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Navgrah Stotra With Hindi Meaning

Navgrah Stotra With Hindi Meaning-नवग्रह स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित

Posted on March 22, 2023April 17, 2024 by santwana

Navgrah Stotra

ज्योतिष शास्त्र में सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु को नवग्रहों की संज्ञा प्राप्त है। जिसमें राहु केतु को छोड़कर शेष ग्रह सपिंड ग्रह हैं। राहु केतु छाया ग्रह हैं।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार ये सभी नौ ग्रह मानव जीवन पर गहरा प्रभाव डालते हैं अतः इन्हें देवताओं की संज्ञा प्राप्त है। नवग्रह स्तोत्र इन्हीं नौ ग्रहों की स्तुति के मन्त्र हैं।

विषय-सूचि
  1. Navgrah Stotra Lyrics-नवग्रह स्तोत्र
  2. Navgrah Stotra Meaning in Hindi-नवग्रह स्तोत्र हिन्दीअर्थ
  3. Navgrah Stotra Path Ke Labh- नवग्रह स्तोत्र पाठ के लाभ

Navgrah Stotra Lyrics-नवग्रह स्तोत्र

जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महदद्युतिं ।
तमोरिंसर्व पापघ्नं प्रणतोस्मि दिवाकरम् ।। १ ।।

दधिशंख तुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवं ।
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणम् ।। २ ।।

धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांती समप्रभम् ।
कुमारं शक्तिहस्तं मंगलं प्रणमाम्यहं ।। ३ ।।

प्रियंगुकलिका श्यामं रुपेणा प्रतिमं बुधं ।
सौम्यं सौम्य गुणपेतं तं बुधं प्रणमाम्यह ।। ४ ।।

देवानां च ऋषीनां च गुरुं कांचन सन्निभम् ।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम् ।। ५ ।।

हिमकुंद मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुं ।
सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यह ।। ६ ।।

नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् ।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम् ।। ७ ।।

अर्धकायं महावीर्यं चंद्रादित्य विमर्दनम् ।
सिंहिका गर्भसंभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम् ।। ८ ।।

पलाशपुष्प संकाशं तारका ग्रह मस्तकम् ।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम् ।। ९ ।।

फलश्रुति :

इति श्रीव्यासमुखोग्दीतम् यः पठेत् सुसमाहितः ।
दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्नशांतिर्भविष्यति ।। १० ।।

नर नारी नृपाणांच भवेत् दुःस्वप्न नाशनम् ।
ऐश्वर्यमतुलं तेषां आरोग्यं पुष्टिवर्धनम् ।। ११ ।।

ग्रह नक्षत्रजाः पीडास्तस्कराग्निसमुभ्दवाः ।
ता: सर्वाःप्रशमं यान्ति व्यासो ब्रुतेन संशयः ।। १२ ।।

।। इति श्रीव्यास विरचितम् आदित्यादी नवग्रह स्तोत्रं संपूर्णं ।।

Navgrah Stotra Path

Navgrah Stotra Meaning in Hindi-नवग्रह स्तोत्र हिन्दीअर्थ

Navgrah Stotra
Navgrah Stotra

जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महदद्युतिं । 
तमोरिंसर्व पापघ्नं प्रणतोस्मि दिवाकरम् ।। १ ।। 

जपा(गुड़हल) के पुष्पों (फूलों ) की तरह जिनकी कांति है ,जो कश्यप ऋषि से उत्पन्न हुए हैं ,जो अन्धकार के शत्रु हैं ,जो सब पापों का नाश कर देते हैं ऐसे सूर्य भगवान को मैं नमस्कार करता हूँ। (1)

दधिशंख तुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवं । 
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणम् ।। २ ।। 

दही ,शंख अथवा हिम के समान जिनकी चमक है ,जिनकी उत्पत्ति क्षीर समुद्र से हुई है ,जो शिव जी के मस्तक पर अलंकार की तरह विराजमान रहते हैं ,उन चंद्रदेव को मैं प्रणाम करता हूँ। (2)

धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांती समप्रभम् । 
कुमारं शक्तिहस्तं मंगलं प्रणमाम्यहं ।। ३ ।। 

पृथ्वी के उदर से जिनकी उत्पत्ति हुई है ,विद्युतपुंज के समान जिनकी प्रभा है ,जो हाथों में शक्ति धारण किये रहते हैं उन मंगल देव को मैं प्रणाम करता हूँ। (3)

प्रियंगुकलिका श्यामं रुपेणा प्रतिमं बुधं । 
सौम्यं सौम्य गुणपेतं तं बुधं प्रणमाम्यह ।। ४ ।।
 

प्रयंगु की कलि के समान जिनका श्याम वर्ण है ,जिनके रूप की कोई उपमा नहीं है ,उन सौम्य और गुणों से युक्त बुध देव को मैं प्रणाम करता हूँ। (4)

देवानां च ऋषीनां च गुरुं कांचन सन्निभम् । 
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम् ।। ५ ।। 

जो देवताओं और ऋषियों के गुरु हैं ,कंचन के समान जिनकी प्रभा है ,जो बुद्धि के अखंड भंडार और तीनों लोकों के प्रभु हैं उन बृहस्पति देव को मैं प्रणाम करता हूँ। (5)

हिमकुंद मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुं । 
सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यह ।। ६ ।। 

तुषार,कुंद अथवा मृडाल के समान जिनकी आभा है,जो दैत्यों के परम गुरु हैं ,सब शास्त्रों के अद्वित्य वक्ता शुक्र देव को मैं प्रणाम करता हूँ। (6)

नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् । 
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम् ।। ७ ।।
 

नील अंजन के समान जिनकी दीप्ती है,जो सूर्य भगवान के पुत्र तथा यमराज के बड़े भ्राता हैं ,सूर्य की छाया से जिनकी उत्पत्ति हुई है उन शनिदेव को मैं प्रणाम करता हूँ। (7)

अर्धकायं महावीर्यं चंद्रादित्य विमर्दनम् । 
सिंहिका गर्भसंभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम् ।। ८ ।।

जिनका केवल आधा शरीर है ,जिनका पराक्रम महान है ,जो चंद्र और सूर्य देव को भी परास्त कर देते हैं सिंहिका के गर्भ से जिनकी उत्पत्ति हुई है उन राहु देव को मैं प्रणाम करता हूँ। (8)

पलाशपुष्प संकाशं तारका ग्रह मस्तकम् । 
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम् ।। ९ ।।

पलाश के पुष्पों के समान जिनकी लाल दीप्ती है ,जो समस्त तरकाओं में श्रेष्ठ हैं ,जो स्वयं रौद्र रूप और रौद्रात्मक हैं ऐसे घोर रूपधारी केतु देव को मैं प्रणाम करता हूँ। (9)

 फलश्रुति :

इति श्रीव्यासमुखोग्दीतम् यः पठेत् सुसमाहितः । 
दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्नशांतिर्भविष्यति ।। १० ।। 

व्यास जी द्वारा रचित इस स्तोत्र का जो रात अथवा दिन में पाठ करता है उसकी सारी विघ्न बाधाए दूर हो जाती हैं। (10)

नर नारी नृपाणांच भवेत्  दुःस्वप्न नाशनम् । 
ऐश्वर्यमतुलं तेषां आरोग्यं पुष्टिवर्धनम् ।। ११ ।। 

संसार के साधारण स्त्री -पुरुष और राजाओं के भी दुःस्वप्न(बुरा स्वप्न) जन्य दोष दूर हो जाते हैं, उसे अतुल्य ऐश्र्वर्य, आरोग्य और धन की व‌द्धि होती है।(11 )

ग्रह नक्षत्रजाः पीडास्तस्कराग्निसमुभ्दवाः । 
ता: सर्वाःप्रशमं यान्ति व्यासो ब्रुतेन संशयः ।। १२ ।। 

किसी भी ग्रह नक्षत्र ,चोर तथा अग्नि से जनित पीड़ाएँ शांत हो जाती है ,यह स्वयं व्यास जी कहते हैं इसलिए इसमें कोई संशय नहीं करना चाहिए।

 ।। इति श्रीव्यास विरचितम् आदित्यादी नवग्रह स्तोत्रं संपूर्णं ।।

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Navgrah Stotra Path Ke Labh- नवग्रह स्तोत्र पाठ के लाभ

नवग्रह स्तोत्र अत्यंत शक्तिशाली स्तोत्र है। इसकी रचना वेद व्यास जी के द्वारा की गई थी। इस स्तोत्र का नित्य श्रद्धापूर्वक पाठ करने से मनुष्य को ग्रह जनित पीड़ाएं नहीं होती हैं। यदि आपके जीवन में ग्रह जनित परेशानियां हैं तो इस स्तोत्र का नित्य पाठ करें।

Category: Astrology Hindi, Stotra/ Stuti

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