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nirvana shatkam

निर्वाण षट्कम हिंदी अर्थ सहित-Nirvana Shatkam Hindi Arth

Posted on September 22, 2022February 21, 2024 by santwana

Nirvana Shatkam

निर्वाण = नीरवता soundlessness ,निराकार formless षट्=छः

निर्वाण का अर्थ है मोक्ष या मुक्ति। माया के कारण व्यक्ति स्वयं को यह स्थूल शरीर समझने लगता है। शारीरिक अभिव्यक्ति में न केवल यह शरीर आता है अपितु विचार और भावनाएं भी आती हैं।

योग का उद्देश्य (जिसे कि हम निर्वाण या मुक्ति के नाम से भी जानते हैं) स्वयं को इस मिथ्या शरीर से अलग करके अपने असली स्वरूप को पहचानना है। हमारा असली स्वरूप निराकार और बंधनों से रहित है। इस स्वरूप को जानने के अनेक मार्ग है। जैसे राज योग, कर्म योग, भक्ति योग और ज्ञान योग।

निर्वाण षट्कम हमें “मैं कौन हूँ?” इस बात को आदि शंकराचार्य द्वारा बताया गया है। इसे आत्मषट्कम् के नाम से भी जाना जाता है।

विषय-सूचि
  1. Nirvana Shatkam Hindi Arth-निर्वाण षट्कम हिंदी अर्थ
  2. Nirvana Shatkam Ki Rachna Kaise Hui-कैसे हुई निर्वाण षट्कम की रचना
  3. Benifits of Nirvana Shatkam-निर्वाण षट्कम को पढ़ने के फायदे
  4. FAQ
    • पञ्च वायु क्या होती है ?

Nirvana Shatkam Hindi Arth-निर्वाण षट्कम हिंदी अर्थ

मनोबुद्ध्यहंकार चित्तानि नाहं 
न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रे ।
न च व्योम भूमिर्न तेजो न वायुः 
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 1 ।।

मैं न तो मन बुद्धि चित्त अहंकार हूं। मैं न तो मैं कान,जिह्वा नाक,आँख हूं। मैं न तो आकाश, भूमि, अग्नि, वायु हूं। मैं केवल शुद्ध चेतना हूं मैं ही शिव हूं। 

चेतना शक्ति को मन, बुद्धि, चित्त ,अहंकार भागों में बांटा गया है। इन चारों को अंतःकरण चतुष्टय कहते है। मन का कार्य इच्छा और कल्पना करना है। बुद्धि व्यक्ति को निर्णय लेने में सहायक होती है।

चित्त में व्यक्ति के इस जन्म और पूर्व जन्म के संस्कार होते हैं। अपने संबंध में स्थिर की गयी भावना को अहंकार कहते हैं। श्रोत्र, त्वचा, नेत्र, जिह्वा और घ्राण यह पांच ज्ञानेन्द्रियाँ  हैं। वाक्, पाणि, पाद, पायु तथा उपस्थ पांच कर्मेन्द्रियाँ  हैं।

न च प्राणसंज्ञो न वै पंचवायुः, 
न वा सप्तधातुः न वा पञ्चकोशः । 
न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायु, 
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 2 ।।

मैं न तो प्राण हूँ ना ही न ही पांच प्राण हूँ। न ही शरीर के सप्त धातु हूँ न ही मैं  पंच  कोष हूँ। न ही मैं वाणी ,पाणि (हाथ), पाद (पैर),उपस्थ(जननेन्द्रिय), पायु(मलद्वार) हूँ। 

प्राण, अपान, उदान, व्यान और समान यह पंच वायु हैं। रस – प्लाज्मा, रक्त – खून (ब्लड), मांस – मांसपेशियां, मेद – वसा ,अस्थि – हड्डियाँ, मज्जा – बोनमैरो, शुक्र – प्रजनन संबंधी ऊतक यह सप्त धातु हैं।

अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनन्दमय यह पंचकोश हैं। वाणी ,पाणि (हाथ), पाद (पैर),उपस्थ(जननेन्द्रिय), पायु(मलद्वार) यह पांच कर्मेन्द्रियां हैं। 

मैं केवल शुद्ध चेतना हूं मैं ही शिव हूं। 

न मे द्वेषरागौ न मे लोभमोहौ, 
न मे वै मदो नैव  मात्सर्यभावः । 
न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्षः, 
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 3 ।।

 मैं न तो द्वेष हूँ न राग हूँ न ही लोभ और मोह हूँ। न मद हूँ न ही अहंकार हूँ। मैं न ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष हूँ। मैं केवल शुद्ध चेतना हूं मैं ही शिव हूं। 

काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर – ये ष़ड्रिपु माने गये हैं।काम का अर्थ बहुत अधिक इच्छाओं का होना। क्रोध का अर्थ गुस्सा ,लोभ का अर्थ लालच ,मोह का लगाव ,मद का अर्थ अभिमान ,मात्सर्य का अर्थ ईर्ष्या, घृणा, जलन, दूसरों की समृद्धि और प्रगति सहन न होना।

मनुष्य के लिये वेदों में चार पुरुषार्थों का नाम लिया गया है – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। इसलिए इन्हें ‘पुरुषार्थचतुष्टय’ भी कहते हैं।

न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं, 
न मन्त्रो न तीर्थं न वेदा न यज्ञाः । 
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता, 
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 4 ।।

मैं न तो पुण्य हूँ न पाप सुख हूँ न ही दुःख।न ही मंत्र, तीर्थ, वेद और यज्ञ ही हूँ। मैं न भोगने वाला हूं, न भोगने योग्य वस्तु हूं, न भोक्ता हूं। मैं केवल शुद्ध चेतना हूं मैं ही शिव हूं। 

न मे मृत्युशंका न मे जातिभेदः, 
पिता नैव मे नैव माता न जन्मः । 
न बन्धुर्न मित्रं गुरूर्नैव शिष्यः, 
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 5 ।।

मैं न तो मृत्यु से और न ही उसके भय से बंधा हूँ न ही जाति और उसके भेदों से बंधा हूँ। न तो मेरे पिता हैं न ही माता और न ही मैंने जन्म लिया है। न ही मेरा कोई संबंधी है न ही मित्र न ही गुरू है न ही शिष्य। मैं केवल शुद्ध चेतना हूं मैं ही शिव हूं। 

अहं निर्विकल्पो निराकार रूपो, 
विभुत्वाच सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम् । 
न चासङ्गतं नैव मुक्तिर्न मेयः, 
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। 6 ।।

मुझे कोई संदेह नहीं है मैं निराकार हूँ। मैं हर जगह उपस्थित हूँ और सब इंद्रियों से परे हूँ। मैं न तो किसी चीज से जुड़ता हूँ न मुक्त होता हूँ। मैं केवल शुद्ध चेतना हूं मैं ही शिव हूं। 

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Nirvana Shatkam Ki Rachna Kaise Hui-कैसे हुई निर्वाण षट्कम की रचना

निर्वाण शट्कम् की रचना के विषय में ऐसा कहा जाता है कि एक बार आदि शंकराचार्य गुरू की खोज में नर्मदा नदी के किनारे पर भटक रहे थे। तभी उन्हें सन्यासी स्वामी गोविंद भागवतपद दिखे। तो शंकराचार्य जी ने उनसे उन्हें अपना शिष्य बनाने को कहा। इस पर उस सन्यासी ने उनसे पूछा तुम कौन हो?

तब उन्होंने निर्वाण षटकम् के 6 श्लोक सुना कर अपना उत्तर दिया। उनके उत्तर को सुनकर स्वामी गोविंद भागवतपद बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने शंकराचार्य को अपने शिष्य के रूप में स्वीकार कर लिया। 

निर्वाण शट्कम् में कुल छः श्लोक हैं। इनका शाब्दिक अर्थ जितना सुंदर और गूढ़ है उससे ज्यादा यह अनुभव करने वाला है। इसके वास्तविक अर्थ को समझने के लिए व्यक्ति को ध्यान करना आवश्यक है। 

Nirvana Shatkam Lyrics-निर्वाण षट्कम
Nirvana Shatkam-निर्वाण षट्कम

निर्वाण शट्कम् के पाँच श्लोक की प्रथम तीन पंक्तियों में आदि शंकराचार्य बताते कि मैं(आत्मा) क्या नहीं है और अंतिम पंक्ति में आत्मा के स्वरूप को बताया है। छठे श्लोक में आत्मा के स्वरूप को बताया है। 

Benifits of Nirvana Shatkam-निर्वाण षट्कम को पढ़ने के फायदे

  • यदि हम निर्वाण षट्कम को रोज पढ़े तो हमें इस बात का बोध होने लगेगा की हमारा वास्तविक स्वरुप क्या है।
  • निर्वाण षट्कम को सुनकर ध्यान लगया जा सकता है।

FAQ

पञ्च वायु क्या होती है ?

प्राण शरीर की जीवनी शक्ति है जिसके द्वारा हम अपने शरीर के विभिन्न प्रकार के कार्य कर पाते हैं।
हमारे शरीर में पांच प्रकार की वायु होती है – प्राण वायु, अपान वायु, व्यान वायु, सामान वायु, उदान वायु।
प्राण वायु वह वायु जिससे हम श्वशन करते हैं। यह हमारे विचारों को नियंत्रित करती है। यह अन्य वायु का नियंत्रण करती है।
समान वायु पाचन क्रिया में सहायक होती है और शरीर का ताप नियंत्रण करती है। इसका स्थान हृदय से नाभि तक होता है।
अपान वायु उत्सर्जन में सहायक होती है।इसका स्थान नाभि से लेकर पाद(मल त्याग का स्थान) तक होता है। इसी के द्वारा हमारे शरीर में मल-मूत्र का उत्सर्जन और प्रजनन होता है। यह अधोगामी अर्थात नीचे की ओर गमन करती है।
व्यान वायु हमारे परिसंचरण तंत्र(रक्त का प्रवाह) को चलाती है। यह शरीर के सभी अंगों के बीच समन्वय स्थापित करने का कार्य करती है। यह सम्पूर्ण शरीर में प्रवाहित होती है।
उदान वायु का स्थान कंठ से मस्तिष्क तक होता है। इसके द्वारा ही व्यक्ति सूक्ष्म शरीर में गमन करता है। यह मस्तिष्क को सन्देश पहुंचाने का कार्य करता है। इसकी गति ऊपर की ओर होती है।
योग के द्वारा इन पञ्च वायु का नियंत्रण किया जाता है।

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Category: Sprituality Hindi

8 thoughts on “निर्वाण षट्कम हिंदी अर्थ सहित-Nirvana Shatkam Hindi Arth”

  1. स्वामीनाथ दुबे says:
    March 29, 2023 at 10:24 pm

    पहली बार जब एक सज्जन ने बताया और मैंने पढ़ा तो लगा कि कोई अदृश्य शक्ति आत्मा के रूप मे मेरे भीतर है, मुझे पढ़कर हल्का मन लगा. फिर भी किसी ज्ञानी से व्याख्या सुनने चाहिए. 🙏

    Reply
    1. santwana says:
      March 30, 2023 at 11:58 am

      स्वामीनाथ जी धन्यवाद्। आप जितना साधना और ध्यान में जायेंगे उतना अधिक आप निर्वाण षट्कम के अर्थ का बोध कर पाएंगे।

      Reply
    2. Vimal Yadav says:
      April 27, 2023 at 11:08 am

      Iske baare me aur aache se janne ke liye rajyoga meditation karein .

      Reply
    3. मदन मोहन बरनवाल says:
      December 18, 2023 at 8:09 am

      सब कुछ अचानक होता है स्वत घट जाता है। व्यक्ति सिर्फ लौकिक संसार का अनुभव करता है अलौकिक संसार भी है ऐसा समझना चाहिए। अलौकिक संसार का हिस्सा देवी देवता हैं ब्रह्मा विष्णु महेश हैं माता पार्वती माता लक्ष्मी माता सरस्वती माता दुर्गा माता काली बजरंग बली गणेश जी इत्यादि हैं। जबतक संसार को प्राथमिकता देंगे हम बाहर हीं व्यस्त रहेंगे स्वयं के अंदर झांकने के लिए संसार से छुट्टी लेनी होगी।मौन साधना कीजिए ध्यान कीजिए अपने मन अहंकार का साक्षी बनें। धिरे धिरे स्वयं को जानने की आपकी रूचि बढ़ती जाएगी।

      Reply
  2. Deepak Singh says:
    April 11, 2023 at 6:33 am

    निर्वाण षटकम् सुनने मात्र से बहुत ही आनंद की प्राप्ति होती है

    Reply
    1. santwana says:
      April 12, 2023 at 4:43 am

      जी बिलकुल। आप आदि शंकराचार्य द्वारा रचित भज गोविन्दम को सुनें। वह रचना भी बहुत अच्छी है –
      https://astroradiance.com/bhaja-govindam/

      Reply
  3. Dr S.K. Mishra says:
    November 15, 2023 at 6:52 pm

    निवंशतकम अनुभूति का विषय है । ध्यान करते हुए पाठ करने में अलौकिक आनंद आता है । आज के सभी तनावों की यह अचूक दवा है ।

    Reply
  4. उल्हास हेजीब says:
    December 8, 2023 at 1:50 am

    बहुत बढीया

    Reply

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