Kundali Ke 12 Bhav
Janam Kundali-जन्म कुंडली
किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली उस व्यक्ति के जन्म के समय किसी विशिष्ट स्थान पर ग्रह नक्षत्रों की स्थिति को दिखाती है।किसी जातक की जन्म कुंडली यह बताती है कि जब जातक का जन्म हुआ तब कौन सा ग्रह किस राशि में और किस भाव में स्थित था।
जन्म कुंडली के अध्ययन द्वारा हम यह जान सकते हैं कि जातक को अपने जीवन काल में क्या अच्छे और बुरे फल प्राप्त होंगे साथ ही जातक अपने जीवन काल में घटित होने वाली अच्छी बुरी घटनाओं के समय को भी जान सकता है। जातक को क्या करने से जीवन में सफलता हासिल हो सकती है या कौन से कार्य उसे अच्छा फल नहीं देंगे यह सब हम जातक की जन्म पत्रिका का विश्लेषण करके जान सकते हैं।
Janam Kundali Ke 12 Bhav-जन्म कुंडली के 12 भाव
जन्म कुण्डली में 12 भाव होते हैं जो हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं।ज्योतिष शास्त्र में हर भाव को एक विशेष कार्य प्रदान किया गया है जैसे यदि माता वाहन भूमि इत्यादि के बारे में जानना हो तो हम उस जातक की जन्मकुंडली के चतुर्थ भाव पर दृष्टि डालेंगे।
Janam lagna-जन्म लग्न
जातक के जन्म के समय पूर्वी क्षितिज पर जो राशि उदित हो रही होती है वह जातक का लग्न कहलाती है ।जन्म कुंडली के प्रथम भाव को ही लग्न कहा जाता है।
लग्न को तन भाव भी कहते हैं क्योंकि इसके द्वारा जातक कैसा दिखता है उसकी कद काठी क्या होगी यह सब जाना जा सकता है। साथ ही जातक का स्वास्थ्य कैसा होगा यह भी लग्न और लग्नेश की स्थिति देखकर बताया जा सकता है।
उदाहरण के लिए यदि जातक के जन्म के समयपूर्वी क्षितिज पर मेष राशि का उदय हो रहा हो तो जातक का लग्न मेष होगा और यदि पूर्वी क्षितिज पर तुला राशि का उदय हो रहा हो तो जातक का लग्न तुला होगा।
Kya Batate Hai Janam Kundali ke 12 Bhav-क्या बताते हैं जन्म कुंडली के 12 भाव
Pratham Bhav-प्रथम भाव: तन भाव
यह व्यक्ति के स्वभाव का भाव होता है।कुंडली के प्रथम भाव से हम व्यक्ति का शरीर, रंग, आकृति, स्वाभाव, विनम्रता, स्वास्थ्य, मन पर विचार किया जाता है| प्रथम भाव शरीर के मस्तिष्क को प्रभावित करता है|
प्रथम भाव को व्यक्ति का जन्म लग्न भी कहते हैं। यह किसी भी व्यक्ति की कुंडली का सबसे अधिक महत्वपूर्ण भाव है क्योंकि यह किसी व्यक्ति की व्यक्तित्व (पर्सनालिटी) के बारे में सबसे अधिक बताता है। यह भाव यह भी बताता है व्यक्ति का जीवन कैसा होगा।
लग्न के स्वामी को लग्नेश(मुख्य ग्रह) कहते हैं। यदि किसी व्यक्ति का लग्न और लग्नेश अच्छी स्थिति में हैं तो सामान्यतः व्यक्ति का जीवन अच्छा होता है।
Dwitiya Bhav-द्वितीय भाव: धन भाव
यह धन और परिवार का भाव होता है। यह भाव व्यक्ति की वाणी, धन, कुटुंब(परिवार),विद्या,वाचालता,भाषण कौशल,आस्तिकता,परिवार का उत्तरदायित्व और चल संपत्ति को देखते हैं| द्वितीय भाव से चेहरा, दाएं नेत्र और जिव्हा को देखते हैं |
यह व्यक्ति के खान-पान को भी दर्शाता है। द्वितीय भाव जन्म-कुंडली का मारक स्थान भी है।
Tritya Bhav-तृतीय भाव: भातृ स्थान
तृतीय भाव छोटे भाई-बहन, साहस एवं वीरता(पराक्रम),कौशल, कम्युनिकेशन ,छोटी दूरी की यात्राओं का भाव होता है।तृतीय भाव से हम आयु,मित्र,कुभोजन,धन का बंटवारा,आभूषण पर विचार करते हैं| यह भाव शरीर के भुजाएं ,गला एवं श्वास सबंधी रोगों को प्रभावित करता है| तृतीय भाव उपचय भाव में आता है।
Chaturth Bhav-चतुर्थ भाव: मातृ स्थान
चतुर्थ भाव को माता, मन की शांति और सुख-सुविधाओं का भाव भी कहा जाता है| इस भाव से व्यक्ति के सुख, भवन(घर), वाहन(गाड़ी), अचल संपत्ति, भूमि, गाड़ा हुआ धन,मनोरथ,राजा,खजाना,ससुर,पिता का व्यवसाय,भोजन,निद्रा,यश,जान-सम्पर्क,झूठा आरोप और सिहांसन पर विचार किया जाता है| इस भाव से हम शरीर में कंधे, छाती और फेफड़ों पर विचार करते हैं|
Pancham Bhav-पंचम भाव: पुत्र स्थान
पंचम भाव को पूर्व पुण्य का भाव भी कहते हैं। कुंडली में पाँचवां भाव संतान एवं बुद्धि का भाव होता है।पंचम भाव में हम व्यक्ति की संतान, विद्या, बुद्धि,मंत्र शक्ति,गूढ़ तांत्रिक क्रियाएं,शिल्प,कला कौशल,दूरदर्शिता,अवलोकन क्षमता, प्रेम सम्बन्ध, अचानक धन लाभ या हानि पर विचार करते हैं| यह शरीर में पेट को प्रभावित करता है|
Shashtam Bhav-षष्ठम भाव: रोग स्थान
छठे भाव से षड्रिपु (काम,क्रोध,मद ,लोभ,मोह,मात्सर्य) देखे जाते हैं। यह भाव रोग,ऋण,मुकदमा,वाद-विवाद,निंदा,विषपान को दर्शाता है। इसे कम्पटीशन का भाव भी कहते है। यह व्यक्ति द्वारा दी गई सेवाओं को दिखाता है। अतः यह नौकरी का भी भाव है। इस भाव से व्यक्ति के मामा का विचार किया जाता है।
यह शरीर के बड़ी आंत ,किडनी ,मूत्र स्थान के ऊपरी भाग को प्रभावित करता है|
Saptam Bhav-सप्तम भाव:
सातवाँ भाव विवाह एवं पार्टनरशिप का प्रतिनिधित्व करता है।इस भाव से हम व्यक्ति के जीवनसाथी, विवाह,दांपत्य सुख, रोज़ाना की आमदनी, हिस्सेदारी(Partnership), काम वासना,सजने सवरने की प्रकृति,भूल,कपड़े प्राप्त करना, वीर्य, पवित्रता, गुप्तांग, दत्तक पुत्र,अन्य देश, पर विचार करते है| यह शरीर के मूत्र वाले भाग को प्रभावित करता है| सातवां भाव भी मारक भाव है।
Ashtam Bhav-अष्टम भाव:आयु/मृत्यु स्थान
कुंडली में आठवाँ भाव आयु का भाव होता है।इस घर से व्यक्ति की आयु, मृत्यु, दुर्घटना, परेशानियां, तांत्रिक साधना,गुप्त रोग,गड़ा धन,वैराग्य,ससुराल सुख,झगड़ा ,मुसीबत,पाप कर्म,शल्य चिकित्सा,कटना,क्रूर कार्य,जीवन रक्षा,चोरी की आदत,मरणोपरांत गति,बिना मेहनत का धन ,ब्याज का पैसा आदि पर विचार किया जाता है|यह भाव शरीर के मूत्र स्थान के निचले भाग को प्रभावित करता है| आठवां भाव रन्ध्र स्थान भी कहलाता है क्योंकि यह छुपी हुई चीजों को दर्शाता है ,अतः आठवां भाव गूढ़ विद्याओं का भी है। इसी भाव द्वारा कर विभाग को भी देखते है। आठवां भाव ट्रांसफॉर्मेशन/परिवर्तन का भी है।
Navam Bhav-नवम भाव: भाग्य भाव
नवम भाव से भाग्य, पिता एवं धर्म का बोध होता है।इस भाव से हम व्यक्ति के भाग्य, तीर्थ यात्रा, धर्म, धार्मिक वृति,धार्मिक ग्रंथों का ज्ञान , सन्यास, पोते-पोती,साला-साली, पिता के साथ सम्बन्ध,पितरों पर विचार करते है|नवां भाव लम्बी दूरी की यात्राओं को भी दर्शाता है। यह भाव शरीर की जांघों को प्रभावित करता है|
Dasham Bhaav-दशम भाव: कर्म स्थान
दसवाँ भाव करियर और व्यवसाय का भाव होता है। दशम भाव से हम कारोबार, नौकरी, पद, राजयोग,सम्मान,प्रतिष्ठा ,कार्य-विस्तार ,प्रशाशन,नियंत्रण,आज्ञा,सन्यास,आकाश,वायुमार्ग की यात्रा का विचार करते हैं| यह भाव शरीर के घुटनों को प्रभावित करता है|
Ekadash Bhaav-एकादश भाव: लाभ स्थान
कुंडली में ग्यारहवाँ भाव आय और लाभ का भाव है।इस भाव से हम व्यक्ति की आय, धन लाभ, मनोकामना की पूर्ति, बड़े भाई-बहन,माता की आयु,निपुणता, धन कमाने की शक्ति,भाग्योदय, पदवी, मंत्रिपद, पुत्रवधु,असफलता पर विचार किया जाता है|यह भाव शरीर की पिंडलिओं और कान को प्रभावित करता है|
Dwadash Bhav-द्वादश भाव: व्यय स्थान
कुंडली में बारहवाँ भाव व्यय और हानि का भाव होता है।इस भाव से हम व्यक्ति के व्यय(खर्चे), हानि,धननिवेश, धनहानि ,पदावनति ,भोग,निद्रा,बिस्तर का सुख,जान-विरोध,मोक्ष ,एकांत ,अस्पताल का खर्चा, विदेश सेटलमेंट, जेल यात्रा पर विचार करते हैं| यह भाव शरीर के बाए नेत्र और पैरों को प्रभावित करता है|
Bhav Ka Vargikaran-भावों का वर्गीकरण
जन्म कुंडली के 12 भावों को उनके फल देने के आधार पर पर निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया गया है।
(1) Kendra Bhav-केन्द्र
लग्न (प्रथम), चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव केन्द्र स्थान कहलाते हैं।केंद्र स्थान कुंडली के शुभ भावों में आते हैं। केंद्र स्थान को विष्णु स्थान भी कहा जाता है।
(2) Trikona Bhav-त्रिकोण
पंचम व नवम भाव को त्रिकोण स्थान कहते हैं। लग्न त्रिकोण भी है। त्रिकोण भाव कुंडली के अति शुभ भाव हैं। 5 और 9 भाव को लक्ष्मी स्थान भी कहते हैं। जब विष्णु और लक्ष्मी स्थान के स्वामी एक साथ केंद्र या त्रिकोण भाव में हो तो राजयोग का निर्माण होता है।
(3)Panfar -पणफर
द्वितीय, पंचम, अष्टम तथा एकादश भाव पणफर कहलाते हैं।यह केंद्र स्थान से दूसरे होते हैं।
(4) Apoklima-आपोक्लिम
तृतीय, षष्ठ, नवम तथा द्वादश भाव आपोक्लिम कहलाते हैं। यह केंद्र से द्वादश होते हैं।
(5) Trik Bhav-त्रिक
षष्ठ, अष्टम व द्वादश भावों को त्रिक (दुःस्थान) कहते हैं। इन भाव में बैठे ग्रह सामन्यतः अच्छे परिणाम नहीं देते हैं।
(6) Upchay Bhav-उपचय
तृतीय, षष्ठ, दशम व एकादश भाव उपचय कहलाते हैं। यह भी कुंडली के अच्छे भाव नहीं होते हैं। इन भावों के स्वामी व्यक्ति के जीवन में संघर्ष को बढ़ाते हैं।
(7)Darm Arth Kaam Moksha Trikon-धर्म अर्थ काम मोक्ष त्रिकोण
हम जानते हैं कि मानव जीवन चार पुरुषार्थ हैं -धर्म ,अर्थ ,काम और मोक्ष। इन पुरुषार्थों का उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति है। वास्तव में धर्म,अर्थ और काम को यदि ठीक प्रकार से किया जाय तो मोक्ष की प्राप्ति स्वयं ही हो जाती है।
जन्म कुंडली में बारह भावों को चार त्रिकोणों में बांटा गया है। एक त्रिकोण में तीन भाव लिए जाते हैं।चारों त्रिकोणों का अपना अपना महत्त्व है। ये चारों त्रिकोण है। 1) धर्म त्रिकोण 2) अर्थ त्रिकोण 3) काम त्रिकोण 4) मोक्ष त्रिकोण
Dharm Trikona-धर्म त्रिकोण
कुंडली के 1,5,9 भाव मिलकर धर्म त्रिकोण बनाते हैं। किसी व्यक्ति विशेष का जन्म किसी विशेष कार्य हेतु हुआ होता है। धर्म त्रिकोण द्वारा व्यक्ति अपने जीवन के उद्देश्य को जान सकता है। वैसे तो कुंडली के सभी भाव हमें अपने पूर्व जन्म के पुण्य के आधार पर मिलते हैं परन्तु इनमें भी धर्म त्रिकोण विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं। लग्न किसी भी जातक की कुंडली का सबसे अधिक महत्वपूर्ण भाव है क्यों यह जातक की सामर्थ्य के विषय में बताता है। लग्न का अच्छी स्थिति में होना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि अन्य भाव कितने भी मजबूत क्यों न हो कर्म करने वाला तो जातक ही है।
पंचम भाव को पूर्व पुण्य का भाव भी कहते हैं। यह जातक की बुद्धि को दर्शाता है। नवम भाव भाग्य का है. यह व्यक्ति के धर्म मानने(सही मार्ग का पालन करना) को भी दिखाता है।
Arth Trikona-अर्थ त्रिकोण
कुंडली के 2,6,10 भाव अर्थ त्रिकोण में आते हैं। यह त्रिकोण व्यक्ति के आय के स्तोत्र को दर्शाता है।
Kaam Trikona-काम त्रिकोण
कुंडली के 3,7,11 भाव काम त्रिकोण में आते हैं। यह त्रिकोण यह दर्शाता है कि व्यक्ति किस प्रकार से अपनी इच्छा पूर्ति करेगा।
Moksha Trikona-मोक्ष त्रिकोण
कुंडली के 4 ,8 ,12 भाव काम त्रिकोण में आते हैं। यह त्रिकोण यह दर्शाता है कि व्यक्ति मोक्ष प्राप्ति की ओर अग्रसर होगा या नहीं।
Reference Books-संदर्भ पुस्तकें
- Brihat Parashara Hora Shastra –बृहत पराशर होराशास्त्र
- Phaldeepika (Bhavartha Bodhini)–फलदीपिका
- Saravali–सारावली