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Shri Ram Raksha Stotra Cover

Shri Ram Raksha Stotra With Hindi Meaning-श्री राम रक्षा स्तोत्र हिन्दी अर्थ

Posted on March 24, 2023February 27, 2024 by santwana

Ram Raksha Stotra-श्री राम रक्षा स्तोत्रम्

श्री राम रक्षा स्तोत्र संस्कृत में महर्षि कौशिक जिन्हे विश्वामित्र के नाम से भी जाना जाता है के द्वारा प्रभु श्री राम की प्रशंशा में लिखा गया स्तोत्र है। यह श्री राम के रक्षा प्राप्त करने हेतु पढ़ा जाता है। यदि किसी शत्रु परेशान कर रहें हो या ग्रह जनित बाधा हो तो भी इसका(Ram Raksha Stotra) पाठ लाभप्रद होता है।

विषय-सूचि
  1. Ram Raksha Stotra Hindi Meaning-श्री राम रक्षा स्तोत्रम् हिन्दी अर्थ
  2. Shri Ram Raksha Stotra Path Vidhi-श्री राम रक्षा स्तोत्र पाठ विधि
  3. Shri Ram Raksha Stotra Path Ke Labh-श्री राम रक्षा स्तोत्र के पाठ के लाभ
  4. Shri Ram Raksha Stotra Lyrics-श्री राम रक्षा स्तोत्र

Ram Raksha Stotra Hindi Meaning-श्री राम रक्षा स्तोत्रम् हिन्दी अर्थ

विनियोग

अस्य श्रीरामरक्षास्त्रोतमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः ।

श्री सीतारामचंद्रो देवता ।अनुष्टुप छंदः। सीता शक्तिः ।

श्रीमद् हनुमान कीलकम् ।श्री सीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्त्रोतजपे विनियोगः ।

इस राम रक्षा स्तोत्र – मन्त्र के बुधकौशिक ऋषि हैं, सीता और रामचन्द्र देवता हैं, अनुष्टुप छन्द है, सीता शक्ति हैं, श्रीमान हनुमान जी कीलक हैं तथा श्रीरामचन्द्र जी की प्रसन्नता के लिये राम रक्षा स्तोत्र के जप में विनियोग किया जाता है।

ध्यान

ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपदमासनस्थं,

पीतं वासो वसानं नवकमल दल स्पर्धिनेत्रम् प्रसन्नम् ।

वामांकारूढ़ सीता मुखकमलमिलल्लोचनम्

नीरदाभम् नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलम् रामचंद्रम ॥

जो धनुष-बाण धारण किये हुए हैं, बद्ध पद्मासन से विराजमान हैं, पीताम्बर पहने हुए हैं, जिनके प्रसन्न नयन नूतन कमलदल से ज्यादा सुन्दर हैं तथा वामभाग में विराजमान श्री सीता जी के मुखकमल से मिले हुए हैं, मेघश्याम(काले बादल के समान ) वर्ण वाले , नाना प्रकार के अलंकारों से विभूषित तथा विशाल जटाजूटधारी, उन आजानुबाहु श्रीरामचन्द्र जी का ध्यान करे।

स्तोत्र

चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम् ।

एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥1॥

श्री रघुनाथ जी का चरित्र सौ करोड़ विस्तार वाला है और उसका एक-एक अक्षर भी मनुष्यों के महान पापों को नष्ट करने वाला है । 

ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् ।

जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितं ॥2॥

नीलकमल के सामान श्यामवर्ण प्रभु श्री राम ,जिनके कमल के समान सुन्दर नेत्र हैं, जो जानकी और लक्ष्मण जी के साथ हैं और जिनके जटाओं का मुकुट सुशोभित है का ध्यान करें। 

सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम् ।

स्वलीलया जगत्त्रातुं आविर्भूतं अजं विभुम् ॥3॥

जो राक्षसों के संहार करते हैं, जिनके हाथ में खड्ग (तलवार), तरकश, धनुष और बाण लिए हैं तथा जो संसार की रक्षा के लिये अपनी ही लीला से अवतीर्ण हुए हैं उन श्री राम का ध्यान करें। 

रामरक्षां पठेत प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।

शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः ॥4॥

सभी ज्ञानी जनों को रामरक्षास्तोत्र जो कि सभी पापों और इच्छाओं का अंत करने वाला है का पाठ करना चाहिए। मेरे सिर की राघव और ललाट की दशरथात्मज (राजा दशरथ के पुत्र अर्थात श्रीराम )रक्षा करें। 

कौसल्येयो दृशो पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुति ।

घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः ॥5॥

कौसल्या के पुत्र मेरे नेत्रों की रक्षा करें, विश्वामित्र के प्रिय मेरे कानों की रक्षा करें तथा यज्ञ रक्षक मेरे घ्राण की और सौमित्रि(लक्ष्मण ) वत्सल(के प्रिय) मेरे मुख की रक्षा करें ॥5॥

जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवन्दितः ।

स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः ॥6॥

विद्यानिधि (ज्ञान के भण्डार) मेरी जिह्वा की की रक्षा करें , भरत द्वारा वंदनीय मेरे कण्ठ की रक्षा करें, दिव्या अस्त्रों से युक्त मेरे दोनों कंधो की रक्षा करें तथा महादेव जी का धनुष तोड़ने वाले मेरी भुजाओं की रक्षा करें। 

करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित् ।

मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः ॥7॥

सीता जी के पति मेरे हाथों की, हृदय की परशुराम जी को जीतने वाले (जामदग्न्यजित् अर्थात जमदग्नी ऋषि के पुत्र को जीतने वाले ), मध्य भाग की खर नामक राक्षस का नाश करने वाले और नाभि की जाम्बवान को आश्रयदेने वाले रक्षा करें। 

सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः ।

ऊरू रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृत् ॥8॥

सुग्रीव के स्वामी मेरी कमर की रक्षा करें , हनुमान जी के स्वामी मेरे नितम्बों की और राक्षस कुल के विनाशक और रघुश्रेष्ठ(रघुकुल में श्रेष्ठ) मेरी ऊरू(जंघा) की रक्षा करें। 

जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे दशमुखान्तकः ।

पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामोऽखिलं वपुः ॥9॥

जिन्होंने सेतु का निर्माण किया वो मेरे घुटनो की रक्षा करें, जंघाओं की दस सर वाले अर्थात रावण को मारने वाले रक्षा करें , विभीषणश्रीद ( विभीषण को ऐश्वर्य प्रदान करने) वाले मेरे  चरणों की रक्षा करें और सम्पूर्ण शरीर की श्रीराम रक्षा करें। 

एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत् ।

स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥10॥

जो पुण्यवान पुरुष इस स्तोत्र का पाठ करता है उसे श्री राम का बल प्राप्त होता है, वह दीर्घायु होता है, सुखी, पुत्रवान, विजयी और विनय(शिष्टाचारी) हो जाता है। 

पातालभूतलव्योमचारिणश्छद्मचारिणः ।

न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः ॥11॥

जो जीव पाताल में रहते हैं, पृथ्वी में अथवा आकाश में विचरते हैं और जो छद्मवेश से घूमते रहते हैं, वे रामनामों से सुरक्षित पुरुष की ओर दृष्टि भी नहीं डाल सकते हैं। 

रामेति रामभद्रेति रामचन्द्रेति वा स्मरन् ।

नरो न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥12॥

‘राम’, ‘रामभद्र’, ‘रामचन्द्र’ – इन नामों का स्मरण करने से मनुष्य पापों से लिप्त नहीं होता तथा भोग(सांसारिक सुखों) और मोक्ष प्राप्त कर लेता है। 

जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् ।

यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ॥13॥

जो पुरुष इस राम नाम रूपी मन्त्र को निरंतर अपने कण्ठ में धारण कर लेता है जिसने इस समस्त संसार को विजय किया है उसके पास सारी सिद्धियां आ जाती हैं।  

वज्रपञ्जरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् ।

अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमङ्गलम् ॥14॥

जो मनुष्य इस रामकवच(रक्षा करने वाला स्तोत्र) का स्मरण करता है उसे वज्रपंजर नामक राम जी रक्षा प्राप्त होती है, उसकी आज्ञा का कहीं उल्लंघन नहीं होता और उसे सर्वत्र विजय प्राप्त होती है। 

आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः ।

तथा लिखितवान्प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः ॥15॥

श्री शंकर ने रात्रि के समय स्वप्न में इस राम रक्षा का जिस प्रकार आदेश दिया था, उसी प्रकार प्रातःकाल जागने पर बुधकौशिक ऋषि ने इसे लिख दिया। 

आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम् ।

अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमान् स नः प्रभुः ॥16॥

जो  कल्पवृक्ष(इच्छा को पूरा करने वाला वृक्ष) के बगीचे हैं तथा समस्त विपत्तियों का अंत करने वाले हैं, जो तीनों लोकों में परम सुन्दर हैं, वे यशस्वी श्रीराम हमारे प्रभु हैं। 

तरुणौ रूपसम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।

पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥17॥

जो दो तरुण अवस्था वाले, रूपवान, सुकुमार, महाबली, कमल के समान विशाल नेत्रों वाले, चीरवस्त्र और कृष्ण मृगचर्म धारण करने वाले। 

फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।

पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥18॥

दो ब्रह्मचारी जो कंद और मूल ग्रहण करते हैं तथा तपस्वी और संयमी हैं, दशरथ के दो पुत्र, दो भाई राम और लक्ष्मण। 

शरण्यौ सर्वसत्त्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ।

रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ॥19॥

समस्त जीवों को शरण देने वाले, समस्त धनुर्धारियों में श्रेष्ठ और राक्षस कुल का नाश करने वाले और यह दो रघुकुल में उत्तम हमारी रक्षा करें। 

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आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशावक्षयाशुगनिषङ्गसङ्गिनौ ।

रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम् ॥20॥

 जिन्होंने संधान किया हुआ धनुष ले रखा है, जो हाथ में तेज बाण लिये हैं तथा अक्षय बाणों से युक्त तरकस लिये हुए हैं, वे राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करने के लिये मार्ग में सदा ही मेरे आगे चलें। 

संनद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।

गच्छन्मनोरथोस्माकं रामः पातु सलक्ष्मणः ॥21॥

सर्वदा उद्यत, कवचधारी, हाथ में खड्ग लिये, धनुष-बाण धारण किये तथा युवा अवस्था वाले भगवान राम लक्ष्मण जी सहित हमारे मनोरथ को पूरा करें। 

रामो दाशरथिः शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।

काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघूत्तमः ॥22॥

दशरथ के शूर वीर पुत्र श्री राम , लक्ष्मण द्वारा अनुचरित, काकुस्थ के वंशज, उत्तम और पूर्ण पुरुष, कौशल्या के पुत्र और रघुकुल में उत्तम। 

वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः ।

जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेयपराक्रमः ॥23॥

जिन्हे वेदांत द्वारा जाना जा सकता है, यज्ञ के भगवन, आदि पुरुष में उत्तम, जानकी जी के पति, जिनका पराक्रम अपरिमेय है। 

इत्येतानि जपन्नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयान्वितः ।

अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशयः ॥24॥

इन नामों का नित्य श्रद्धापूर्वक जप करने से मेरा भक्त अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक फल प्राप्त करता है, इसमें कोई संदेह नहीं है। 

रामं दूर्वादळश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम् ।

स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नराः ॥25॥

दूर्वादल के समान श्यामवर्ण, कमलके समान नेत्र वाले , पीताम्बर धारण करने वाले , जो लोग भगवान राम का इन दिव्य नामों से स्तवन करते हैं, वे संसार चक्र (जन्म और मृत्यु) में नहीं पड़ते। 

रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं

काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम् ।

राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शान्तमूर्तिं

वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥26॥

राम जो लक्ष्मण जी ज्येष्ठ भ्राता हैं, रघु के वंशज, सीताजी के स्वामी, अति सुन्दर, ककुत्स्थ कुल के वंशज , करुणा के सागर, गुण निधान, विप्र प्रिय(ज्ञानियों के प्रिय) , परम धार्मिक(धर्म अर्थात कर्तव्य का पालन करने वाले), राजराजेश्वर, सत्यनिष्ठ, दशरथ पुत्र, श्याम और शान्तमूर्ति, सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, रघुकुल के तिलक, राघव और  रावण के शत्रु भगवान श्री राम की मैं वन्दना करता हूँ। 

रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे ।

रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥27॥

राम, रामभद्र(कृपालु), रामचन्द्र(चन्द्रमा के समान शीतल), विधातृ स्वरूप(स्वयं सृजनकर्ता हैं) हैं भगवान रघुनाथ जो सीता जी के पति को नमस्कार है। 

श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम

श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।

श्रीराम राम रणकर्कश राम राम

श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥28॥

हे रघुनन्दन(रघुकुल का आनंद) श्रीराम ! हे भरताग्रज(भरत के ज्येष्ठ भ्राता) भगवान राम ! हे प्रभु राम जो युद्ध में कठोर हैं  ! आप मुझे शरण में लीजिये। 

श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि

श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।

श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि

श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥29॥

मैं श्रीरामचन्द्र के चरणों का मन से स्मरण करता हूँ, श्रीरामचन्द्र के चरणों का वाणी से गुणगान करता हूँ, श्रीरामचन्द्र के चरणों को सिर झुकाकर प्रणाम करता हूँ तथा श्रीरामचन्द्र के चरणों की शरण लेता हूँ। 

माता रामो मत्पिता रामचन्द्रः

स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः ।

सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर्नान्यं

जाने नैव जाने न जाने ॥30॥

राम मेरी माता हैं, राम मेरे पिता हैं, राम स्वामी हैं और राम ही मेरे सखा(मित्र) हैं। दयामय रामचन्द्र ही मेरे सर्वस्व(सब कुछ) हैं, उनके सिवा और किसी को मैं नहीं जानता, बिलकुल नहीं जानता हूँ। 

दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मजा ।

पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनन्दनम् ॥31॥

जिनकी दायीं ओर लक्ष्मण जी, बायीं ओर जानकी जी और सामनेमारुतिनंदन हनुमान जी विराजमान हैं, उन रघुनाथ जी की मैं वन्दना करता हूँ। 

लोकाभिरामं रणरङ्गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् ।

कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ॥32॥

जो सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, जो युद्ध में निपुण हैं , कमलनयन, रघुवंश के स्वामी, करुणा के रूप और करुणा करने वाले, उन श्रीरामचन्द्र जी की मैं शरण लेता हूँ। 

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।

वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥33॥

जिनकी मन के समान गति और वायु के समान वेग है, जो परम जितेन्द्रिय(अपनी इन्द्रियों को वश में करने वाले) और बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, उन पवनपुत्र वानरों की सेना के अधिपति,  श्रीराम के दूत हनुमान जी की मैं शरण लेता हूँ। 

कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम् ।

आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥34॥

मैं महान ऋषि वाल्मीकि की वन्दना करता हूँ जिन्होंने कविता रूपी शाखा पर बैठ कर कोयल के समान मधुरता से राम-राम  इस मधुर अक्षरों वाले श्री राम के यशस्वी नाम को गाया है।(वाल्मीकि रामायण में) 

आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम् ।

लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥35॥

सभी आपत्तियों को दूर वाले तथा सब प्रकार की सम्पत्ति प्रदान करने वाले लोगों को प्रसन्न करने वाले भगवान राम को मैं बारंबार नमस्कार करता हूँ। 

भर्जनं भवबीजानां अर्जनं सुखसम्पदाम् ।

तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥36॥

‘राम-राम’ का घोष सम्पूर्ण संसार में पुनः जन्म के कारण को समाप्त कर देने वाला है(जन्म-मरण से मुक्ति), समस्त सुख-सम्पत्ति की प्राप्ति कराने वाला तथा यमदूतों को भयभीत करने वाला है। 

रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रमेशं भजे

रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः ।

रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहं

रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥37॥

राजाओं में श्रेष्ठ मणि, श्रीराम जी सदा विजय को प्राप्त होते हैं। मैं लक्ष्मीपति भगवान राम का भजन करता हूँ। जिन रामचन्द्र जी ने सम्पूर्ण राक्षस सेना का विध्वंस कर दिया था, मैं उनको प्रणाम करता हूँ। राम से बड़ा और कोई आश्रय नहीं है। मैं उन रामचन्द्र जी का दास हूँ। मेरा चित्त सदा श्री राम में ही लीन रहे। हे प्रभु राम ! आप मेरा उद्धार कीजिये। 

श्री राम राम रामेति रमे रामे मनोरमे ।

सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥38॥

मैं सर्वदा ‘राम, राम, राम’ इस प्रकार मनोरम रामनाम में ही रमण करता हूँ।  महादेव पार्वती जी से कहते हैं – हे सुमुखि ! रामनाम सहस्रनाम के तुल्य है।

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॥ इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम्‌ ॥

॥ इस प्रकार श्री बुधकौशिक मुनि विरचित राम रक्षा स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ॥

Shri Ram Raksha Stotra Path

Shri Ram Raksha Stotra Path Vidhi-श्री राम रक्षा स्तोत्र पाठ विधि

सुबह स्नान करके श्री राम के चित्र या मूर्ति के सम्मुख बैठकर एक लोटे में जल लेकर राम रक्षा स्तोत्र का विनियोग सहित पाठ करें।जल में तुलसी पत्र डाल दें। यदि किसी अन्य व्यक्ति के नाम से पाठ कर रहें हों तो हाथ में जल लेकर उस व्यक्ति के नाम का संकल्प लेकर श्री राम रक्षा स्तोत्र (Ram Raksha Stotra) पाठ करें। पाठ के पश्चात् थोड़ा सा लोटे का जल उस व्यक्ति को पिला दें। स्वयं के लिए है तो स्वयं जल को प्रसाद रूप में ग्रहण करें। बचा हुआ जल घर में छिड़कें और पौधों में डाल दें।

नवरात्रि के नौ दिनों में श्री राम रक्षा स्तोत्र के पाठ का विशेष महत्व है। प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत होकर कुशा के आसन पर बैठकर श्री राम के चित्र या मूर्ति के सम्मुख ध्यान लगाकर कम से कम 11 इस स्तोत्र का पाठ करें। यदि आप अनुष्ठान कर रहें हैं अर्थात किसी विशेष प्रयोजन से पाठ कर रहे हैं तो संकल्प लेकर श्री राम रक्षा स्तोत्र (Ram Raksha Stotra) पाठ प्रारम्भ करें। अनुष्ठान में समय का अनुशासन रखें अर्थात प्रतिदिन नियत समय पर ही पाठ करें।

Shri Ram Raksha Stotra Path Ke Labh-श्री राम रक्षा स्तोत्र के पाठ के लाभ

श्री राम रक्षा स्तोत्र (Ram Raksha Stotra) अत्यंत शक्तिशाली स्तोत्र है। यह व्यक्ति को श्री राम रूपी कृपा का रक्षा कवच प्रदान करता है। प्रभु स्वयं उसकी रक्षा करते हैं। श्री राम रक्षा स्तोत्र के पाठ के निम्न लाभ हैं –

यदि प्रभु श्री राम की कृपा प्राप्त करनी हो तो श्री राम रक्षा स्तोत्र का नित्य पाठ करें।
यदि आपकी जन्म कुंडली के अनुसार मारक ग्रह की दशा चल रही हो तो श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं।
यदि किसी असाध्य रोग से ग्रसित हो तो भी श्री राम रक्षा स्तोत्र के पाठ से लाभ होता है।
यदि शत्रु परेशान कर रहें हो या मुक़दमे में जीत हासिल करनी हो तो श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।

Shri Ram Raksha Stotra Lyrics-श्री राम रक्षा स्तोत्र

Shri Ram Raksha Stotra 1
Shri Ram Raksha Stotra 2
Shri Ram Raksha Stotra Lyrics
Shri Ram Raksha Stotra 3
Category: Stotra/ Stuti

2 thoughts on “Shri Ram Raksha Stotra With Hindi Meaning-श्री राम रक्षा स्तोत्र हिन्दी अर्थ”

  1. Anil Vasantrao Mulaokar says:
    August 27, 2023 at 3:33 am

    Very nice जय श्रीराम

    Reply
    1. santwana says:
      August 27, 2023 at 6:54 am

      धन्यवाद। जय श्रीराम

      Reply

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