Rahu Stotram-यह स्तोत्र राहु ग्रह का गुणगान करता है और उनकी शक्तियों की स्तुति करता है। इसे जो भी व्यक्ति नियमित रूप से पढ़ता है, उसे राहु के अनेक प्रकार के अशुभ प्रभावों से मुक्ति मिल सकती है।
ज्योतिष शास्त्र में राहु केतु को छाया ग्रह कहा जाता है। राहु(Rahu)और केतु सूर्य और चन्द्रमा के परिक्रमा मार्ग के कटान से उत्पन्न हुए है। क्योंकि यह वास्तविक ग्रह नहीं हैं इसलिए इन्हें छाया ग्रह(मायावी )भी कहा जाता है। इन्हें पापी ग्रहों की श्रेणी में रखा जाता है।राहु छाया ग्रह है इसलिए यह व्यक्ति के मन में भ्रम की स्थिति पैदा करता करता है। यह व्यक्ति को वास्तिविकता से दूर ले जाता है।यदि व्यक्ति राहु के बुरे प्रभाव में हो तो व्यक्ति का जीवन नरक के सामान हो जाता है। राहु ग्रह के बुरे परिणाम को दूर करने के लिए राहु स्तोत्र का पाठ बहुत लाभदायक है।
इस लेख के माध्यम से हम राहु स्तोत्र का पाठ अर्थ सहित आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहे हैं। इसका लाभ उठाएं।
Rahu Stotram-राहु स्तोत्र
राहुर्दानव मन्त्री च सिंहिकाचित्तनन्दनः ।
अर्धकायः सदाक्रोधी चन्द्रादित्यविमर्दनः ॥ १ ॥
रौद्रो रुद्रप्रियो दैत्यः स्वर्भानुर्भानुमीतिदः ।
ग्रहराजः सुधापायी राकातिथ्यभिलाषुकः ॥ २ ॥
कालदृष्टिः कालरुपः श्रीकष्ठह्रदयाश्रयः ।
विधुंतुदः सैंहिकेयो घोररुपो महाबलः ॥ ३ ॥
ग्रहपीडाकरो द्रंष्टी रक्तनेत्रो महोदरः ।
पञ्चविंशति नामानि स्मृत्वा राहुं सदा नरः ॥ ४ ॥
यः पठेन्महती पीडा तस्य नश्यति केवलम् ।
विरोग्यं पुत्रमतुलां श्रियं धान्यं पशूंस्तथा ॥ ५ ॥
ददाति राहुस्तस्मै यः पठते स्तोत्रमुत्तमम् ।
सततं पठते यस्तु जीवेद्वर्षशतं नरः ॥ ६ ॥
॥ इति श्रीस्कन्दपुराणे राहुस्तोत्रं संपूर्णम् ॥