढाः॥26॥

काम, क्रोध, लोभ, मोह को त्याग कर, स्वयं में स्थित होकर विचार करो कि मैं कौन हूँ, जो आत्म- ज्ञान से रहित मूढ़(मोह और कामनाओं से ग्रसित) व्यक्ति हैं वो बार-बार इस संसार रूपी नरक में आते रहते हैं॥26॥

गेयं गीता नाम सहस्रं, ध्येयं श्रीपति रूपमजस्रम्।
नेयं सज्जन सङ्गे चित्तं, देयं दीनजनाय च वित्तम्॥27॥

भगवत गीता और भगवान विष्णु के सहस्त्र नामों को गाते हुए लक्ष्मी जी के पति अर्थात भगवान विष्णु के सुन्दर रूप का निरंतर ध्यान करो, सज्जनों के संग में अपने मन को लगाओ और अपने धन से जरुरतमंदो के सेवा करो ॥27॥

सुखतः क्रियते रामाभोगः, पश्चाद्धन्त शरीरे रोगः।
यद्यपि लोके मरणं शरणं, तदपि न मुञ्चति पापाचरणम्॥28॥

लोग सुख प्राप्ति के लिए आनंद-भोग करते हैं, जिसके फलस्वरूप इस शरीर में रोग हो जाते हैं। यद्यपि इस पृथ्वी पर सबका मरण सुनिश्चित है फिर भी लोग पापमय आचरण का त्याग नहीं करते हैं॥28॥

अर्थंमनर्थम् भावय नित्यं, नास्ति ततः सुखलेशः सत्यम्।
पुत्रादपि धनभजाम् भीतिः, सर्वत्रैषा विहिता रीतिः॥29॥

धन कल्याणकारी नहीं है और इससे जरा सा भी सुख नहीं मिल सकता है, ऐसा विचार प्रतिदिन करना चाहिए | धनवान व्यक्ति तो अपने पुत्रों को भी धन देने से डरते हैं,धन की यही रीती है ऐसा सबको पता ही है॥29॥

प्राणायामं प्रत्याहारं, नित्यानित्य विवेकविचारम्।
जाप्यसमेत समाधिविधानं, कुर्ववधानं महदवधानम्॥30॥

प्राणायाम, उचित आहार, नित्य इस संसार की अनित्यता का विवेक पूर्वक विचार करो, प्रेम से प्रभु-नाम का जप करते हुए समाधि में ध्यान दो, इसे नित्य ध्यानपूर्वक करो॥30॥

गुरुचरणाम्बुज निर्भर भक्तः, संसारादचिराद्भव मुक्तः।
सेन्द्रियमानस नियमादेवं, द्रक्ष्यसि निज हृदयस्थं देवम्॥31॥

गुरु के चरण कमलों का ही आश्रय मानकर भक्त बनकर सदैव के लिए इस संसार में आवागमन(जन्म मरण के चक्र)से मुक्त हो जाओ, इस प्रकार मन एवं इन्द्रियों का निग्रह करके तुम अपने हृदय में विराजमान प्रभु के दर्शन करो॥31॥

मूढः कश्चन वैयाकरणो, डुकृञ्करणाध्ययन धुरिणः।
श्रीमच्छम्कर भगवच्छिष्यै, बोधित आसिच्छोधितकरणः॥32॥

इस प्रकार नियमों में खोया हुआ एक मूर्ख व्याकरणविद् अपनी संकीर्ण दृष्टि से मुक्त हो गया और शंकर के शिष्यों द्वारा उसे प्रकाश दिखाया गया। ॥32॥

भज गोविन्दम् भज गोविन्दम्, गोविन्दं भजमूढमते।
नामस्मरणाद न्यमुपायं, नहि पश्यामो भवतरणे॥33॥

हे मूढ़ बुद्धि(मोह से ग्रसित) गोविंद को भजो, गोविन्द का नाम लो, गोविन्द को भजो क्योंकि भगवान के नाम जप के अतिरिक्त इस संसार रूपी भव-सागर से पार जाने का अन्य कोई मार्ग नहीं है॥33॥

Core Asana Half Moon ZAFU Meditation Cushion, Buckwheat Filling, Washable Organic Cotton Cover, Carry Handle, Mindful Comfort, Reduce Tailbone Pressure & Improve Posture (Cyan)
Core Asana Half Moon ZAFU Meditation Cushion, Buckwheat Filling, Washable Organic Cotton Cover, Carry Handle, Mindful Comfort, Reduce Tailbone Pressure & Improve Posture (Cyan)
FOVERA Foldable Meditation Chair, Floor Chair for Living Room & Outdoor, Meditation Block, SS Frame & Washable Cover - Light Weight & Easy to Carry (Dark Grey)
FOVERA Foldable Meditation Chair, Floor Chair for Living Room & Outdoor, Meditation Block, SS Frame & Washable Cover – Light Weight & Easy to Carry (Dark Grey)
NEXTGO Floor Seat Cushions Yoga Meditation Mat Pooja aasan Soft Extra Comfortable Feather Touch Last Long Upto Washable Material Size 24 x 30 Inch 2 x 2.5 Fit Color Orange
NEXTGO Floor Seat Cushions Yoga Meditation Mat Pooja aasan Soft Extra Comfortable Feather Touch Last Long Upto Washable Material Size 24 x 30 Inch 2 x 2.5 Fit Color Orange

Bhaja Govindam Lyrics Sanskrit–भज गोविन्दम् लिरिक्स

bhaj-govindam1
bhaj-govindam2
bhaj-govindam3

Bhaja Govindam Bhaj Govindam Govindam Bhaj Mudmate

शिव तांडव स्तोत्र का हिंदी अर्थ
शिव पंचाक्षर स्तोत्र हिंदी अर्थ
श्री शिव रुद्राष्टकम् हिंदी अर्थ सहित
Category: Sprituality Hindi

1 thought on “भज गोविन्दम् का हिंदी अर्थ सहित-Bhaja Govindam Hindi Arth”

  1. Anil says:
    September 28, 2023 at 12:19 pm

    Very nice post

    Reply

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

About Me

Santwana

Raksha Bandhan Quotes For Brothers And Sisters​

Moon in Vedic Astrology: Impact and Interpretations

Moon in Vedic Astrology: Impact and Interpretations

Radha Ji Ke 16 Naam Hindi Arth Sahit

Radha Ji Ke 16 Naam Hindi Arth Sahit

Ashwani Nakshatra: A Guide to Its Personality Traits and Career Pathways

Ashwani Nakshatra: A Guide to Its Personality Traits and Career Pathways

Decoding Planetary Strength: Vimshopaka Bala

Decoding Planetary Strength: Vimshopaka Bala

  • Aarti
  • Astrology English
  • Astrology Hindi
  • English Articles
  • Festival
  • Quotes
  • Sprituality English
  • Sprituality Hindi
  • Stotra/ Stuti
  • Vrat/Pauranik Katha

Disclaimer

astroradiance.com is a participant in the Amazon Services LLC Associates Program, an affiliate advertising program designed to provide a means for website owners to earn advertising fees by advertising and linking to Amazon.

Read our Privacy & Cookie Policy

  • Our Services
  • Privacy Policy
  • Refund & Cancellation Policy
  • Terms & Conditions
  • Disclaimer
  • Home
  • Blog
  • About Us
  • Contact Us
  • Donate Us
© 2025 astroradiance.com | Powered by Minimalist Blog WordPress Theme