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Shri Ram Stuti Shri Ramchandra Kripalu Bhajman

श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन हिन्दी अर्थ-Shri Ramchandra Kripalu Bhajman

Posted on July 5, 2021February 27, 2024 by santwana

Shri Ramchandra Kripalu Bhajman

“श्री रामचंद्र कृपालु भजुमन” या “श्री राम स्तुति” गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित प्रभु श्री राम की सर्वाधिक प्रचलित स्तुति है। इसे गोस्वामी जी ने सोलहवीं सदी में लिखा था। यह संस्कृत और अवधी भाषा में मिश्रित है। 

इस स्तुति में गोस्वामी जी ने अपने आराध्य प्रभु श्री राम का गुणगान किया है। इसे सुन्दरकाण्ड, आरती और हनुमान चालीसा के पश्चात् गाने का विधान है। 

विषय-सूची
  1. Shri Ramchandra Kripalu Bhajman Lyrics -श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन
  2. Shri Ram Stuti Shri Ramchandra Kripalu Bhajman Hindi Meaning-श्री राम स्तुति का हिन्दी अर्थ
  3. Shri Ram Stuti Mahatav-श्री राम जी की स्तुति का महत्व
  4. Shri Ram Ji Ki Aarti-श्री राम जी की आरती
  5. Reference Book-सन्दर्भ ग्रंथ

Shri Ramchandra Kripalu Bhajman Lyrics –श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन

॥दोहा॥

श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन हरण भवभय दारुणं ।
नव कंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणं ॥१॥

कन्दर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरद सुन्दरं ।
पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचिनोमि जनक सुतावरं ॥२॥

भजु दीनबन्धु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनं ।
रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल चन्द दशरथ नन्दनं ॥३॥

शिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अङ्ग विभूषणं ।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खरदूषणं ॥४॥

इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनं ।
मम् हृदय कंज निवास कुरु कामादि खलदल गंजनं ॥५॥

मन जाहि राच्यो मिलहि सो वर सहज सुन्दर सांवरो ।
करुणा निधान सुजान शील स्नेह जानत रावरो ॥६॥

एहि भांति गौरी असीस सुन सिय सहित हिय हरषित अली।
तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मन्दिर चली ॥७॥

॥सोरठा॥

जानी गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि ।
मंजुल मंगल मूल वाम अङ्ग फरकन लगे।

Shri Ramchandra Kripalu Bhajman-श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन

Shri Ram Stuti Shri Ramchandra Kripalu Bhajman Hindi Meaning-श्री राम स्तुति का हिन्दी अर्थ

श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन हरण भवभय दारुणं ।
नव कंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणं ॥१॥

हे मन, कृपा करने वाले श्रीराम का भजन करो जो कष्टदायक जन्म-मरण के भय का नाश करने वाले हैं, जो नवीन कमल के समान आँखों वाले हैं, जिनका मुख कमल के समान है, जिनके हाथ कमल के समान हैं, जिनके चरण रक्तिम (लाल) आभा वाले कमल के समान हैं॥1॥

कन्दर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरद सुन्दरं ।
पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचिनोमि जनक सुतावरं ॥२॥

जो अनगिनत कामदेवों के समान तेजस्वी छवि वाले हैं, जो नवीन नील मेघ के समान सुन्दर हैं, जिनका पीताम्बर सुन्दर विद्युत् के समान है, जो पवित्रता की साकार मूर्ति श्रीसीता जी के पति हैं को मैं नमस्कार करता हूँ ॥2॥

भजु दीनबन्धु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनं ।
रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल चन्द दशरथ नन्दनं ॥३॥

हे मन, दीनों(दुःखी ) के बन्धु, सूर्यवंशी, दानवों और दैत्यों के वंश का नाश करने वाले, रघु के वंशज, सघन आनंद रूप, अयोध्याधिपति श्रीदशरथ के पुत्र श्रीराम का  भजन करो ॥3॥

शिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अङ्ग विभूषणं ।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खरदूषणं ॥४॥

जिनके मस्तक पर मुकुट, कानों में कुंडल और माथे पर तिलक है, जिनके अंग प्रत्यंग सुन्दर, सुगठित और भूषण युक्त हैं, जो घुटनों तक लम्बी भुजाओं वाले हैं, जो धनुष और बाण धारण करते हैं, जो संग्राम में खर और दूषण को जीतने वाले हैं॥4॥

इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनं ।
मम् हृदय कंज निवास कुरु कामादि खलदल गंजनं ॥५॥

श्रीतुलसीदास जी कहते हैं, हे शंकर, शेष और मुनियों के मन को प्रसन्न करने वाले, काम आदि दुर्गुणों के समूह का नाश करने वाले श्रीराम जी आप मेरे हृदय कमल में निवास कीजिये॥5॥

मन जाहि राच्यो मिलहि सो वर सहज सुन्दर सांवरो ।
करुणा निधान सुजान शील स्नेह जानत रावरो ॥६॥

जो तुम्हारे मन को प्रिय हो गया है, वह स्वाभाविक रूप से सुन्दर सांवला वर ही तुमको मिलेगा। वह करुणा की सीमा और सर्वज्ञ है और तुम्हारे शील और स्नेह को जानता है॥6॥

एहि भांति गौरी असीस सुन सिय सहित हिय हरषित अली।
तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मन्दिर चली ॥७॥

इस प्रकार श्रीपार्वती जी का आशीर्वाद सुनकर श्री सीता जी सहित सभी सखियाँ प्रसन्न हृदय वाली हो गयीं। श्रीतुलसीदास जी कहते हैं – श्रीपार्वती जी की बार बार पूजा करके श्रीसीता जी प्रसन्न मन से महल की ओर चलीं॥7॥

॥सोरठा॥
जानी गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि ।
मंजुल मंगल मूल वाम अङ्ग फरकन लगे।।

श्रीपार्वती जी को अनुकूल जान कर, श्रीसीता जी के ह्रदय की प्रसन्नता का कोई सीमा नहीं है। सुन्दर और मंगलकारी लक्षणों की सूचना देने वाले उनके बाएं अंग फड़कने लगे॥8॥

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गोस्वामी तुलसीदास Goswami Tulsidas

Shri  Ram Stuti- Shri Ramchandra Kripalu Bhajman
Shri Ram Stuti Shri Ramchandra Kripalu Bhajman-श्री राम स्तुति

Shri Ram Stuti Mahatav-श्री राम जी की स्तुति का महत्व

  • गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित “श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन” स्तुति को भावपूर्वक गाकर पढ़ने से प्रभु श्री राम और हनुमान जी की कृपा प्राप्त होती है।
  • इस स्तुति को गाकर पढ़ने से मन के नकारात्मक विचारों का नाश होता है और सकारात्मकता बढ़ती है।
  • इस स्तुति का पाठ करने से माता लक्ष्मी की भी कृपा प्राप्त होती है।

Shri Ram Ji Ki Aarti-श्री राम जी की आरती

आरती कीजै रामचन्द्र जी की।
हरि-हरि दुष्टदलन सीतापति जी की॥
पहली आरती पुष्पन की माला।
काली नाग नाथ लाये गोपाला॥
दूसरी आरती देवकी नन्दन।
भक्त उबारन कंस निकन्दन॥
तीसरी आरती त्रिभुवन मोहे।
रत्‍‌न सिंहासन सीता रामजी सोहे॥
चौथी आरती चहुं युग पूजा।
देव निरंजन स्वामी और न दूजा॥
पांचवीं आरती राम को भावे।
रामजी का यश नामदेव जी गावें॥

Reference Book-सन्दर्भ ग्रंथ

Shri Ramcharitmanas

Category: Stotra/ Stuti

1 thought on “श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन हिन्दी अर्थ-Shri Ramchandra Kripalu Bhajman”

  1. Laxman singh says:
    June 7, 2023 at 11:18 pm

    श्रीराम स्तुति
    श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन हरण भवभय दारुणं । नव कंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणं ॥१॥ कन्दर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरद सुन्दरं । पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचिनोमि जनक सुतावरं ॥२॥ भजु दीनबन्धु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनं । रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल चन्द दशरथ नन्दनं ॥३॥ शिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अङ्ग विभूषणं । आजानुभुज शर चाप धर संग्राम जित खरदूषणं ॥४॥ इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनं । मम् हृदय कंज निवास कुरु कामादि खलदल गंजनं ॥५॥ मन जाहि राच्यो मिलहि सो वर सहज सुन्दर सांवरो । करुणा निधान सुजान शील स्नेह जानत रावरो ॥६॥ एहि भांति गौरी असीस सुन सिय सहित हिय हरषित अली। तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मन्दिर चली ॥७॥ ॥ सोरठा ॥ जानी गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि । मंजुल मंगल मूल वाम अङ्ग फरकन लगे।

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