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Nag Panchami

Nag Panchami Katha Aur Mahatva -नाग पंचमी 

Posted on August 15, 2023July 28, 2025 by santwana

Nag Panchami हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहारों में से है। हिन्दू पंचांग के अनुसार सावन माह की कृष्ण पक्ष के पंचमी को नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन नाग देवता या सर्प की पूजा की जाती है और उन्हें दूध से स्नान कराया जाता है।

विषय-सूचि
  1. Nag Panchami-नाग पंचमी 
  2. Nag Panchami Tithi Aur Puja Muhurt-नाग पंचमी तिथि और पूजा का मुहूर्त
  3. Nag Panchami Katha-नाग पंचमी कथा 
  4. Nagpanchami Ka Mahatva-नाग पंचमी का महत्व
    • Ashtnaag-अष्टनाग
  5. Naag Devta Mantra-नाग देवता मन्त्र

Nag Panchami-नाग पंचमी 

श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पंचमी कहते हैं। इस दिन नागों की पूजा की जाती है। गरुण पुराण  में ऐसा कहा गया है कि नाग पंचमी(Nag Panchami) के दिन घर के दोनों बगल में नाग देवता की मूर्ति खींचकर अनन्तर प्रमुख महानागों का पूजन किया जाना चाहिए।

पंचमी नागों की तिथि है ,ज्योतिष के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी नाग हैं। इसलिए शेष आदि सर्पराजों का पूजन पंचमी को होना चाहिए। सुंगंधित पुष्प तथा दूध सर्पों को अति प्रिय हैं। गाँवो में इस दिन को नागचैयां भी कहते हैं। इस दिन ग्रामीण लड़कियां किसी जलाशय में गुड़ियों का विसर्जन करती हैं। ग्रामीण बच्चे तैरती हुई इन निर्जीव गुड़ियों को पीटते हैं। तत्पश्चात बहन उन्हें रुपयों की भेंट तथा आशीर्वाद देती हैं। 

Nag Panchami Tithi Aur Puja Muhurt-नाग पंचमी तिथि और पूजा का मुहूर्त

नाग पञ्चमी सोमवार, 29 जुलाई, 2023
नाग पञ्चमी पूजा मूहूर्त – 05:29 ए एम से 08:11 ए एम
अवधि – 02 घण्टे 42 मिनट्स

पञ्चमी तिथि प्रारम्भ – 28 जुलाई, 2023 को 11:24 पी एम
पञ्चमी तिथि समाप्त – 29 जुलाई , 2023 को 12:46 पी एम

Nag Panchami Katha-नाग पंचमी कथा 

प्राचीन काल की दन्त कथाओं से ज्ञात होता है कि किसी ब्राह्मण की सात पुत्रवधुयें थीं। सावन मास लगते ही छः बहुएं तो भाई के साथ मायके चली गईं परन्तु सातवीं बहु का कोई भाई ही न था तो बुलाने कौन आता। बेचारी ने अति दुःखी होकर पृथ्वी को धारण करने वाले शेष नाग को भाई रूप में याद किया।

करुणा युक्त दीन वाणी सुनकर शेष जी वृद्ध ब्राह्मण के रूप में आये और उसे लिवाकर चल दिये। थोड़ी दूर रास्ता तय करने पर उन्होंने अपना असली रूप धारण कर लिया। तब फन पर बैठा कर नागलोक ले गये। वहाँ वह निश्चिन्त होकर रहने लगी। पाताल -लोक में जब वह निवास कर रही थी उसी समय शेष जी की कुल परम्परा में नागों के बहुत से बच्चों ने जन्म लिया।

उन नाग बच्चों को सर्वत विचरण करते देख शेष -नागरानी ने उस वधू को पीतल का एक दीपक दिया तथा बताया कि इसके प्रकाश से तुम अँधेरे में भी सब कुछ देख सकोगी। एक दिन अकस्मात उसके हाथ से दीपक नीचे टहलते हुए नाग बच्चों पर गिर गया। परिणाम स्वरूप उन सबकी थोड़ी पूंछ कट गई। 

यह घटना घटित होते ही कुछ समय बाद वह ससुराल भेज दी गई। जब अगला सावन आया तो वह वधू दीवार पर नागदेवता को उरेहकर उनकी विधिवत पूजा तथा मंगल कामना करने लगी। इधर क्रोधित नाग बालक माताओं से अपनी पूंछ काटने का आदिकारण इस वधू को मानकर बदला लेने के लिए आये थे। लेकिन अपनी ही पूजा में श्रद्धा वनत उसे देखकर वे सब प्रसन्न हुए और उनका क्रोध समाप्त हो गया। 

बहन स्वरूपा उस वधू के हाथ से प्रसाद के रूप में उन लोगों ने दूध तथा चावल भी खाया। नागों ने उसे सर्पकुल से निर्भय होने का वरदान दिया तथा उपहार में मड़ियों की माला दी। 

उन्होंने यह भी बताया की श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को हमें भाई के रूप में जो भी पूजेगा हम उसकी रक्षा करते रहेंगे। 

Nagpanchami Ka Mahatva-नाग पंचमी का महत्व

हिन्दू धर्म में नागों को विशेष स्थान प्राप्त है। इनका इतना अधिक महत्त्व है कि महादेव स्वयं वासुकि नामक नाग को अपने गले में धारण करते हैं तथा जगत के पालनहार भगवान विष्णु शेष शैय्या पर विराजमान रहते हैं।
नाग शब्द संस्कृत और पालि का शब्द है जो भारतीय धर्मों में महान सर्प को दर्शाता है । नाग दिव्य या अर्ध-दिव्य देवता हैं।हिन्दू मान्यताओं में अष्टनागों का वर्णन मिलता है जिनका बहुत महत्व है।

Ashtnaag-अष्टनाग

हिन्दू मान्यताओं के अनुसार अष्टनाग हैं – अनंत (शेष), 2. वासुकी, 3. तक्षक, 4. कर्कोटक, 5. पद्म, 6. महापद्म, 7. शंख और 8. कुलिक।

  • शेषनाग -कहा जाता है कि इनके के फन पर धरती टिकी हुई है यह पाताल लोक में ही रहते हैं। चित्रों में अक्सर हिंदू देवता भगवान विष्णु को शेषनाग पर लेटे हुए चित्रित किया गया है।मान्यता है कि शेषनाग के हजार मस्तक हैं। इनका कही अंत नहीं है इसीलिए इन्हें ‘अनंत’ भी कहा गया है।
  • वासुकि -शेषनाग के भाई वासुकि को भगवान शिव के सेवक थे। नागों के दूसरे राजा वासुकि का इलाका कैलाश पर्वत के आसपास का क्षेत्र था। पुराणों अनुसार वासुकि नाग अत्यंत ही विशाल और लंबे शरीर वाले माने जाते हैं। समुद्र मंथन के दौरान देव और दानवों ने मंदराचल पर्वत को मथनी तथा वासुकी को ही नेती (रस्सी) बनाया था। त्रिपुरदाह के समय वह शिव के धनुष की डोर बने थे।
  • तक्षक ने शम‍ीक मुनि के शाप के आधार पर राजा परीक्षित को डंसा था। उसके बाद परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने नाग जाति का नाश करने के लिए नाग यज्ञ करवाया था। माना जाता है कि तक्षक का राज तक्षशिला में था।
  • कर्कोटक– कर्कोटक और ऐरावत नाग कुल का इलाका पंजाब की इरावती नदी के आसपास का माना जाता है। कर्कोटक शिव के एक गण और नागों के राजा थे।
    नारद ऋषि के शाप से वे एक अग्नि में पड़े थे, लेकिन नल ने उन्हें बचाया और कर्कोटक ने नल को डस लिया, जिससे राजा नल का रंग काला पड़ गया। लेकिन यह भी एक शाप के चलते ही हुआ तब राजा नल को कर्कोटक वरदान देकर अंतर्ध्यान हो गए।
    शिवजी की स्तुति के कारण कर्कोटक जनमेजय के नाग यज्ञ से बच निकले थे और उज्जैन में उन्होंने शिव की घोर तपस्या की थी। कर्कोटेश्वर का एक प्राचीन उपेक्षित मंदिर आज भी चौबीस खम्भा देवी के पास कोट मोहल्ले में है। वर्तमान में कर्कोटेश्वर मंदिर हरसिद्धि के प्रांगण में है।
  • पद्म – पद्म नागों का गोमती नदी के पास के नेमिश नामक क्षेत्र पर शासन था। बाद में ये मणिपुर में बस गए थे। असम के नागावंशी इन्हीं के वंश से है।
  • महापद्म– विष्णुपुराण में सर्प के विभिन्न कुलों में महापद्म का नाम भी आया है। पद्म और महापद्म नाग कुल में विशेष प्रीति थी।
  • शंख– नागों के 8 मुख्य कुलों में से एक है। शंख नागों पर धारियां होती हैं। यह जाति अन्य नाग जातियों की अपेक्षा अधिक बुद्धिमान मानी जाती थी।
  • कुलिक– कुलिक नाग जाति नागों में ब्राह्मण कुल की मानी जाती है जिसमें अनंत भी आते हैं। ये अन्य नागों की भांति कश्यप ऋषि के पुत्र थे लेकिन इनका संबंध सीधे ब्रह्माजी से भी माना जाता है।

नाग पंचमी के पावन पर्व पर वाराणसी (काशी) में नाग कुआँ मंदिर, नागचंद्रेश्वर मंदिर उज्जैन, नाग वासुकि मंदिर, तक्षेश्वर मंदिर आदि मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ती है और मेला लगता है। इनमें से कुछ मंदिरों में दर्शन मात्र से कालसर्प दोष की शांति हो जाती है।

Nagchandreshwar Temple
नागचंद्रेश्वर मंदिर उज्जैन

आइए कुछ प्रमुख नाग मंदिरो के विषय में जानते हैं।भारत के प्रमुख नाग मंदिरो के विषय में जानने के लिए निम्न लेख पढ़ें।

भारत के प्रमुख नाग मंदिर

Naag Devta Mantra-नाग देवता मन्त्र

सर्वे नागाः प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले.
ये च हेलिमरीचिस्था येऽन्तरे दिवि संस्थिताः॥
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिनः.
ये च वापीतडगेषु तेषु सर्वेषु वै नमः॥

अर्थ – इस संसार में, आकाश, स्वर्ग, झीलें, कुएँ, तालाब तथा सूर्य-किरणों में निवास करने वाले सर्प, हमें आशीर्वाद दें तथा हम सभी आपको बारम्बार नमन करते हैं ।

अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्.
शङ्ख पालं धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा॥
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्.
सायङ्काले पठेन्नित्यं प्रातःकाले विशेषतः.
तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्॥

अर्थ – नौ नाग देवताओं के नाम अनन्त, वासुकी, शेष, पद्मनाभ, कम्बल, शङ्खपाल, धृतराष्ट्र, तक्षक तथा कालिया हैं. यदि प्रतिदिन प्रातःकाल नियमित रूप से इनका जप किया जाता है, तो नाग देवता आपको समस्त पापों से सुरक्षित रखेंगे तथा आपको जीवन में विजयी बनायेंगे ।

Category: Festival, Sprituality Hindi

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