- Kendra Trikon Rajyog Kya Hota Hai-केंद्र त्रिकोण राजयोग क्या होता है
- Kendra Trikon Rajyog Kaise Banta Hai-केंद्र त्रिकोण राजयोग का निर्माण कैसे होता है
- Kendra Trikon Rajyog Example-केंद्र त्रिकोण राजयोग(विष्णु लक्ष्मी योग) का उदाहरण
- Kendra Trikon Rajyog in Famous Person Chart- प्रसिद्ध व्यक्तियों की कुंडली में राजयोग
- Karm Dharmadhipati Rajyog-कर्म धर्माधिपति योग
- Timing Of Kendra Trikon Rajyog-केंद्र त्रिकोण राजयोग का फल कब मिलेगा
- Rajyog Kab Phal Nahi Deta-राजयोग कब फल नहीं देता है
- Reference Books-संदर्भ पुस्तकें
Kendra Trikon Rajyog Kya Hota Hai-केंद्र त्रिकोण राजयोग क्या होता है
राजयोग की गणना ज्योतिषशास्त्र के शुभ योगों में होती है। यदि किसी व्यक्ति की जनम कुंडली में राजयोग उपस्थित हो तो उस व्यक्ति को अपने जीवन में विशिष्ट उपलब्धियां हासिल होती हैं और वह व्यक्ति अपने जीवन में कुछ विशिष्ट कार्य कर सकता है।
जिस समय हमारे ऋषियों ने राजयोगों के विषय में बताया था उस समय पर राजा का शासन होता था। उस समय पर सारी शक्ति राजा के पास ही होती थी। इसलिए प्राचीनकाल में वे योग जिनके द्वारा राजा शक्तिशाली बनता था उन्हें राजयोग कहते थे।
परन्तु यदि हम आज के परिपेक्ष्य के विषय में बात करें तो राजयोग का अर्थ उन योगों से लिया जा सकता है जो यदि जन्म कुंडली में उपस्थित हो तो जातक को अच्छी शिक्षा,उच्च पद, धन और प्रसिद्धि आदि मिलते हैं।
जब केंद्र स्थान और त्रिकोण के स्वामी एक दूसरे के सम्बन्ध बनाते हैं तो इसे केंद्र त्रिकोण राजयोग(Kendra Trikon Rajyog ) कहते हैं। केंद्र त्रिकोण राजयोग में भाग लेने वाले ग्रह अपनी दशा अन्तर्दशा में शुभ फल प्रदान करते हैं।केंद्र स्थान को विष्णु स्थान तथा त्रिकोण को लक्ष्मी स्थान कहते हैं। अतः इस योग को विष्णु लक्ष्मी योग भी कहते हैं।
Kendra Trikon Rajyog Kaise Banta Hai-केंद्र त्रिकोण राजयोग का निर्माण कैसे होता है
केंद्र के स्वामी और त्रिकोण के स्वामी आपस में सम्बन्ध बनाएं तो यह राजयोग का निर्माण करते हैं। जन्म कुंडली के (1,4,7,10 ) भाव को केंद्र स्थान या विष्णु स्थान कहते हैं तथा कुंडली के (1,5,9) भाव को त्रिकोण स्थान या लक्ष्मी स्थान भी कहते हैं। राजयोग का निर्माण केंद्र और त्रिकोण के परस्पर सम्बन्ध द्वारा होता है इसलिए इसे विष्णु लक्ष्मी योग भी कहते हैं।
केंद्र(1,4,7,10 ) + त्रिकोण (1,5,9 )
किसी कुंडली में निम्न राजयोग बन सकते हैं। (1,5) (1,9) (1,4),(1,7),(1,10),(4,5) (4,9) (7,5) (7,9) (10,5) (10,9 )
विष्णु स्थान से हमें ऊर्जा प्राप्त होती है और लक्ष्मी स्थान द्वारा हमें फल की प्राप्ति होती है। विष्णु स्थान से हमें ऊर्जा प्राप्त होती है और लक्ष्मी स्थान द्वारा हमें फल की प्राप्ति होती है।
Grahon Ke Beech Sambandh-ग्रहों के बीच सम्बन्ध
ग्रहों के बीच चार प्रकार से सम्बन्ध बनते हैं।
Yuti Sambandh in Kundali- युति
जब दो ग्रह एक साथ एक ही घर में हों तो दो ग्रहों के बीच युति होती है। यदि यह युति केंद्र और त्रिकोण के स्वामियों के बीच में हो तो इसे केंद्र त्रिकोण राजयोग या विष्णु लक्ष्मी योग कहते हैं।
Drishti Sambandh in Kundali-दृष्टि
यदि केंद्र और त्रिकोण के स्वामी के बीच दृष्टि सम्बन्ध हो तो यह भी केंद्र त्रिकोण राजयोग होगा।
Parivartan Sambandh in Kundali-परिवर्तन
जब केंद्र और त्रिकोण के स्वामियों के बीच राशि परिवर्तन हो तो भी केंद्र त्रिकोण राजयोग का निर्माण होता है ।
परिवर्तन को सर्वश्रेष्ठ सम्बन्ध माना जाता है।
Sthiti aur Drishti-स्थिति और दृष्टि
त्रिकोण का स्वामी यदि केंद्र में स्थित हो और उसी भाव का स्वामी उसे दृष्ट करे तो यह भी राजयोग होता है। इसी प्रकार यदि केंद्र का स्वामी त्रिकोण में स्थित हो और उसका राशि स्वामी उसे दृष्ट करे तो भी राजयोग(Rajyog) निर्मित होता है।
Kendra Trikon Rajyog Example-केंद्र त्रिकोण राजयोग(विष्णु लक्ष्मी योग) का उदाहरण
निम्न कुण्डली में पंचमेश शनि (त्रिकोण) सप्तमेश मंगल(केंद्र) के साथ लग्न में है। आठ यहाँ केंद्र और त्रिकोण के स्वामी के साथ में युति के कारण राजयोग का निर्माण हो रहा है। जब इस जातक की मंगल की दशा चली तो उसे पंचमेश से युति के कारण शिक्षा के क्षेत्र में अच्छे फल प्राप्त हुए।
Kendra Trikon Rajyog in Famous Person Chart- प्रसिद्ध व्यक्तियों की कुंडली में राजयोग
उदहारण कुण्डली 1 – Rajyog in Amitabh Bacchan Kundali-श्री अमिताभ बच्चन
श्री अमिताभ बच्चन जो जन्म कुंडली प्रचलित है उसके अनुसार वो कुम्भ लग्न के जातक हैं। उनकी कुंडली में बुध(पंचमेश और अष्टमेश), शुक्र(चतुर्थेश और नवमेश), सूर्य(सप्तमेश) और मंगल(तृतीयेश और दशमेश) युति करके अष्टम स्थान में स्थित हैं।
यहाँ पर दो त्रिकोण और दो केंद्र के स्वामी एक साथ युति करके पंचम स्थान में स्थित हैं। इस कारण जातक को अपने जीवन में पंचम स्थान से सम्बन्धित कला के क्षेत्र में विशिष्ट स्थान प्राप्त किया। जातक को चतुर्थ भाव के भी अच्छे फल मिले। जातक को नवम भाव के भी अच्छे फल प्राप्त हुए। जैसा कि हम सब जानते हैं कि जातक के पिता स्वर्गीय श्री हरिवंश राय बच्चन भी एक लोकप्रिय कवि थे। जातक को दशम भाव के भी अच्छे फल प्राप्त हुए। जातक न केवल उम्र के इस पड़ाव तक सक्रिय हैं उन्हें काफी प्रसिद्धि भी प्राप्त हुई।
इन ग्रहों के अष्टम भाव में स्थित होने के कारण जातक को अपने जीवन में विपरीत परस्थितियों का सामना करना पड़ा और स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं भी हुई।
उदहारण कुंडली 2- Rajyog in Narendra Modi Kundali-श्री नरेंद्र मोदी जी
श्री नरेंद्र मोदी जी की प्रचलित कुंडली के अनुसार वे वृश्चिक लग्न के जातक हैं। उनके कुंडली में लग्नेश मंगल स्वराशि के होकर नवमेश चन्द्रमा के साथ लग्न में स्थित हैं और केंद्र और त्रिकोण के स्वामी की युति के कारण राजयोग का निर्माण कर रहे हैं। साथ ही चतुर्थेश शनि और सप्तमेश शुक्र के ऊपर पंचमेश गुरू की सप्तम दृष्टि भी है इस कारण केंद्र और त्रिकोण के स्वामी के बीच दृष्टि सम्बन्ध होने के कारण यह भी राजयोग निर्मित हो रहा है।
जैसा की हम सभी को पता है कि मोदी जी ने अपने व्यक्तित्व के दम पर जीवन में सफलता प्राप्त की और उन्हें जनता का विश्वाश भी प्राप्त हुआ। वे शुक्र की महादशा में मुख्यमंत्री बने और चन्द्रमा की महादशा में प्रधानमंत्री बने।
Karm Dharmadhipati Rajyog-कर्म धर्माधिपति योग
यदि नवमेश(धर्म स्थान) व दशमेश(कर्म) परस्पर सम्बन्ध बनाये तो इसे कर्म धर्माधिपति योग कहते हैं। इसे सभी राजयोगों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। ऐसे व्यक्ति बहुत उच्च कोटि के कर्म करते हैं।
Timing Of Kendra Trikon Rajyog-केंद्र त्रिकोण राजयोग का फल कब मिलेगा
राजयोग का फल विशेष रूप से राजयोग निर्मित करने वाले ग्रहों की महादशा में मिलता है। यदि महादशा न भी मिले तो कुछ फल अन्तर्दशा में प्राप्त होता है।
जैसे यदि किसी कुंडली में शनि और गुरू राजयोग निर्मित कर रहें हो तो गुरु और शनि की दशा में राजयोग का फल प्राप्त होगा।
Rajyog Kab Phal Nahi Deta-राजयोग कब फल नहीं देता है
निम्न परिस्थितियों राजयोग विशेष फलदायी नहीं होते हैं
- जब जातक की कुंडली में लग्नेश कमजोर हो या पाप प्रभाव में हो।
- जब जातक की कुंडली में सूर्य और चन्द्रमा कमजोर हो या पाप प्रभाव में हो।
- राजयोग निर्मित करने वाले ग्रह त्रिषडाय के साथ सम्बन्ध कर लें।
- जो ग्रह राजयोग का निर्माण कर रहें हो उनकी दशा न मिले या बहुत कम या बहुत अधिक उम्र में प्राप्त हो अर्थात सही समय पर न प्राप्त हो।
Reference Books-संदर्भ पुस्तकें
- Brihat Parashara Hora Shastra –बृहत पराशर होराशास्त्र
- Phaldeepika (Bhavartha Bodhini)–फलदीपिका
- Saravali–सारावली
- Laghu Parashari–लघु पाराशरी