आरती को “आरात्रिका” अथवा “आरार्तिक” और “नीराजन” भी कहते हैं। पूजा के अंत में आरती की जाती है। पूजन में जो त्रुटि रह जाती है ,आरती द्वारा उसकी पूर्ति होती है। स्कंद पुराण में कहा गया है –
“मन्त्रहीनं क्रियाहीनं यत् कृतं पूजनं हरे:।
सर्वं सम्पूर्णतामेति कृते नीराजने शिवे।।”
पूजन मंत्रहीन और क्रियाहीन होने पर भी नीराजन (आरती) कर लेने से उसमें सारी पूर्णता आ जाती है।