ज्योतिर्लिंग स्वयं प्रकट होते है अर्थात स्वयंभू होते हैं। शिवपुराण की रुद्रसंहिता की कथा के अनुसार जब ब्रह्मा जी और विष्णु जी के मध्य विवाद हुआ तब पहला ज्योति स्तम्भ प्रकट हुआ।
शास्त्रों में 64 ज्योतिर्लिंगों का वर्णन मिलता है जिनमें से हम 12 ज्योतिर्लिंगों और 12 उपज्योतिर्लिंगों के बारे में हमें पता है बाकी के बारे में हमें ज्ञात नहीं है।
इस भूतल पर उपस्थित 12 ज्योतिर्लिंग के नाम है-सौराष्ट्र में सोमनाथ, श्रीशैल पर मलिकार्जुन, उज्जैनी में महाकाल, ओंकार तीर्थ में परमेश्वर ,हिमालय के शिखर पर केदार ,डाकनी में भीमाशंकर ,वाराणसी में विश्वनाथ,गोदावरी के तट पर त्र्यम्बक, चिताभूमि में बैद्यनाथ, दारूकावन में नागेश, सेतुबंध में रामेश्वर तथा शिवालय में घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग हैं।
द्वादशज्योतिर्लिङ्गानि-Dwadash Jyotirling Mantra
सौराष्ट्रे सोमनाधंच श्रीशैले मल्लिकार्जुनम् ।
उज्जयिन्यां महाकालं ॐकारेत्वमामलेश्वरम् ॥
पर्ल्यां वैद्यनाधंच ढाकिन्यां भीम शंकरम् ।
सेतुबंधेतु रामेशं नागेशं दारुकावने ॥
वारणाश्यांतु विश्वेशं त्रयंबकं गौतमीतटे ।
हिमालयेतु केदारं घृष्णेशंतु विशालके ॥
एतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रातः पठेन्नरः ।
सप्त जन्म कृतं पापं स्मरणेन विनश्यति ॥
द्वादशज्योतिर्लिङ्गानि अर्थ–Dwadash Jyotirling Mantra Hindi Arth
सौराष्ट्रे सोमनाधंच श्रीशैले मल्लिकार्जुनम् ।
उज्जयिन्यां महाकालं ॐकारेत्वमामलेश्वरम् ॥
सौराष्ट्र प्रदेश में श्रीसोमनाथ, श्रीशैल पर श्रीमल्लिकार्जुन, उज्जयनी में श्रीमहाकाल, ओम्कारेश्वर अथवा अमलेश्वर।
पर्ल्यां वैद्यनाधंच ढाकिन्यां भीम शंकरम् ।
सेतुबंधेतु रामेशं नागेशं दारुकावने ॥
परली में वैद्यनाथ, डाकिनी नामक स्थान पर श्रीभीमशङ्कर, सेतुबंध पर श्रीरामेश्वर, दारूकावन में श्रीनागेश्वर।
वारणाश्यांतु विश्वेशं त्रयंबकं गौतमीतटे ।
हिमालयेतु केदारं घृष्णेशंतु विशालके ॥
वाराणसी में श्रीविश्वनाथ, गौतमी(गोदावरी ) के तट पर श्री त्रियम्बकेश्वर, हिमालय पर केदारनाथ तट पर श्रीकेदारनाथ और शिवालय में श्री घुश्मेश्वर को स्मरण करे।
एतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रातः पठेन्नरः ।
सप्त जन्म कृतं पापं स्मरणेन विनश्यति ॥
जो मनुष्य प्रतिदिन प्रातःकाल और संध्या के समय इन ज्योतिर्लिंगों का नाम लेता है, उसके सात जन्मों का किया हुआ पाप इन लिङ्गो के स्मरण मात्र से मिट जाता है।