इस लेख के माध्यम से हम कृष्ण जी दो मधुर आरती(Krishna Ji Ki Aarti) को अपने पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत कर रहे हैं। इसको श्री कृष्ण के पूजन के उपरांत पढ़ने का विधान है। कृष्ण जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर इन आरती को अवश्य पढ़ें।
Krishna Ji Ki Aarti “Aarti Kunj Bihari Ki”
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
गले में बैजंती माला,
बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रवण में कुण्डल झलकाला,
नंद के आनंद नंदलाला ।
गगन सम अंग कांति काली,
राधिका चमक रही आली ।
लतन में ठाढ़े बनमाली
भ्रमर सी अलक,
कस्तूरी तिलक,
चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥
कनकमय मोर मुकुट बिलसै,
देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै ।
बजे मुरचंग,
मधुर मिरदंग,
ग्वालिन संग,
अतुल रति गोप कुमारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥
जहां ते प्रकट भई गंगा,
सकल मन हारिणि श्री गंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा
बसी शिव सीस,
जटा के बीच,
हरै अघ कीच,
चरन छवि श्रीबनवारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥
चमकती उज्ज्वल तट रेनू,
बज रही वृंदावन बेनू ।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू
हंसत मृदु मंद,
चांदनी चंद,
कटत भव फंद,
टेर सुन दीन दुखारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
Krishna Ji Ki Aarti “Jai Shri Krishna Hare“
ओम जय श्री कृष्ण हरे
प्रभु जय श्री कृष्ण हरे
शरण तुम्हारी भगवन
शरण तुम्हारी भगवन
नैया पार करे
ओम जय श्री कृष्ण हरे।
मोर मुकुट सिर सोहे
गले मे जय माला
प्रभु गले मे जय माला
श्याम वरण मुख सुंदर
श्याम वरण मुख सुंदर
जय जय नंदलला
ओम जय श्री कृष्ण हरे।
हे यदु वंश विभूषण
तुम मेरे स्वामी
प्रभु तुम मेरे स्वामी
सेवक की सुधि लेना
सेवक की सुधि लेना
प्रभु अंतर यामी
ओम जय श्री कृष्ण हरे
प्रभु जय श्री कृष्ण हरे।
हे गीता के गायक
जान नायक तुम हो
प्रभु जन नायक तुम हो
भक्तो के रखवाले
भक्तो के रखवाले
वरदायक तुम हो
ओम जय श्री कृष्ण हरे।
तुम गोवर्धन धारी
द्रोपदी के दुख हारी
प्रभु द्रोपदी के दुख हारी
मेरा भी दुख टालो
मेरा भी दुख टालो
प्रभु मंगल कारी
ओम जय श्री कृष्ण हरे।
राणा ने मीरा को भेजा विष प्याला
प्रभु भेजा विष प्याला
तुमने पल मे विष को
तुमने पल मे विष को
अमृत कर डाला
ओम जय श्री कृष्ण हरे।
विप्रा सुदामा की भी
तुमने मदद करी
प्रभु तुमने मदद करी
कुटिया महल बना दी
कुटिया महल बना दी
सारी विपदा हरी
ओम जय श्री कृष्ण हरे।
बिगड़ी बनानेवाले
बिगड़ी बना मेरी
प्रभु बिगड़ी बना मेरी
डाल दया की दृष्टि
डाल दया की दृष्टि
मदद करो प्रभु मेरी
ओम जय श्री कृष्ण हरे।
हे त्रिभुवन के दाता
दाता दुख हरता
प्रभु दाता दुख हरता
सबके काज सवरे
सबके काज सवरे
करो दया भरता
ओम जाई श्री कृष्ण हरे।
सुर नर ऋषि मुनि सारे
गावात गुण तेरे
प्रभु गावात गुण तेरे
जनम जनम के फेरे
जनम जनम के फेरे
काट प्रभु मेरे
ओम जय श्री कृष्ण हरे
जय श्री कृष्ण हरे।
प्रभु जय श्री कृष्ण हरे
ओम जय श्री कृष्ण हरे।
ओम जय श्री कृष्ण हरे
प्रभु जय श्री कृष्ण हरे
शरण तुम्हारी भगवन
शरण तुम्हारी भगवन
नैया पार करे
ओम जय श्री कृष्ण हरे ।