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Hanuman Chalisa

हनुमान चालीसा हिंदी अर्थ सहित-Hanuman Chalisa Hindi Arth

Posted on October 2, 2022February 27, 2024 by santwana

हनुमान चालीसा(Hanuman Chalisa) हिंदी की अवधी भाषा शैली में लिखी गई काव्यात्मक रचना है।यह दोहा और चौपाई छंद में लिखी गई है। इसमें कुल चालीस पद हैं। इसकी रचना गोस्वामी तुलसीदास जी ने सोलहवीं शताब्दी में की थी। हनुमान चालीसा में गोस्वामी जी ने अपने आराध्य प्रभु श्री राम के अनन्य भक्त हनुमान जी के चरित और गुणों का गुणगान किया है। इस लेख में हनुमान चालीसा लिखित में अर्थ सहित दी गई है।

विषय-सूचि
  1. Hanuman Chalisa -हनुमान चालीसा
  2. Hanuman Chalisa With Hindi Meaning-हनुमान चालीसा का हिंदी अर्थ
  3. Hanuman Ji Stuti-हनुमान जी स्तुति
  4. हनुमान चालीसा पढ़ने के फायदे 
  5. Hanuman Chalisa Lyrics

Hanuman Chalisa -हनुमान चालीसा

दोहा

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।

बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार ।

बल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार।।

चौपाई

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर जय कपीस तिहुँ लोक उजागर

राम दूत अतुलित बल धामा अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥१॥

महाबीर विक्रम बजरंगी कुमति निवार सुमति के संगी

कंचन बरन बिराज सुबेसा कानन कुंडल कुँचित केसा ॥२॥

हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे काँधे मूँज जनेऊ साजे

शंकर सुवन केसरी नंदन तेज प्रताप महा जगवंदन ॥३॥

विद्यावान गुनी अति चातुर राम काज करिबे को आतुर

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया राम लखन सीता मन बसिया ॥४॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा बिकट रूप धरि लंक जरावा

भीम रूप धरि असुर सँहारे रामचंद्र के काज सवाँरे ॥५॥

लाय सजीवन लखन जियाए श्री रघुबीर हरषि उर लाए

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई ॥६॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावै अस कहि श्रीपति कंठ लगावै

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा नारद सारद सहित अहीसा ॥७॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते कवि कोविद कहि सके कहाँ ते

तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥८॥

तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना लंकेश्वर भये सब जग जाना

जुग सहस्त्र जोजन पर भानू लील्यो ताहि मधुर फ़ल जानू ॥९॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही जलधि लाँघि गए अचरज नाही

दुर्गम काज जगत के जेते सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥१०॥

राम दुआरे तुम रखवारे होत न आज्ञा बिनु पैसारे

सब सुख लहै तुम्हारी सरना तुम रक्षक काहू को डरना ॥११॥

आपन तेज सम्हारो आपै तीनों लोक हाँक ते काँपै

भूत पिशाच निकट नहि आवै महाबीर जब नाम सुनावै ॥१२॥

नासै रोग हरे सब पीरा जपत निरंतर हनुमत बीरा

संकट ते हनुमान छुडावै मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ॥१३॥

सब पर राम तपस्वी राजा तिनके काज सकल तुम साजा

और मनोरथ जो कोई लावै सोइ अमित जीवन फल पावै ॥१४॥

चारों जुग परताप तुम्हारा है परसिद्ध जगत उजियारा

साधु संत के तुम रखवारे असुर निकंदन राम दुलारे ॥१५॥

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता अस बर दीन जानकी माता

राम रसायन तुम्हारे पासा सदा रहो रघुपति के दासा ॥१६॥

तुम्हरे भजन राम को पावै जनम जनम के दुख बिसरावै

अंतकाल रघुवरपुर जाई जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥१७॥

और देवता चित्त ना धरई हनुमत सेई सर्व सुख करई

संकट कटै मिटै सब पीरा जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥१८॥

जै जै जै हनुमान गुसाईँ कृपा करहु गुरु देव की नाई

जो सत बार पाठ कर कोई छूटहि बंदि महा सुख होई ॥१९॥

जो यह पढ़े हनुमान चालीसा होय सिद्धि साखी गौरीसा

तुलसीदास सदा हरि चेरा कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ॥२०॥

दोहा

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।

राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥

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Hanuman Chalisa With Hindi Meaning-हनुमान चालीसा का हिंदी अर्थ

दोहा

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥

श्री गुरु महाराज के चरण कमलों की धूलि से अपने मन रूपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ जो चारों फल (धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष) को देने वाले हैं। 

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार
बल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार।।

हे पवनकुमार ! मैं आपका सुमिरन करता हूँ। आप तो जानते ही हैं कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल,सद्बुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुःखो और दोषों का नाश कीजिए। 

चौपाई

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥1॥

ज्ञान और गुण के समुद्र श्री हनुमान जी की जय हो जो तीनों लोकों को अपने शुभ चरित्र द्वारा जागृत करते हैं ऐसे कपीस की जय हो।

राम दूत अतुलित बल धामा अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥2॥

राम जी के दूत और अत्यंत बलशाली अंजनी के पुत्र तथा पवनसुत नाम वाले हनुमान जी की जय हो।

महाबीर विक्रम बजरंगी कुमति निवार सुमति के संगी॥3॥

जो महावीर है जिन का उल्लंघन कोई नहीं कर सकता और जिनका शरीर वज्र का है उन अलौकिक बलशाली हनुमान जी का काम है अपने भक्तों की कुबुद्धि का निवारण कर सद्बुद्धि प्रदान करना वह केवल प्रदान ही नहीं करते बल्कि अपना संगी भी बना लेते हैं।

कंचन बरन बिराज सुबेसा कानन कुंडल कुँचित केसा ॥4॥

 जिनके शरीर की कांति  सुमेरु पर्वत के समान तेजस्वी है और अपने भक्तों के लिए  जिन्होंने सुंदर रूप धारण कर रखा है जिनके कानों में कुंडल हैं  घुंघराले बाल है ।

हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे काँधे मूँज जनेऊ साजे ॥5॥

जिनके हाथ में विजय सूचक ध्वजा और वज्र है जो अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। जिनके कंधे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।

संकर सुवन केसरी नंदन तेज प्रताप महा जगवंदन ॥6॥

हे शंकर जी के अवतार ! हे केसरी नंदन ! आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर में वंदना होती है। 

विद्यावान गुनी अति चातुर राम काज करिबे को आतुर॥7॥

हनुमान जी विद्यावान और अति चतुर हैं। वह सदा राम जी के कार्य को करने के लिए उत्सुक रहते हैं। विद्यावान 64 कला और 14 विद्या जैसे वेद, उपवेद, अष्ट ऐश्वर्य प्राप्ति योग विद्या, ज्योतिष विद्या आदि उनके पूर्ण ज्ञाता हनुमान जी माने जाते हैं।

गुणी – सब गुणों से संपन्न भी है और प्रत्येक कार्य सावधानी से करते हैं

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया राम लखन सीता मनबसिया ॥8॥

 हनुमान जी रामचरित  सुनने में परमानंद प्राप्त करते है। श्री  राम लक्ष्मण और सीता जी उनके हृदय में सदैव विराजमान है। 

सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा बिकट रूप धरि लंक जरावा॥9॥

सुंदर, सौम्य रूप धारण कर जानकी जी के समक्ष प्रकट हुए और विकट रूप धारण पर लंका को जलाया।

भीम रूप धरि असुर सँहारे रामचंद्र के काज सवाँरे ॥10॥

भीम अर्थात भयंकर रूप धारण कर राक्षसों का संहार किया । इन कार्यों को करते समय सावधानी बरती के राम जी के कार्य में कोई बाधा ना पड़ने पाए।

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लाय सजीवन लखन जियाए श्री रघुबीर हरषि उर लाए ॥11॥

आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी को नया जीवन दिया जिसे हर्षित होकर राम जी ने आपको ह्रदय से लगा लिया।

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई ॥12॥

तुलसीदास जी कहते हैं श्री रघुनाथ जी ने उस समय मुक्त कंठ से हनुमानजी की प्रशंसा की कि तुम मुझे भारत के समान ही प्रिय हो।

सहस बदन तुम्हरो जस गावै अस कहि श्रीपति कंठ लगावै ॥13॥

 सहस बदन शेषनाग जिन्होंने पृथ्वी को धारण कर रखा है जिनके हजार मुख और दो हजार जिह्वा है वह आपकी स्तुति करते हैं ऐसा कहकर श्रीपति रामजी ने हनुमान जी को गले लगा लिया।

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा नारद सारद सहित अहीसा ॥14॥

सनक ,सनन्दन ,सनत्कुमार ,सनातन ब्रह्मा के चारों मानसिक पुत्र ब्रह्मा ,विष्णु , महेश उत्पत्ति ,स्थिति प्रलय करने वाले सृष्टि के स्वामी ,वशिष्ठ ,अगस्त्य ,लोमश आदि दीर्घायु वाले जो सदैव ब्रह्म तत्त्व में लीन रहते हैं। नारद ब्रह्मा जी के मानस पुत्र जो प्राणी मात्र के हित के लिए सदा भ्रमण करते रहते हैं। सादर सम्पूर्ण संसार की बुद्धि के प्रदाता हैं के सहित सृष्टि को धारण करने वाले शेषनाग। 

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते कवि कोविद कहि सके कहाँ ते ॥15॥

जम -शुभाशुभ कर्मों के शासक ,कुबेर धनपति अर्थात सम्पूर्ण निधियों के स्वामी ,आठों दिग्पाल जो पृथ्वी को धारण करते हैं ,कवि -सूक्ष्म से सूक्ष्म वस्तुओ का अनुभव करने वाले , वाल्मीकि आदि ,कोविद – क अर्थात ब्रह्म और विद अर्थात जानने वाले अर्थात जो ब्रह्म का साक्षात्कार कर चुके हैं वो सब भी आपके यश का पूर्णतया वर्णन नहीं कर सकते हैं। 

तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥16॥

यहाँ पर तुलसीदास जी श्री हनुमान जी के गुणगान में असमर्थता दिखाते हुए उपरोक्त उच्च कोटि के महानुभावों का उल्लेख करते हुए अपनी तुक्षता का वर्णन किया है ,क्योंकि उन सबकी सहायता में हनुमान जी का हाथ है। हनुमान जी का विनय करते हुए तुलसीदास जी कहते हैं आपने सुग्रीव का बिना स्वार्थ के ही महान उपकार किया। जहाँ ईश्वर प्राप्ति करने में शिष्य गुरू के अधीन रहता है वहाँ सुग्रीव के सेवक बनकर उनको ईश्वर का साक्षात्कार करवाया और उनका राज्य वापिस कराया। 

तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना लंकेश्वर भये सब जग जाना ॥17॥

आपकी सलाह को विभीषण ने सहर्ष स्वीकार किया। उसके भाव से ही वो लंका के अधिपति बने। (यह बात तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। )

जुग सहस्त्र जोजन पर भानू लील्यो ताहि मधुर फ़ल जानू ॥18॥

जो सूर्य इतने योजन पर स्थित है कि वहाँ तक पहुँचने में दो हजार युग लगें आपने उसको मधुर फल समझ कर निगल लिया। 

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही जलधि लाँघि गए अचरज नाही॥19॥

श्री राम जी ने जो मुद्रिका हनुमान जी को जानकी जी को विश्वाश दिलाने के लिए दी थी उन्होंने उसे मुख में रखकर समुद्र पार कर लिया इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। 

दुर्गम काज जगत के जेते सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥20॥

तुलसीदास जी हनुमान जी से प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि यदि आप अनुग्रह (कृपा) करें तो संसार में जितने भी कठिन कार्य हैं वो सुगम(आसान) हो जाते हैं। 

राम दुआरे तुम रखवारे होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥21॥

रामजी को प्राप्त करने में आप ही मुख्य उपाय हैं क्योंकि आप उनके धाम के रक्षक हैं। आपकी आज्ञारूपी कृपा के बिना कोई भी रामजी के वास्तविक स्वरूप का दर्शन नहीं कर सकता। 

सब सुख लहै तुम्हारी सरना तुम रक्षक काहू को डरना ॥22॥

जो कोई भी आपकी शरण में आता है वह वास्तविक सुख का अनुभव करता है। जिसके आप रक्षक हो वह सदा अभय रहता है। वह तीनों लोकों में किसी से भी भयभीत नहीं होता अर्थात उसे कौन भयभीत कर सकता है। 

आपन तेज सम्हारो आपै तीनों लोक हाँक ते काँपै ॥23॥

आपकी साधारण गर्जना से भी तीनों लोक काँप उठते हैं साधारण जीव की तो बात ही क्या है। इसलिए आप अपने तेज को स्वयं शांत रखें। 

भूत पिशाच निकट नहि आवै महाबीर जब नाम सुनावै ॥24॥

जब महावीर शब्द का उच्चरण प्राणी करता है तो भूत प्रेत ,पिशाच आदि की बाधा उसके निकट नहीं आती है। 

नासै रोग हरे सब पीरा जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥25॥

जो निरंतर हनुमान जी का स्मरण करता है,उसके सम्पूर्ण दैहिक, दैविक और भौतिक दुःख और ग्रह की पीड़ा को हनुमान जी हरण कर लेते हैं। 

संकट ते हनुमान छुडावै मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ॥26॥

किसी जीव पर चाहे कितनी भी आपत्ति आई हो , घोर संकट में पड़ा हो, ऐसी स्थिति में सब आश्रम छोड़ कर मन से, वचन से और शरीर से जो आपका ध्यान करते हैं (अर्थात आपकी शरण में आते हैं) उनके सब क्लेश दूर हो जाते है। 

सब पर राम तपस्वी राजा तिनके काज सकल तुम साजा ॥27॥

तीनों लोकों के स्वामी श्री रामचंद्र जी हैं, जिन्होंने भक्तों के दुःखों का निवारण करने के लिए तपस्वी का रूप धारण किया है, उन श्री राम जी की प्रतिज्ञा रखने के लिए स्वयं आपने ही तो कार्य को संभाला है अर्थात आपकी सहायता से ही तो रामजी ने भक्तों के सब कार्य पूर्ण किए हैं। 

और मनोरथ जो कोई लावै सोइ अमित जीवन फल पावै ॥28॥

श्री राम जी का कार्य तो हनुमान जी करते ही हैं अपनी शरण में आए जीवों का मनोरथ भी पूर्ण करते हैं। जीवन का लाभ, जो परमानन्द है, उसकी प्राप्ति भी करा देते हैं। 

चारों जुग परताप तुम्हारा है परसिद्ध जगत उजियारा ॥29॥

तुलसीदास जी कहते हैं कि चारों युगों(सतयुग, त्रेता युग,द्वापर युग, कलयुग) में आपका प्रताप सदा व्याप्त रहता है आपके चरित्र से तीनों लोक जागृत हो जाते है अर्थात आपकी कीर्ति सारे जगत में है । 

साधु संत के तुम रखवारे असुर निकंदन राम दुलारे ॥30॥

साधु संत की आप रक्षा करते हैं। राक्षसों का संहार करते हुए आप श्री राम को प्यारे हैं। (साधु श्रेष्ठ एवं सज्जन पुरुष को कहते हैं। संत जो स्वयं संसार से पार हो चुके हैं और दूसरों को पार करा सकते हैं। )

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अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता अस बर दीन जानकी माता ॥31॥

अष्ट सिद्धियों और नौ सिद्धियों के आप स्वयं दाता हैं यह वरदान आपको जनक नंदिनी ने दिया है। 

(अष्ट सिद्धियां निम्न हैं 

अणिमा -जिससे साधक किसी को दिखाई नहीं पड़ता और कठिन से कठिन पदार्थ में प्रवेश कर जाता है। 

महिमा-जिससे योगी अपने आपको बहुत बड़ा बना लेता है। 

गरिमा-जिससे साधक अपने आपको जितना चाहे उतना भारी बना लेता है। 

लघिमा-जिससे साधक जितना चाहे उतना हल्का बन जाता है। 

प्राप्ति-जिससे इक्छित पदार्थ की प्राप्ति होती है। 

प्राकाम्य-जिससे इक्छा करने पर पृथ्वी में समा सकता है तथा आकाश में उड़ सकता है। 

ईशित्व-जिससे सबपर शाशन का सामर्थ्य हो जाता है। 

वशित्व-जिससे वह दूसरों को वश में कर सकता है। 

कुबेर के कोष (खजाना) का नाम निधि है जिसमें नौ प्रकार की निधियाँ हैं। 

1. पद्म निधि, 2. महापद्म निधि, 3. नील निधि, 4. मुकुंद निधि, 5. नंद निधि, 6. मकर निधि, 7. कच्छप निधि, 8. शंख निधि और 9. खर्व या मिश्र निधि।)

राम रसायन तुम्हारे पासा सदा रहो रघुपति के दासा ॥32॥

जो योगजनो को आनंद देने वाला है, जो लोग हजारों वर्ष तप करने के पश्चात् जिस आनंद को प्राप्त करते हैं वह रस आपके पास है अर्थात आपकी कृपा से वह दिव्य आनंद रस प्राप्त हो जाता है। आपके पास राम नाम रूपी औषधि है जिससे सभी असाध्य रोग दूर हो जाते है। अपने सम्पूर्ण जीवन राम सेवा में अर्पित कर रखा है संसार में आपका अपना कोई भी कार्य नहीं है। 

तुम्हरे भजन राम को पावै जनम जनम के दुख बिसरावै ॥33॥

यहाँ भजन सेवा के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। जो लोग नियमबद्ध होकर श्रद्धा से आपकी सेवा करते हैं वह रामजी को प्राप्त करने के अधिकारी होते हैं। अनंत जन्मों की वासना के अनुसार संसार सागर में भटकते हुए अनंत जन्मों से कष्ट उठा रहे हैं और उठाते जायेंगे उनका अंत आपकी सेवा करने से होगा। 

अंतकाल रघुवरपुर जाई जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥34॥

कोई कितना भी दुराचारी क्यों न हो यदि किसी कारणवश रघुवरपुर यानि अयोध्या में जाकर शरीर छोड़े तो वह हनुमानजी की कृपा से जहाँ भी जन्म लेगा राम भक्त बनेगा। यह हनुमान जी की प्रतिज्ञा है कि मेरे रामजी जहाँ विद्यमान थे उस भूमि में मरने वाला जीव भी राम जी के धाम को प्राप्त करे। 

और देवता चित्त ना धरई हनुमत सेई सर्व सुख करई ॥35॥

तुलसीदास जी कहते हैं चाहे तुम किसी देवता की शरण में जाओ वहाँ तुम्हे सुख और शांति नहीं मिलेगी,क्योंकि सब देवताओं की अपनी सीमित शक्ति है। वह हमारे मन को शांत कर सकते हैं परन्तु हनुमान जी का स्मरण करने से जो जीव के लिए योग्य है ,जिससे जीव को सदा आनंद की प्राप्ति होती है 

संकट कटै मिटै सब पीरा जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥36॥

दुःख के समय जो हनुमान जी का स्मरण करेगा  उसके सम्पूर्ण ग्रह बाधाएँ हनुमानजी हर लेंगे उसकी समस्त संकट कट जाते हैं और सारी पीड़ाओं का नाश हो जाता है।

जै जै जै हनुमान गुसाईँ कृपा करहु गुरु देव की नाई ॥37॥

सब इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने वाले हनुमान जी जो समस्त शक्तियों से परिपूर्ण हैं ,आपकी जय हो जय हो जय हो। जैसे सद्गुरु शिष्य के ऊपर अपनी शक्ति प्राप्त करके अपने को सदृश्य बना लेते हैं इसी प्रकार आप मुझपर कृपा करिये। 

जो सत बार पाठ कर कोई छूटहि बंदि महा सुख होई ॥38॥

तुलसीदास जी कहते हैं कि जो नित्य हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह इस संसार के बंधन से स्वतः ही छूट जायेगा और परलोक के बंधन से भी छूटकर महान सुख (ब्रह्म) की प्राप्ति करेगा। 

जो यह पढ़े हनुमान चालीसा होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥39॥

भगवान शंकर ने स्वयं ये हनुमान चालीसा लिखवाया है इसलिए वे साक्षी हैं इसका पाठ जो करेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी। 

(हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ प्रतिदिन चालीस दिन तक करें तब एक अनुष्ठान होता है। चालीस दिन तक सौ-सौ पाठ करे तो हनुमान जी की कृपा से वह भी सब जीवों का कल्याण करने वाला हो जायेगा।)

तुलसीदास सदा हरि चेरा कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ॥40॥

तुलसी दास जी विनय करते हैं कि मै हरि अर्थात राम जी का चेरा हूँ। यदि यह बात सत्य है तो आप मेरे ह्रदय में निवास कीजिये। 

दोहा

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥

हे पवन-तनय, पवन-पुत्र, संकट को हरने वाले, जिन्होंने कल्याण का विग्रह किया है ,वह हनुमान जी राम लक्ष्मण और जानकी सहित हे सुरभूप अर्थात स्वर्ग आदि देवताओं की रक्षा करने वाले आप मेरे ह्रदय में निवास कीजिए। 

Hanuman Ji Stuti-हनुमान जी स्तुति

हनुमान चालीसा पढ़ने के पश्चात हनुमान जी और श्रीराम की स्तुति पढ़े।

मंगल मूरति मारुती नंदन
सकल अमंगल मूल निकंदन

पवन तनय संतन हितकारी
हृदय विराजत अवध बिहारी

मात पिता गुरु गणपत शारद
शिवा समेत शभु सुक नारद

चरण बंदी बिनवौ सब काहू
देहु राम पद नेह निबाहू

बन्दहुँ राम लखन बैदेही
यह तुलसी के प्रमा सनेही

हनुमान चालीसा पढ़ने के फायदे 

  • हनुमान चालीसा(Hanuman Chalisa) पढ़ने से प्रभु श्रीराम की कृपा प्राप्त होती है। 
  • हनुमान चालीसा पढ़ने से हनुमान जी बल, बुद्धि और विद्या प्रदान करते हैं। 
  • हनुमान चालीसा ग्रह जनित बाधाओं का भी निवारण करती है।  यदि किसी को मंगल दोष हो या शानि ग्रह से सम्बंधित परेशानियाँ चल रहीं हो तो उसे नित्य भक्तिपूर्वक हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। 
  • हनुमान चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति भय मुक्त हो जाता है। 
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Hanuman Chalisa Lyrics

Hanuman Chalisa1
Hanuman Chalisa2
Category: Stotra/ Stuti

2 thoughts on “हनुमान चालीसा हिंदी अर्थ सहित-Hanuman Chalisa Hindi Arth”

  1. Deepak Kumar says:
    July 11, 2023 at 6:11 am

    Please provide meaning of awadi word use in this chalisa

    Reply
    1. santwana says:
      July 12, 2023 at 1:15 pm

      Please go through it https://en.wikipedia.org/wiki/Awadhi_language

      Reply

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