Guru Purnima
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। गुरु पूर्णिमा भारतवर्ष की महान गुरु शिष्य परम्परा को समर्पित पर्व है। यह दिन गुरु और शिष्य दोनों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इस दिन शिष्य अपने गुरु का पूजन और वंदन कर उनके द्वारा प्रदान किए ज्ञान के प्रति आभार प्रकट करते हैं।
Guru Purnima Tithi-गुरु पूर्णिमा तिथि
गुरु पूर्णिमा 3 जुलाई 2023, सोमवार।
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – 02 जुलाई 2023 को 08:21 पी एम पर।
पूर्णिमा तिथि समाप्ति – 03 जुलाई 2023 को 05:08 पी एम पर।
Guru Purnima Ka Mahatva-गुरुपूर्णिमा का महत्व
यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन वेद व्यास का जन्मदिन भी है। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है।
ऐसी मान्यता है कि गुरुपूर्णिमा के दिन ही भगवान शिव (प्रथम योगी), एक गुरु बने और योग-विज्ञान की तकनीक को पहेली बार सप्तऋषियों को प्रदान किया |
गुरु पूर्णिमा को बौद्धों द्वारा गौतम बुद्ध के सम्मान में भी मनाया जाता है। बौद्ध धर्म के अनुयायियों का मानना है कि गुरु पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध ने उत्तर प्रदेश के सारनाथ नामक स्थान पर पांच भिक्षुओं कौण्डिण्य, वप्प, भद्दीय, अस्सजि और महानाम को अपना प्रथम उपदेश दिया था।
Guru Ka Arth-गुरु शब्द का अर्थ
गुरु शब्द गु + रु से मिलकर बना है। संस्कृत में गु का अर्थ होता है अंधकार तथा रु का अर्थ होता है वध करना, समाप्त करना। अतः गुरु का अर्थ हुआ – अंधकार को समाप्त करने वाला।
गुरु वह होता है जो हमारे मन में व्याप्त अज्ञान रूपी अंधकार को समाप्त कर देता है और हमें ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर अग्रसर करता है। यू तो व्यावहारिक रूप से हम शिक्षक को भी गुरु बोल देते हैं परन्तु वह सम्पूर्ण रूप से गुरु नहीं है।
वास्तविक गुरु तो वह है जो हमें इस संसार रूपी भव सागर से तारने वाला ज्ञान प्रदान करे। कबीर दास के अनुसार –
गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि-गढ़ि काढ़ै खोट।
अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट।
गुरु कुम्हार है और शिष्य घड़ा है, भीतर से हाथ का सहार देकर, बाहर से चोट मार – मारकर और गढ़ – गढ़ कर शिष्य की बुराई को निकलते हैं।
Guru Ka Mahatva-गुरु का महत्व
जिस किसी से भी हम ज्ञान प्राप्त करें वह हमारा गुरु ही होता है। देखा जाय तो जब कोई बच्चा जन्म लेता है तो सर्वप्रथम वह अपने माता-पिता, और घर के बड़े बुजुर्गों द्वारा ही सीखता है। कहा जा सकता है किसी बच्चे की प्रथम गुरु तो माता ही होती है। तत्पश्चात बच्चा विद्यालय जाकर ज्ञानार्जन करता है तथा अपने आस-पड़ोस के वातावरण से सीखता है। ।
परन्तु आत्मिक ज्ञान जिसके द्वारा व्यक्ति इस संसार रूपी भवसागर को पार कर जाता है उसके लिए गुरु का होना आवश्यक है।
संत कबीर दास के अनुसार
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान ।
कबीर दास जी कहते हैं, कि यह जो शरीर है वह विष सामान बुराइयों (जहर) से भरा हुआ है और एक सच्चा गुरु, अमृत की खान अर्थात उन विष सामान बुराइयों का अंत करने वाला होता हैं।
गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोष।
गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मैटैं न दोष।।
कबीर दास जी कहते हैं – गुरु के बिना ज्ञान का मिलना असंभव है। जब तक कि गुरु कि कृपा नहीं प्राप्त होती तब तक मनुष्य अज्ञान रुपी अंधकार मे भटकता हुआ मायारूपी सांसारिक बन्धनो मे जकड़ा रहता है। मोक्ष रुपी मार्ग दिखलाने वाले गुरु हैं। गुरु के बिना सत्य एवम् असत्य का ज्ञान नहीं होता न ही व्यक्ति अपने दोषों को मिटा पाता है।
गुरु और शिक्षक में अंतर
आधुनिक काल में बच्चे स्कूल जाते हैं जहाँ उन्हें अध्यापकों के द्वारा भाषा,गणित विज्ञानादि विषयों का ज्ञान मिलता जिसका मुख्य उद्देश्य बच्चों को जीवकोपार्जन हेतु उपयुक्त बनाना होता है। वहाँ पर शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बच्चे के अंदर विभिन्न कौशलों का विकास करना होता है जिनके द्वारा वह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो सके। आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में स्वयं को जानना , अध्यात्म की शिक्षा आदि का आभाव ही दिखता है।
प्राचीनकाल में गुरुकुल होते थे जिनका उद्देश्य बच्चे को शिक्षित करने के साथ-साथ उनका आध्यात्मिक विकास करना भी होता था। अतः गुरुकुल व्यवस्था में गुरु को अत्यंत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था।
अतः हम कह सकते हैं कि प्राचीनकाल में गुरु का स्थान था वह आज के शिक्षक से कहीं अधिक बृहत और उच्च था।
क्या गुरु का होना आवश्यक है
गुरु का होना आवश्यक अवश्य है परन्तु अनिवार्य नहीं। हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान दत्तात्रेय ने आत्मा को स्वयं का गुरु माना था। उन्होंने प्रकृति, वस्तुओं, जीव-जंतुओं और व्यक्तियों का अवलोकन करके आत्म-ज्ञान प्राप्त किया।
एक बार उनसे जंगल विहार करते समय यदु वंश के राजा से भेंट हुई। राजा ने उनसे उनकी प्रसन्नता का रहस्य और उनके गुरु का नाम पूछा। जब दत्तात्रेय जी ने बताया कि उनका गुरु स्वयं उनकी आत्मा है तथा उन्होंने 24 लोगों से ज्ञान लिया है जो उनके गुरु कहलाए।
दत्तात्रेय जी के 24 गुरु हैं: 1. पृथ्वी, 2. जल, 3. वायु, 4. अग्नि, 5. आकाश, 6. चंद्रमा, 7. सूर्य, 8. कबूतर, 9. अजगर, 10. महासागर, 11. पतंगा, 12 मधुमक्खी, 13. शहद इकट्ठा करने वाली, 14. हाथी, 15. हिरण, 16. मछली, 17. नर्तकी पिंगला, 18. कौआ, 19. बच्चा, 20. युवती, 21. नागिन, 22. एक तीर बनाने वाली , 23. मकड़ी और 24. भृंग।
परन्तु कुछ साधनाएं ऐसी अवश्य होती हैं जिनमें गुरु का होना अनिवार्य होता है। गुरु का होना साधक की आध्यात्मिक यात्रा को सहज और आसान बना देता है।
गुरु किसे बनाएं
यद्यपि हम सभी चाहते हैं कि हमें अच्छे गुरु की प्राप्ति हो परन्तु अच्छे गुरु की प्राप्ति ईश्वर की कृपा के बिना संभव नहीं है। हमें एक ऐसे व्यक्ति को अपना गुरु बनाना चाहिए जो हमारी समस्त शंकाओं का समाधान करने में समर्थ हो। कबीर दास के अनुसार –
जो गुरु ते भ्रम न मिटे, भ्रान्ति न जिसका जाय।
सो गुरु झूठा जानिये, त्यागत देर न लाय।
यदि कोई गुरु शिष्य की शंकाओं को ही दूर न कर सके, तो उस गुरु को त्यागने में ही भलाई है। यदि कोई गुरु भौतिक अथवा सांसारिक लाभ प्रदान करने का दावा करता है, तो समझ लीजिए उस गुरु में खोट है और वह त्याज्य है। चमत्कारिक शक्तियों का सार्वजनिक प्रदर्शन करने वाले व्यक्तियों से भी दूर ही रहना चाहिए।
तो फिर सद्गुरु की पहचान कैसे करें ?
सतगुरू की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार।
लोचन अनंत उघाडिया, अनंत दिखावणहार।
ज्ञान के आलोक से संपन्न सद्गुरु की महिमा अनंत(जिसका वर्णन न किया जा सके) है। उन्होंने मुझपर जो उपकार किया है वह भी असीम है। उन्होंने मेरे अपार शक्ति संपन्न ज्ञान-चक्षु को खोल दिया जिससे मैं परम तत्व का साक्षात्कार कर सका। ईश्वरीय आलोक को दिखाने का श्रेय महान गुरु को ही है।
यदि आपको कोई योग्य गुरु न मिल रहा हो तो निराश होने की आवश्यकता नहीं है। आप अपने इष्ट जैसे-भगवान शिव, हनुमान जी को ही गुरु मानकर साधना के मार्ग पर अग्रसर रहें। जब ईश्वर की अनुकम्पा होगी तो आपको योग्य गुरु की प्राप्ति अवश्य होगी।
Guru Purnima Par Kya Karen-गुरु पूर्णिमा पर क्या करें
गुरु पूर्णिमा के दिन यदि आपके कोई गुरु हैं तो इस दिन उनके दर्शन अवश्य करें तथा उनका आशीर्वाद अवश्य लें। अपने गुरु को अपनी सामर्थ्यानुसार कोई भेंट अवश्य दें। भेंट में आप गुरु को श्वेत अथवा पीले वस्त्र, मिठाई, फल आदि दें सकते हैं।
सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है इस दिन गुरु द्वारा मिले ज्ञान के लिए आभार प्रकट करना। क्योंकि बिना गुरु की कृपा के मनुष्य के विकारों का नष्ट होना संभव नहीं है।कबीर दास जी कहते हैं –
बलिहारी गुर आपणैं, द्यौंहाडी कै बार।
जिनि मानिष तैं देवता, करत न लागी बार।
गुरु की महिमा है की वह सामान्य जन को मनुष्य से देवता तुल्य बना देता है और ऐसा करने में उसे तनिक भी देर नहीं लगती है। ऐसे गुरु को मैं दिन में कितनी बार बलिहारी जाऊं/ नमन करूँ तात्पर्य है की ऐसे गुरु के चरणों में जितनी भी बार नमन करें कम ही होता है। यहाँ देवता तुल्य से आश्रय है कि गुरु मनुष्य के विकारों को नष्ट कर उसे देव तुल्य बना देता है।
आप गुरु के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करने हेतु गुरु स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं। यदि गुरु न भी हो तो इस दिन अपने इष्ट के दर्शन करें और उनका पूजन करें।