Shadbal Kya Hota Hai-षड्बल क्या है
षड्बल ग्रहों के छः प्रकार के बल का योग है, जिसके द्वारा ग्रहों के बल को मापा जाता है। ग्रह के बल द्वारा यह पता चलता है कि किसी ग्रह में कितना फल देने की सामर्थ्य है।
षड्बल के द्वारा हम किसी ग्रह के बल या शक्ति का पता लगा सकते हैं। षड्बल कोई एक बल नहीं है वरन ग्रह को विभिन्न बिंदुओं पर विचार करके हर बिंदु के हिसाब से उसे कुछ अंक प्रदान किये जाते हैं। इन सभी का योग ही षड्बल कहलाता है। क्योंकि यह छः बलों का योग है इसलिये इसे षड्बल कहते हैं। यह छः बल है- स्थान बल, दिग्बल, कालबल, चेष्टा बल, नैसर्गिक बल और दृष्टि बल।
- Shadbal Kya Hota Hai-षड्बल क्या है
- Shadbal Ka Mapan-षड्बल का मापन
- Shadbal Ke 6 Bal-षड्बल के 6 बल
- 1)Sthan Bal in Shadbal-स्थान बल(Positional Strength)
- 2)Digbal in Shadbal-दिग्बल(Directional Strength)
- 3)Kaal Bal in Shadbal-काल बल (Temporal Strength )
- 4)Chesta Bal in Shadbal-चेष्टा बल (Motional Strength)
- 5)Naisargik Bal in Shadbal-नैसर्गिक बल(Natural Strength)
- 6)Drishti Bal in Shadbal-दृष्टि बल/दृक् बल (Aspectual Strength)
- विभिन्न ग्रहों के लिए आवश्यक न्यूनतम षड्बल
- Vibhinn Shadbal Ka Mahatva-षड्बल में कौन सा बल कितना महत्वपूर्ण है
- Shadbal ka Upyog-षड्बल का उपयोग
- Reference Books-संदर्भ पुस्तकें
Shadbal Ka Mapan-षड्बल का मापन
ग्रहों के बल मापन इकाई -ग्रहों के बल को नापने की इकाई रूपा है।
1 रूपा बल = 60 षष्टियांश
Shadbal Ke 6 Bal-षड्बल के 6 बल
षड्बल छः बल निम्न हैं –
1)Sthan Bal/स्थान बल(Positional Strength), 2)Digbal/दिग्बल(Directional Strength , 3)Kaal Bal/काल बल(Temporal Strength) , 4)Chesta Bal/चेष्टा बल(Motional Strength) ,5)Naisargik Bal/नैसर्गिक बल(Natural Strength) , 6)Drishti Bal/दृष्टि बल(Aspectual Strength)
1)Sthan Bal in Shadbal–स्थान बल(Positional Strength)
स्थान बल षड्बल में पहला बल है। स्थान बल में कोई ग्रह किस भाव में, किस राशि में बैठा है इस आधार पर अंक दिये जाते हैं। जैसे कोई ग्रह अपनी उच्च या नीच राशि में हो ,शत्रु या मित्र राशि में हो , स्वग्रही या मूलत्रिकोण राशि में हो।
- उच्च बल
- सप्तवर्गीय बल
- ओज युग्म बल
- केंद्र बल
- द्रेष्काण्ड बल
1)Ucch Bala-उच्च बल
जब कोई ग्रह अपनी उच्च राशि में स्थित होता है तो उसे सबसे ज्यादा 60 षष्टियांश बल प्राप्त होता है जबकि अपनी नीच राशि में होने पर शून्य बल प्राप्त होता है। बीच के किसी स्थान में स्थित होने पर उसी अनुपात में बल मिलता है।
उदहारण के लिए यदि सूर्य मेष राशि में हो तो 60 षष्टियांश बल मिलेगा और तुला राशि में शून्य।
मेष(60)-> वृषभ(50)-> मिथुन(40) ->कर्क(30)-> सिंह(20) ->कन्या(10)-> तुला (0)
2)Saptavargaja Bala-सप्त वर्गीय
सप्तवर्गीय बल के अंतर्गत राशि(D-1) ,होरा(D-2) ,द्रेष्कांड(D-3) ,सप्तमांश(D-7) ,नवमांश(D-9) ,द्वादशमांश(D-12) ,त्रिशांश(D-30) कुंडली में ग्रह किस राशि में है इस आधार पर अंक दिये जाते हैं।
राशि | षष्टियांश |
मूलत्रिकोण राशि | 45 |
स्वराशि (own sign) | 30 |
अति मित्र राशि(great friend) | 22.5 |
मित्र राशि (friend) | 15 |
तटस्थ राशि(neutral sign) | 7.5 |
शत्रु राशि(inimical sign) | 3.75 |
अति शत्रु राशि(great enemy) | 1.875 |
3)Oja Yugma Bala-ओज -युग्म बल /युगमयुग्म बल
ग्रहों को सम या विषम राशि में स्थित होने पर जो बल प्राप्त होता है उसे युगमयुग्म बल कहते हैं। इसे राशि और नावमांश दोनों में देखा जाता है। इस हिसाब से किसी ग्रह को अधिकतम 30 अंक मिल सकते है।
पुरूष ग्रहों को विषम राशि में बल मिलता है और स्त्री ग्रहों को सम राशि में बल मिलता है।
सूर्य, मंगल ,बुध ,बृहस्पति ,शनि यदि विषम राशि में हों तो उन्हें 15 षष्टियांश बल मिलता है।
चन्द्रमा और शुक्र यदि सम राशि में हों तो उन्हें 15 षष्टियांश बल मिलता है।
4)Kendra Bala-केंद्र बल
कोई ग्रह केंद्र ,पणफर या आपोक्लिम कहाँ पर स्थित है इस आधार पर उसे बल मिलता है।
भाव | बल |
केन्द्र (1,4,7,10) | 60 षष्टियांश |
पणफर(2,5,8,11) | 30 षष्टियांश |
आपोक्लिम(3,6,9,12) | 15 षष्टियांश |
5)Dreshkand Bala-द्रेष्काण्ड बल
इस ग्रह किस द्रेष्काण्ड में गया है इस आधार पर बल मिलता है। प्रत्येक राशि को तीन द्रेष्काण्ड में बांटा जाता है। 0-10 के बीच स्थित ग्रह प्रथम द्रेष्काण्ड में, 10-20 के बीच स्थित ग्रह द्वितीय द्रेष्काण्ड में, 20-30 के बीच स्थित ग्रह तृतीय द्रेष्काण्ड में आता है।
ग्रह | अंश | बल |
सूर्य ,मंगल बृहस्पति | 0°-10° | 15 षष्टियांश |
बुध शनि | 10°-20° | 15 षष्टियांश |
शुक्र ,चन्द्रमा | 20°-30° | 15 षष्टियांश |
2)Digbal in Shadbal-दिग्बल(Directional Strength)
कोई ग्रह कुंडली में किस दिशा में बैठा है इस आधार पर उसे दिग्बल मिलता है। लग्न या पहला भाव पूर्व दिशा का ,सप्तम भाव पश्चिम दिशा का ,दशम भाव दक्षिण दिशा का और चतुर्थ भाव उत्तर दिशा का द्योतक है।
कौन सा ग्रह किस दिशा में बली होता है निम्न तालिका द्वारा देखा जा सकता है।
भाव | दिशा | ग्रह | बल(अधिकतम) |
प्रथम भाव | पूर्व दिशा | बुध, बृहस्पति | 60 षष्टियांश |
चतुर्थ भाव | उत्तर दिशा | शुक्र, चंद्रमा | 60 षष्टियांश |
सप्तम भाव | पश्चिम दिशा | शनि | 60 षष्टियांश |
दशम भाव | दक्षिण दिशा | सूर्य, मंगल | 60 षष्टियांश |
3)Kaal Bal in Shadbal-काल बल (Temporal Strength )
यह बल ग्रहों को जन्म के समय के कारण मिलता है। इसके नौ भेद हैं –
- नतोन्नत बल
- पक्ष बल
- त्रिभाग बल
- वर्ष बल
- मास बल
- वार बल
- होरा बल
- अयन बल
- युद्ध बल
1)Natonnata Bala-नतोन्नत बल
इसे दिवा रात्रि बल भी कहते हैं। जैसा कि नाम से स्पष्ट है ग्रहों को यह बल दिन अथवा रात्रि किस समय पर जातक का जन्म हुआ है इस आधार पर मिलता है। कुछ ग्रह दिन में ज्यादा बली होते हैं तो कुछ रात्रि में।
ग्रह | काल | बल |
सूर्य, बृहस्पति, शुक्र | दिन | 60 षष्टियांश |
चंद्रमा, मंगल, शनि | रात | 60 षष्टियांश |
बुध | दिन और रात | 60 षष्टियांश |
2)Paksha Bala- पक्ष बल
जातक का जन्म कृष्ण पक्ष में हुआ है या शुक्ल पक्ष में इस आधार पर ग्रहों को बल मिलता है। कुछ ग्रह शुक्ल पक्ष में ज्यादा शक्तिशाली होते हैं तो कुछ ग्रह कृष्ण पक्ष में।
ग्रह | पक्ष | बल |
चंद्रमा,बृहस्पति, शुक्र,बुध | शुक्ल पक्ष | 60 षष्टियांश |
सूर्य, मंगल, शनि | कृष्ण पक्ष | 60 षष्टियांश |
3)Tribhag Bala-त्रिभाग बल
जैसा की नाम से पता चल रहा है त्रिभाग का अर्थ है तीन भाग का बल। यह बल दिनमान और रात्रिमान को तीन सामान भागों में विभक्त कर उन भागों के स्वामियों को मिलता है।
बुध दिन के पहले एक तिहाई भाग में 60 षष्टियांश बल मिलता है।
सूर्य दिन के दूसरे एक तिहाई भाग में 60 षष्टियांश बल मिलता है।
शनि दिन के तीसरे एक तिहाई भाग में 60 षष्टियांश बल मिलता है।
चंद्रमा रात के पहले एक तिहाई भाग में 60 षष्टियांश बल मिलता है।
शुक्र रात के दूसरे एक तिहाई भाग में 60 षष्टियांश बल मिलता है।
मंगल रात के तीसरे एक तिहाई भाग में 60 षष्टियांश बल मिलता है।
बृहस्पति पूरे दिन रात 60 षष्टियांश बल मिलता है।
4)Varsha Bala-वर्ष बल /आब्द बल /वर्षाधिपति बल
विक्रम सम्वत के अनुसार जो वर्ष का अधिपति होगा उसके आधार पर किस ग्रह को कितना बल प्राप्त होगा यह देखा जाता है। जो ग्रह वर्षाधिपति बनता है उसे 15 षष्टियांश का बल मिलता है।
5)Masadipati Bala-मासाधिपति बल
किसी मास का अधिपति कौन बना इस आधार पर ग्रहों को बल दिया जाता है।मासाधिपति को 30 षष्टियांश का बल मिलता है।
6)Vara Bala-वार बल
जातक का जन्म किस वार को हुआ। उस वार के अधिपति के आधार पर ग्रहों को कम ज्यादा बल मिलता है। जिस वार को जन्म हुआ हो उस वार के अधिपति को 45 षष्टियांश का बल मिलता है।
7)Hora Bala-होरा बल
जातक का जन्म किस होरा में हुआ है उस आधार पर ग्रहों को बल मिलता है। जिस ग्रह की होरा में जन्म हुआ हो उस ग्रह को 60 षष्टियांश का बल प्राप्त होता है।
8)Ayan Bala-अयन बल
ग्रहों को उत्तरायण या दक्षिणायन में स्थित होने पर जो बल प्राप्त होता है उसे अयन बल कहते हैं। सूर्य ,मंगल , बृहस्पति , शुक्र को उत्तरायण में अधिक बल प्राप्त होता है तथा शनि और चन्द्रमा को दक्षिणायन में अधिक बल प्राप्त होता है। बुध को दोनों में ही 60 षष्टियांश का बल मिलता है।
8)Yuddha Bala-युद्ध बल
यदि दो ग्रहों के भोगांश का अंतर एक अंश से कम हो तब वे युद्ध की स्थिति में माने जाते हैं। जिस ग्रह के भोगांश कम होते हैं वह युद्ध जीतता है और हारने वाले ग्रह से कुछ बल कम करके जीतने वाले ग्रह को दे दिया जाता है।
4)Chesta Bal in Shadbal-चेष्टा बल (Motional Strength)
ग्रहों के वक्रत्व के कारण उन्हें जो बल प्राप्त होता है उसे चेष्टा बल कहते हैं। वक्री ग्रह पृथ्वी के समीप होते हैं इसलिए उनका पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण बल अधिक होता है।
- वक्री(Retrogression) -जब कोई ग्रह वक्री गति में होता है तो उसे 60 षष्टियांश का चेष्टा बल मिलता है।
- अनुवक्री -जब ग्रह वक्री गति में पिछली राशि में प्रवेश करता है तो उसे 30 षष्टियांश बल मिलता है।
- विकल -जब ग्रह वक्री होने के पहले या बाद में अपनी गति खो देता है तो उसे 15 षष्टियांश बल मिलता है।
- मंद -जब ग्रह सामान्य से धीमी गति से चलता है तो उसे 30 षष्टियांश बल मिलता है।
- मंदतर -जब ग्रह मंद से भी धीमी गति से चलता है तो उसे 15 षष्टियांश बल मिलता है।
- सम-जब ग्रह अपनी सामान्य गति से चल रहा होता है तो उसे 7. 5 षष्टियांश बल मिलता है।
- चर -जब ग्रह सामान्य से तेज गति से चल रहा होता है तो उसे 45 षष्टियांश बल मिलता है।
- अतिचारी -जब ग्रह तेज गति से चल रहा हो और दूसरी राशि में गोचर करने वाला हो तो उसे 30 षष्टियांश बल मिलता है।
5)Naisargik Bal in Shadbal-नैसर्गिक बल(Natural Strength)
किसी ग्रह का कितना प्रकाश पृथ्वी पर आता है इस आधार पर उसे नैसर्गिक बल प्राप्त होता है।
ग्रह | बल |
सूर्य | 1 रूपा |
चंद्रमा | 0.857 रूपा |
शुक्र | 0.714 रूपा |
बृहस्पति | 0.571 रूपा |
बुध | 0.429 रूपा |
मंगल | 0.286 रूपा |
शनि | 0.143 रूपा |
6)Drishti Bal in Shadbal-दृष्टि बल/दृक् बल (Aspectual Strength)
किसी ग्रह पर जब दूसरे ग्रह की दृष्टि पड़ती है तो उसे दृष्टि बल प्राप्त होता है। अशुभ ग्रहों पर जब शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ती है तो वो भी शुभ फलदायक हो जाते हैं।सभी ग्रह अपनी सातवीं दृष्टि से सामने वाले भाव या उसमें स्थित ग्रह को देखते हैं। इसका अर्थ है वे अपने से 180° पर देखते है और यह दृष्टि सर्वाधिक बलशाली होती है।
जब दृष्टि कोण 180° का होता है तब 1 रूपा या 60 षष्टियांश का बल मिलता है।
इसी प्रकार 300 से 360 या 0 से 30 के मध्य शून्य रूपा बल मिलता है
60 या 270 पर 15 षष्टियांश का बल मिलता है।
90 या 210 पर 45 षष्टियांश का बल मिलता है।
120 या 240 पर 30 षष्टियांश का बल मिलता है।
इसके अतिरिक्त मंगल ,बृहस्पति और शनि देव को विशेष दृष्टियां प्राप्त होती हैं। मंगल देव के पास चौथी और आठवीं ,बृहस्पति देव के पास पांचवी और नवीं तथा शनि देव के पास तीसरी और दसवीं विशेष दृष्टि होती है।
विभिन्न ग्रहों के लिए आवश्यक न्यूनतम षड्बल
विभिन्न ग्रहों अलग -अलग बल की आवश्यकता होती है ताकि वह फल दे सकें। निम्न तालिका में विभिन्न ग्रहों के न्यूनतम आवश्यक बल को दिखाया गया है।
ग्रह | रूपा | षष्टियांश |
सूर्य | 6.5 | 390 |
चंद्र | 6 | 360 |
मंगल | 5 | 300 |
बुध | 7 | 420 |
शुक्र | 5.5 | 330 |
बृहस्पति | 6.5 | 390 |
शनि | 5 | 300 |
यदि किसी ग्रह को न्यूनतम आवश्यक बल से ज्यादा बल मिलता है तो वह शक्तिशाली कहा जाता है इसका अर्थ है कि उस ग्रह में फल देने की क्षमता है और यदि इससे कम बल प्राप्त हो तो उसे कमजोर कहा जाता है।
Vibhinn Shadbal Ka Mahatva-षड्बल में कौन सा बल कितना महत्वपूर्ण है
निम्न तालिका में कौन सा बल षड्बल का कितना भाग बनाता है दिया गया है। इसके अनुसार सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण स्थान बल हुआ तत्पश्तात काल बल। ये दोनों षड्बल का क्रमशः 43.24% और 35.13 % भाग बनाते हैं। अतः ये अत्यंत महवपूर्ण हैं।
बल | कुल बल | भार प्रतिशत |
स्थान बल | 480 | 43.24 |
दिग्बल | 60 | 5.4 |
काल बल | 390 | 35.13 |
चेष्टा बल | 60 | 5.4 |
नैसर्गिक बल | 60 | 5.4 |
दृष्टि बल | 60 | 5.4 |
योग | 1110 |
Shadbal ka Upyog-षड्बल का उपयोग
- षड्बल के द्वारा किसी ग्रह की वास्तविक शक्ति का पता चलता है। चाहे कोई ग्रह कितना भी योगकारक क्यों न हो परन्तु यदि उसमे बल न हो तो वह हमें फल देने में असमर्थ होगा।
- इसी प्रकार यदि दशाओं की बात करें तो दशानाथ और अन्तर्दशा नाथ में जो ग्रह ज्यादा बली होगा जातक पर उस ग्रह का ज्यादा प्रभाव होगा।
- आयु निर्णय में ग्रहों का बल अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। लग्नेश,तृतीयेश और अष्टमेश यदि बली हो तथा द्वितीयेश ,सप्तमेश और द्वादशेश यदि कमजोर हो तो जातक दीर्घायु होता है।
- यदि किसी ग्रह पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो वह शुभत्व को प्राप्त कर लेता है अर्थात शुभ फल देने वाला हो जाता है।
- यदि किसी ग्रह को स्थान बल प्राप्त हो तो वह पद प्रतिष्ठा देने वाला हो जाता है।
- दिग्बल द्वारा यह पता चल सकता है कौन सी दिशा हमारे लिए अच्छा परिणाम देगी।
- इसी प्रकार काल बल द्वारा यह पता चल सकता है की कौन सा समय हमारे लिए शुभ है।
Reference Books-संदर्भ पुस्तकें
- Brihat Parashara Hora Shastra –बृहत पराशर होराशास्त्र
- Phaldipika–फलदीपिका
- Splendor of Vargas by Justice S N Kapoor
- Saravali-सारावली
Excellent presentation
Thanks for appreciation.