Panchkosh
पंचकोश(panchkosh) क्या है? आधुनिक विज्ञान ने अपने वैज्ञानिक संसाधनों से स्थूल शरीर की बनावट का तो विस्तार से अध्ययन किया है परंतु यह अध्ययन कितना भी गहन क्यों न हो पर संपूर्ण नहीं है क्योंकि यह भौतिक शरीर के अध्ययन तक ही सीमित है।
परंतु मानव केवल भौतिक शरीर नहीं है अपितु स्थूल शरीर समग्र शरीर का छोटा सा अंश है। मानव व्यक्तित्व के दो घटक है- पदार्थ और चेतना।
पदार्थ से जहां भौतिक शरीर निर्मित है वही चेतना व्यक्तित्व को जीवन प्रदान करती हैं ।
पदार्थ स्थूल शरीर का निर्माण करता है वही चेतना स्थूल शरीर सहित सूक्ष्म और कारण शरीर को प्रक्षेपित करते हुए उन्हें जीवंत बनाए रखती है। पदार्थ भी चेतना के अभाव में भौतिक शरीर निर्जीव हो जाता है।
स्वयं अभिव्यक्त करने के लिए चेतना को भौतिक अथवा स्थूल शरीर के रूप में माध्यम की आवश्यकता होती है।दोनों एक दूसरे के लिए आवश्यक है अतः केवल भौतिक शरीर के अध्ययन से मानव शरीर की संरचना का अध्ययन नहीं होता।
अनेक विद्वान् और ज्ञानीजन शरीर को ईश्वर प्राप्ति के लिए एक साधन (उपकरण) मात्र मानते हैं ।वास्तव में आत्मा अजर है अमर है। वह केवल वस्त्र की भाँति शरीर को धारण करती है और जीर्ण हो जाने पर पुराने शरीर का त्याग कर नया शरीर धारण करती है।
योग दृष्टि से शरीर तीन प्रकार के हैं
- भौतिक या स्थूल शरीर
- सूक्ष्म शरीर और
- कारण शरीर
Sthul Sharir-स्थूल शरीर
इस भौतिक, नश्वर पंचभूतों से निर्मित शरीर को “स्थूल शरीर” कहते है। यह रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र से बना होता है और स्थूल शरीर के द्वारा ही हम विभिन्न प्रकार के अनुभव करते हैं।
जाग्रत अवस्था में स्थूल शरीर का अनुभव होता है। विवेक चूड़ामणि के अनुसार –
मज्जास्थिमेदाःपलरक्तचर्म त्वगाह्वयैर्धातुभिरेभिरन्वितम् ।
पादोरुवक्षोभुजपृष्ठमस्तकै रङ्गैरूपाङ्गैरूपयुक्तमेतत् ।
अहंममेति प्रथितं शरीरं महास्पदं स्थूलमितीर्यते बुधैः।
मज्जा, अस्थि, मेद, मांस, रक्त, चर्म और त्वचा- इन सात धातुओं से बने हुए तथा चरण, जंघा, वक्षस्थल भुजा, पीठ और मस्तक आदि अंगोंपांगो से युक्त “मैं और मेरा” रूप से प्रसिद्ध इस मोह के आश्रय रूप देह को विद्वान् लोग स्थूल शरीर कहते हैं।
आकाश,वायु, जल, तेज और पृथ्वी- ये सूक्ष्म भूत हैं। इनके अंश परस्पर मिलने से स्थूल होकर स्थूल शरीर के हेतु होते हैं और इन्हीं की तन्मात्राएँ भोक्ता जीव के भोगरूप सुख के लिए शब्दादि पांच विषय हो जाते हैं।
विवेक चूड़ामणि में आदि शंकरचार्य ने स्थूल शरीर को निंदनीय बताया है। पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार पंच भूतों से निर्मित यह स्थूल शरीर आत्मा का भोगायतन है। इसकी अवस्था जाग्रत है जिसमें स्थूल पदार्थों का अनुभव होता है।
स्थूल शरीर के माध्यम से ही जीव को सम्पूर्ण बाह्य जगत प्रतीत होता है।
Sukshm Sharir-सूक्ष्म शरीर
सूक्ष्म शरीर वह है जो इस भौतिक या स्थूल शरीर को चलाने वाला होता है। पांच ज्ञानेन्द्रियाँ, पांच कर्मेन्द्रियाँ, अंतःकरण चतुष्ट्य और उनकी पञ्च तन्मात्रा शब्द, स्पर्श, रूप, रास, गंध ये सूक्ष्म शरीर का निर्माण होता है। इसकी अस्वस्था स्वपनावस्था होती है।
विवेक चूड़ामणि के अनुसार –
वागादिपञ्च श्रवणादिपञ्च प्राणादिपञ्चाभ्रमुखानि पञ्च।
बुद्ध्याद्याविद्यापि च कामकर्मणि पुर्यष्टकम सूक्ष्मशरीरमाहुः।
वागादि पांच कर्मेन्द्रियाँ, श्रवणादि पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, प्राणादि पाँच प्राण, आकाशादि पाँच भूत, बुद्धि आदि अंतःकरण चतुष्टय, अविद्या तथा काम और कर्म यह पुर्यष्टक अथवा सूक्ष्म शरीर कहलाता है।
यह सूक्ष्म शरीर अपंचीकृत भूतों से उत्पन्न हुआ है। यह वासनायुक्त होकर कर्म फलों का अनुभव कराने वाला है।
श्रवण, त्वचा, नेत्र, घ्राण और जिह्वा ये पांच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं, क्योंकि इनसे विषय का ज्ञान होता है। तथा वाक्, पाणि, पाद, गुदा और उपस्थि ये पांच कर्मेन्द्रियाँ हैं।
अपनी वृत्तियों के कारण अंतःकरण मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार इन चार नाम से जाना जाता है। संकल्प विकल्प के कारण मन, पदार्थ का निश्चय करने के कारण बुद्धि, मैं-मैं ऐसा अभिमान करने के कारण अहंकार और अपना इष्ट-चिंतन के कारण यह चित्त कहलाता है।
जल और स्वर्ण के समान अपने विकारों के कारण स्वयं प्राण ही प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान ये पांच प्राण होते हैं।
स्वप्न इसकी अभिव्यक्ति की अवस्था है। लिंग अर्थात सूक्ष्म शरीर ही सम्पूर्ण कर्मों का कारण है। सम्पूर्ण कर्मों को सूक्ष्म शरीर ही करता है और उनके फलों को भोगता है।
Karan Sharir-कारण शरीर
तीन गुणों(सत, रज, तम) के संघात को स्वभाव जनित कारण शरीर कहते हैं। इसकी अवस्था सुषुप्ति होती है।
विवेक चूड़ामणि के अनुसार –
अव्यक्तमेतत्त्रिगुणैर्निरुक्तं तत्कारणं नाम शरीरमात्मनः।
सुषुप्तिरेतस्य विभक्तयवस्था प्रलीनसर्वेन्द्रियबुद्धिवृत्तिः।
इस प्रकार से तीन गुणों के निरूपण से यह अव्यक्त का वर्णन हुआ। यही आत्मा का कारण शरीर है। इसकी अभिव्यक्ति की अवस्था सुषुप्ति है, जिसमें बुद्धि की सम्पूर्ण वृत्तियाँ लीन हो जाती हैं।
जहाँ सब प्रकार की प्रमा शांत हो जाती है और बुद्धि बीजरूप से स्थिर रहती है, वह सुषुप्ति अवस्था है इसकी प्रतीति “मैं कुछ नहीं जानता ” ऐसी लोक प्रसिद्ध उक्ति से होती है।
शरीर पुनः पंचकोश(panchkosh) में विभाजित है।
Panchkosh Ka Vargikaran-पंचकोश का वर्गीकरण
तीनों शरीर को पुनः 5 कोशों पंचकोश(panchkosh) में विभक्त किया गया है।
- अन्नमय कोश
- प्राणमय कोश
- मनोमय कोश
- विज्ञानमय कोश
- आनन्दमय कोश
Annmay Kosh-अन्नमय कोश
यह स्थूल शरीर को निर्मित करता है। यह स्वयं पंच स्थूल तत्वों से निर्मित है जो विभिन्न अनुपात में मिलकर भौतिक शरीर में अस्थि, रक्त, मांस और अन्य अवयवों का निर्माण करता है क्योंकि इसको अन्न से पोषण प्राप्त होता है इसलिए इसे अन्नमय कोश कहा जाता है।
शरीर का जो भाग इन्द्रियों से ज्ञात होता है वह सब अन्नमय कोश का ही भाग है। विवेक चूड़ामणि के अनुसार –
देहोऽयमन्नभवनोऽन्नमयस्तु कोशश्चान्नेन जीवति विनश्यति तद्विहीनः।
त्वक्चर्ममांसरुधिरास्थिपुरीषराशिर्नायं स्वयं भवितुमर्हति नित्यशुद्धः।
अन्न से उत्पन्न हुआ यह दे यह अन्नमय कोष है जो अन्न से ही जीता है और उसके बिना नष्ट हो जाता है यह त्वचा चर्म, मांस, रुधिर, अस्थि और मल आदि का समूह स्वयं नित्य शुद्ध आत्मा नहीं हो सकता।
Pranmay Kosh-प्राणमय कोश
यह सूक्ष्म शरीर को निर्मित करने वाला प्रमुख कोष है
यह सूक्ष्म शरीर को निर्मित करने वाला मुख्य कोश है। यह स्वयं पांच मुख्य प्राण और चार उपप्राणों से निर्मित है। स्थूल शरीर को क्रियाशील और जीवंत रखने वाला यही है। स्थूल शरीर की तरह ही सूक्ष्म शरीर में सूक्ष्म नाड़ियों का जाल बिछा होता है जिसमे प्राणों का प्रवाह होता है।
प्राणमय कोश सांस के माध्यम से स्थूल शरीर से जुड़ा होता है। इसलिए विशेष प्रकार के सांस का नियमन करने से प्राणों को नियंत्रित किया जाता है।
कर्मेन्द्रियैः कर्मेन्द्रियैः पंचभिरञ्चतोऽयं प्राणो भवेत्प्राणमयस्तु कोशः।
येनात्मवानन्नमयोऽन्नपूर्णः प्रवर्ततेऽसौ सकलक्रियासु।
पांच कर्मेंद्रियों से युक्त यह प्राण ही प्राणमय कोश कहलाता है जिस से युक्त यह अन्नमय कोश अन्न से तृप्त होकर समस्त कर्म में प्रवृत्त होता है।
Manomay Kosh-मनोमय कोश
प्राणमय कोश को नियंत्रित करने का काम मनोमय कोश करता है।मन के द्वारा प्राणों को नियंत्रित किया जाता है यह प्राणमय कोश से भी सूक्ष्म है। सूक्ष्म इंद्रियां जो सूक्ष्म तत्वों से निर्मित है वे भी इसी कोश के नियंत्रण में होती हैं।
मनस या चेतन मन और अवचेतन मन इसके अंतर्गत आते हैं। इसमें वासनाये(सूक्ष्म कामना) संग्रहित रहती है।
ज्ञानेन्द्रियाणि च मनश्च मनोमयः स्यात् कोशो ममाहमिति वस्तुविकल्पहेतुः।
संज्ञादिभेदकलनाकलितो बलीयांस्तत्पूर्वकोशमभिपूर्य विजृम्भते यः।
ज्ञानेंद्रियां और मन ही “मैं मेरा” आदि विकल्पों का हेतु मनोमय कोश है जो नाम आदि भेद कलनाओं(ग्रहण करना या ज्ञान) से जाना जाता है और बड़ा बलवान है तथा पूर्व कोशों को व्याप्त करके स्थित है।
Vigyanmay Kosh-विज्ञानमय कोश
यह भी सूक्ष्म शरीर का ही एक अंश है। प्राणमय, मनोमय और विज्ञानमय कोश मिलकर सूक्ष्म शरीर बनाते हैं। यह मनोमय कोश को नियंत्रित करता है और मन से भी सूक्ष्म बुद्धि और अहं का केन्द्र है। स्थूल शरीर को सूक्ष्म शरीर ही प्रक्षेपित करता है।
बुद्धिर्बुद्धीन्द्रियै सार्धं सवृत्तिः कर्तृलक्षणः।
विज्ञानमयकोशः स्यात्पुंसः संसारकारणम।
ज्ञानेन्द्रियों के साथ वृत्तियुक्त बुद्धि ही कर्तापन के स्वाभाव वाला विज्ञानमय कोश है जो पुरुष के जन्म मरण का कारण है।
चित और इंद्रियादि का अनुगमन करने वाली चेतन की प्रतिबिम्ब शक्ति ही ‘विज्ञान’ नामक प्रकृति का विकार है । वह मैं ज्ञान और क्रियावान हूं ऐसा देह इन्द्रिय आदि में निरंतर अभिमान किया जाता है।
Anandmay Kosh-आनंदमय कोश
आनंदमय कोश और कारण शरीर दोनों एक ही हैं। यह व्यक्तित्व का गहनतम केंद्र है। आत्मा का प्रतिबिंब इसी में एक भ्रामक केंद्र बनाकर स्वयं को एक सीमित व्यक्तित्व के रूप में अनुभव करता है।
इस अनुभव का कारण चित्त में विद्यमान अविद्या का एक आवरण है। यह सूक्ष्म और स्थूल शरीर को प्रक्षेपित करता है। विवेक चूड़ामणि के अनुसार –
आनन्दप्रतिबिम्बचुम्बिततनुर्वृत्तिस्तमोजृम्भिता
स्यादानन्दमयः प्रियादिगुणकः सर्वेष्टार्थलाभोदयः।
पुण्यस्यानुभवे विभाति क तिनामानन्दरूपः स्वयं
भूत्वा नन्दति यत्र साधु तनुभृन्मात्रः प्रयत्नं विना।
आनंदस्वरूप आत्मा के प्रतिबिम्ब से चुम्बित तथा तमोगुण से प्रकट हुई वृत्ति आनंदमय कोश है। वह प्रिय आदि (प्रिय, मोद और प्रमोद) गुणों से युक्त है और अपने अभीष्ट पदार्थ के प्राप्त होने पर प्रकट होती है।
पुण्य कर्म के परिपक्व होने पर उसके फलस्वरूप सुख का अनुभव करते समय भाग्यवान पुरुषों को उस आनंदमय कोशका स्वयं ही भान होता है जिससे संपूर्ण देहधारी जीव बिना प्रयत्न के ही अति आनंदित होते हैं।
Reference Books
Vivek – Chudamani- By shreemad Aadi Shankaracharya–विवेक चूड़ामणि