Grahon Ki Awastha-ग्रहों की अवस्था
हम जानते हैं कि ग्रह सतत रूप से गतिशील रहते हैं।ग्रह भचक्र की विभिन्न राशियों में सतत गोचर करते हुए विशिष्ट स्थितयों को प्राप्त करते हैं, जिन्हे ग्रहों की अवस्था(Grahon Ki Awastha) कहा जाता है।
- Grahon Ki Awastha-ग्रहों की अवस्था
- Grahon Ki 5 Baladi Awastha-ग्रहों की 5 बालादि अवस्थाएं
- Grahon Ki 3 Jagritadi Awastha-ग्रहों की 3 जाग्रतादि अवस्था
- Grahon Ki 6 Lajjitadi Awastha-ग्रहों की 6 लज्जितादि अवस्था
- Grahon Ki 9 Deeptadi Awastha-ग्रहों की 9 दीप्तादि अवस्था
- Grahon Ki 12 Shyanadi Awastha-ग्रहों की 12 शयनादि अवस्था
- Reference Books-संदर्भ पुस्तकें
हम विभिन्न प्रकार से ग्रहों की अवस्थाओं का वर्गीकरण कर सकते हैं।
- ग्रहों की 5 बालादि अवस्था
- ग्रहों की 3 जाग्रतादि अवस्था
- ग्रहों की 6 लज्जितादि अवस्था
- ग्रहों की 9 दीप्तादि अवस्था
- ग्रहों की 12 शयनादि अवस्था
Grahon Ki 5 Baladi Awastha-ग्रहों की 5 बालादि अवस्थाएं
किसी राशि में कोई ग्रह अंशों के आधार पर पांच स्थितियों को प्राप्त करता है-बाल, कुमार, युवा, वृद्ध, मृत। विषम राशियों में यह अवस्था 6 अंश प्रति अवस्था से अंशों के आरोही क्रम में होती हैं जबकि विषम राशि में यह 6 अंश प्रति अवस्था के हिसाब से अवरोही क्रम में होती है।
विषम राशि में 0°-6° के बीच बालावस्था, 6°-12 के बीच कुमार, 12-18 के बीच युवावस्था, 18-24 के बीच वृद्ध अवस्था, 24-30 के बीच मृत अवस्था होती है। सम राशियों में अवस्था का क्रम इसके विपरीत होता है।
Grahon Ki 3 Jagritadi Awastha-ग्रहों की 3 जाग्रतादि अवस्था
कोई ग्रह अपनी उच्च राशि,स्वराशि,मित्र राशि, सम राशि, नीच राशि या शत्रु राशि में स्थित हो ,उस आधार पर ग्रहों की जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्त तीन अवस्थाएं होती हैं।
Jagrit Awastha-जाग्रत अवस्था
जब ग्रह स्वराशि, मूलत्रिकोण या उच्च राशि में हो तो वह जाग्रत अवस्था में होता है। जाग्रत अवस्था में ग्रह उत्तम अवस्था में होता है तथा वह अपना सौ प्रतिशत फल देने वाला होता है। इसमें उसके गुण प्रभावशाली रुप से अच्छे फलों का प्रतिपादन करते हैं।
Swapn Awastha-स्वप्न अवस्था
जब ग्रह मित्र या सम राशि में हो तो उसे स्वप्नावस्था में कहते हैं। इस अवस्था में ग्रह मध्यम बल का होता है। वह अपना पचास प्रतिशत तक फल देने वाला होता है।
Sushupta Awastha-सुषुप्त अवस्था
जब कोई ग्रह नीच या शत्रु राशि में हो तो वह सुषुप्त अवस्था में होता है। इस अवस्थ अमें ग्रह अधम या अक्षम होता है तथा वह नगण्य फल देता है।
Grahon Ki 6 Lajjitadi Awastha-ग्रहों की 6 लज्जितादि अवस्था
Lajjit Awastha-लज्जित अवस्था
यदि ग्रह पंचम भाव में राहु-केतु, सूर्य शनि अथवा मंगल के साथ स्थित हो तो उसे लज्जित अवस्था में कहते हैं। लज्जावती अवस्था में जातक को ईश्वर में अविश्वाश(नास्तिक), ज्ञान का ह्रास, संतान का नुकसान, बुरी बातों में रूचि आदि होता है।
Garvit Awastha-गर्वित अवस्था
ग्रह उच्च या मूलत्रिकोण राशि में हो तो वह गर्वित अवस्था में होता है। यदि ग्रह गर्वित अवस्था में हो तो उसे नए घर, बाग के कारण सुख मिलेगा, कला में निपुण होगा, आर्थिक लाभ होंगे और व्यापार में बढ़ोतरी होगी।
Kshudit Awastha-क्षुदित अवस्था
अगर ग्रह शत्रु राशि में हो या शत्रु के साथ युति या दृष्टि हो या शनि द्वारा दृष्ट हो तो वह क्षुदित अवस्था में होता है। क्षुदित ग्रह की दशा में शोक,मोह,परिजनों के कष्ट से मानसिक व्यथा, कृशता, शत्रु से विवाद, धन की हानि और विरोध से बुद्धि की हानि होती है।
Trishit Awastha-तृषित अवस्था
यदि ग्रह जल तत्व राशि में और पापी ग्रह द्वारा दृष्ट हो और शुभ ग्रह से दृष्ट न हो तो उसे तृषित अवस्था में कहते हैं। तृषित अवस्था में स्त्री संसर्ग से रोग, दुष्ट कार्य का अधिकार, अपने ही लोगों के विवाद से धन की हानि, कृशता, दुष्टों से कष्ट और मानहानि होती है।
Mudit Awastha-मुदित अवस्था
जब ग्रह मित्र राशि में हो और शुभ ग्रह के साथ सम्बन्ध हो या बृहस्पति के साथ हो तो उसे मुदित अवस्था में कहते हैं। यदि ग्रह मुदित अवस्था में जातक को मकान, वस्त्र, गहने, भूमि और पत्नी का सुख, सम्बन्धियों का सुख, राजसिक जगह निवास, शत्रुओं का विनाश और ज्ञान और विद्या की प्राप्ति होती है।
Kshobit Awastha-क्षोभित अवस्था
कोई ग्रह जब सूर्य के साथ हो और शत्रु या पापी ग्रह द्वारा दृष्ट हो तो वह क्षोभित अवस्था में होता है। क्षोभित अवस्था में जातक को अति दरिद्रता, दुष्ट स्वाभाव, दुःख, कर्जा, पाँव में कष्ट और राजा के क्रोध के कारण धनप्राप्ति में बाधा का सामना करना पड़ता है।
Grahon Ki 9 Deeptadi Awastha-ग्रहों की 9 दीप्तादि अवस्था
1) Deept Awastha-दीप्त अवस्था
जब ग्रह अपनी उच्च राशि में हो।
2)Swastha Awstha-स्वस्थ अवस्था
जब ग्रह स्वग्रही हो।
3)Mudit Awstha-मुदित अवस्था
जब ग्रह अपने परम मित्र की राशि में हो।
4)Shant Awastha-शांत अवस्था
जब ग्रह अपने मित्र की राशि में हो।
5)Shakt Awstha-शक्त अवस्था
जब ग्रह उदित (जो अस्त नहीं ) हो।
6)Koop Awstha-कोप अवस्था
जब ग्रहअस्त हो।
7)Deen Awastha-दीन अवस्था
जब ग्रह सम राशि में हो।
8)Vikal Awastha-विकल अवस्था
जब ग्रह पाप ग्रहों से युक्त हो।
9)Khal Awastha-खल अवस्था
जब ग्रह शत्रु राशि में हो।
Grahon Ki 12 Shyanadi Awastha-ग्रहों की 12 शयनादि अवस्था
ग्रहों की अन्य 12 शयनादि अवस्थाएं होती हैं। जो कि निम्न चार्ट में दी हुई हैं।
शयनादि अवस्था की गणना निम्न सूत्र द्वारा होती है।
{ग्रह की नक्षत्र संख्या X ग्रह सं X नवांश सं(1 से 9)} +( जन्म नक्षत्र +घटी +लग्न सं )
———————————————————————————— =अवस्था(A)
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इसके पश्चात् ग्रहों की उप अवस्था दृष्टि, चेष्टा और उपवस्था को निकालते हैं। दृष्टि में ग्रहों की अवस्था का अल्पफल, चेष्टा में अधिक फल और विचेष्टा में निष्फल होता है।
उप अवस्था को निम्न दो पदों द्वारा निकाला जाता है
(A X A + नाम के पहले अक्षर का स्वरांक)/12= शेषफल(R)
(R +ग्रह का ध्रुवांक)/3 = उप अवस्था
यदि शेषफल 1 हो तो दृष्टि, २ हो तो चेष्टा और 0 या 3 हो तो विचेष्टा उप अवस्था होती है।
Reference Books-संदर्भ पुस्तकें
- Brihat Parashara Hora Shastra –बृहत पराशर होराशास्त्र
- Phaldeepika (Bhavartha Bodhini)–फलदीपिका
- Saravali–सारावली
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