द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र(Dwadash Jyotirling Stotram) इस धरती पर उपस्थित बारह ज्योतिर्लिंगों की महिमा का वर्णन है।
ज्योतिर्लिंग स्वयं प्रकट होते है अर्थात स्वयंभू होते हैं। शिवपुराण की रुद्रसंहिता की कथा के अनुसार जब ब्रह्मा जी और विष्णु जी के मध्य विवाद हुआ तब पहला ज्योति स्तम्भ प्रकट हुआ।
शास्त्रों में 64 ज्योतिर्लिंगों का वर्णन मिलता है जिनमें से हम 12 ज्योतिर्लिंगों और 12 उपज्योतिर्लिंगों के बारे में हमें पता है बाकी के बारे में हमें ज्ञात नहीं है।
इस भूतल पर उपस्थित 12 ज्योतिर्लिंग के नाम है-सौराष्ट्र में सोमनाथ, श्रीशैल पर मलिकार्जुन, उज्जैनी में महाकाल, ओंकार तीर्थ में परमेश्वर ,हिमालय के शिखर पर केदार ,डाकनी में भीमाशंकर ,वाराणसी में विश्वनाथ,गोदावरी के तट पर त्र्यम्बक, चिताभूमि में बैद्यनाथ, दारूकावन में नागेश, सेतुबंध में रामेश्वर तथा शिवालय में घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग हैं।
Dwadash Jyotirling Stotram Lyrics-द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र
सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम् ।
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये ॥
श्रीशैलशृङ्गे विबुधातिसङ्गे तुलाद्रितुङ्गेऽपि मुदा वसन्तम् ।
तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकं नमामि संसारसमुद्रसेतुम् ॥
अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम् ।
अकालमृत्योः परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम् ॥
कावेरिकानर्मदयोः पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय ।
सदैवमान्धातृपुरे वसन्तमोङ्कारमीशं शिवमेकमीडे ॥
पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने सदा वसन्तं गिरिजासमेतम् ।
सुरासुराराधितपादपद्मं श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि ॥
याम्ये सदङ्गे नगरेऽतिरम्ये विभूषिताङ्गं विविधैश्च भोगैः ।
सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकं श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये ॥
महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः ।
सुरासुरैर्यक्ष महोरगाढ्यैः केदारमीशं शिवमेकमीडे ॥
सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं गोदावरितीरपवित्रदेशे ।
यद्धर्शनात्पातकमाशु नाशं प्रयाति तं त्र्यम्बकमीशमीडे ॥
सुताम्रपर्णीजलराशियोगे निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यैः ।
श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं रामेश्वराख्यं नियतं नमामि ॥
यं डाकिनिशाकिनिकासमाजे निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च ।
सदैव भीमादिपदप्रसिद्दं तं शङ्करं भक्तहितं नमामि ॥
सानन्दमानन्दवने वसन्तमानन्दकन्दं हतपापवृन्दम् ।
वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये ॥
इलापुरे रम्यविशालकेऽस्मिन् समुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम् ।
वन्दे महोदारतरस्वभावं घृष्णेश्वराख्यं शरणम् प्रपद्ये ॥
ज्योतिर्मयद्वादशलिङ्गकानां शिवात्मनां प्रोक्तमिदं क्रमेण ।
स्तोत्रं पठित्वा मनुजोऽतिभक्त्या फलं तदालोक्य निजं भजेच्च ॥
इति श्री द्वादशज्योतिर्लिंगस्तोत्रं सम्पूर्णम्।
Dwadash Jyotirling Stotram Arth-द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र हिंदी अर्थ

सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम् ।
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये ॥
जो अपनी भक्ति प्रदान करने के लिए अत्यंत रमणीय तथा निर्मल सौराष्ट्र प्रदेश में दयापूर्वक अवतीर्ण हुए हैं, चन्द्रमा जिनके मस्तक का आभूषण है उन ज्योतिर्लिंग स्वरूप उन भगवान सोमनाथ की शरण में मैं जाता हूँ।
श्रीशैलशृङ्गे विबुधातिसङ्गे तुलाद्रितुङ्गेऽपि मुदा वसन्तम् ।
तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकं नमामि संसारसमुद्रसेतुम् ॥
जो ऊंचाई के आदर्शभूत पर्वतों से भी बढ़कर ऊँचे श्रीशैल के शिखर पर, जहाँ देवताओं का अत्यंत समागम होता रहता है, प्रसन्नतापूर्वक निवास करते हैं, तथा जो संसारसागर से पार कराने के लिए पुल के समान हैं उन एकमात्र मल्लिकार्जुन प्रभु को मैं नमस्कार करता हूँ।
अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम् ।
अकालमृत्योः परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम् ॥
संतजनों को मोक्ष देने के लिए जिन्होंने अवंतिकापुरी(उज्जैन) में अवतार धारण किया है उन महाकाल नाम से विख्यात महादेव जी को मैं अकालमृत्यु से बचने के लिए नमस्कार करता हूँ।
कावेरिकानर्मदयोः पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय ।
सदैवमान्धातृपुरे वसन्तमोङ्कारमीशं शिवमेकमीडे ॥
जो सत्पुरूषों को संसारसागर से पार उतारने के लिए कावेरी और नर्मदा के पवित्र संगम के निकट मान्धाता के पुर में सदा निवास करते हैं, उन अद्वितीय कल्याणमय भगवान ओम्कारेश्वर का मैं स्तवन करता हूँ।
पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने सदा वसन्तं गिरिजासमेतम् ।
सुरासुराराधितपादपद्मं श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि ॥
जो पूर्वोत्तर दिशा में चिताभूमि (वैद्यनाथ धाम) के भीतर सदा ही गिरिजा के साथ निवास करते हैं, देवता और असुर जिनके चरण कमलों की आराधना करते हैं उन श्री वैद्यनाथ जी को मैं प्रणाम करता हूँ।
याम्ये सदङ्गे नगरेऽतिरम्ये विभूषिताङ्गं विविधैश्च भोगैः ।
सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकं श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये ॥
जो दक्षिण के अत्यन रमणीय सदङ्ग नगर में विविध भोगों से संपन्न होकर सुन्दर आभूषणों से भूषित हो रहे हैं जो एकमात्र सद्भक्ति और मुक्ति देने वाले हैं उन प्रभु श्रीनगनाथ जी की शरण में मैं जाता हूँ।
महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः ।
सुरासुरैर्यक्ष महोरगाढ्यैः केदारमीशं शिवमेकमीडे ॥
जो महगिरि हिमालय के पास केदारश्रृंग के तट पर सदा निवास करते हुए मुनिश्वरों द्वारा पूजित होते हैं तथा देवता, असुर, यक्ष और महान सर्प भी जिनकी पूजा करते हैं, उन कल्याणकारक भगवान केदारनाथ का मैं स्तवन करता हूँ।
सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं गोदावरितीरपवित्रदेशे ।
यद्धर्शनात्पातकमाशु नाशं प्रयाति तं त्र्यम्बकमीशमीडे ॥
जो गोदावरी तट के पवित्र देश में सह्याद्रि पर्वत के विमल शिखर पर निवास करते हैं, जिनके दर्शन से पाप तुरंत ही नष्ट हो जाते हैं, उन श्री त्र्यम्बकेश्वर का मैं स्तवन करता हूँ।
सुताम्रपर्णीजलराशियोगे निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यैः ।
श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं रामेश्वराख्यं नियतं नमामि ॥
जो भगवान श्रीराम चंद्र जी के द्वारा ताम्रपर्णी और सागर के संगम में अनेक बाणों द्वारा पुल बाँध कर स्थापित किये गए, उन रामेश्वर को मैं नियम से प्रणाम करता हूँ।
यं डाकिनिशाकिनिकासमाजे निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च ।
सदैव भीमादिपदप्रसिद्दं तं शङ्करं भक्तहितं नमामि ॥
जो डाकिनी और शाकिनी वृन्द में प्रेतों द्वारा सदैव सेवित होते हैं, उन भक्तहितकारी भगवान भीम शङ्कर को मैं प्रणाम करता हूँ।
सानन्दमानन्दवने वसन्तमानन्दकन्दं हतपापवृन्दम् ।
वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये ॥
जो स्वयं अलकनन्द हैं और आनंदपूर्वक आनंदवन(काशीक्षेत्र) में वास करते हैं, जो पापसमूह का नाश करने वाले हैं, उन अनाथों के नाथ काशीपति श्री विश्वनाथ जी की शरण में मैं जाता हूँ।
इलापुरे रम्यविशालकेऽस्मिन् समुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम् ।
वन्दे महोदारतरस्वभावं घृष्णेश्वराख्यं शरणम् प्रपद्ये ॥
जो इलापुर के सुरम्य मंदिर में विराजमान होकर समस्त जगत के आराधनीय हो रहे हैं, जिनका स्वाभाव बड़ा ही उदार है उन घृणेश्वर नामक भगवान शिव की शरण में जाता हूँ।
ज्योतिर्मयद्वादशलिङ्गकानां शिवात्मनां प्रोक्तमिदं क्रमेण ।
स्तोत्रं पठित्वा मनुजोऽतिभक्त्या फलं तदालोक्य निजं भजेच्च ॥
यदि मनुष्य क्रमशः कहे गए इन द्वादश ज्योतिर्लिंग के स्तोत्र का भक्तिपूर्वक पाठ करे तो इनके दर्शन से होने वाला फल प्राप्त कर सकता है।
इति श्री द्वादशज्योतिर्लिंगस्तोत्रं सम्पूर्णम्।