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Rinmochan Mangal Stotram

Rinmochan Mangal Stotram-ऋण मोचन मंगल स्तोत्र हिंदी अर्थ

Posted on July 15, 2023April 17, 2024 by santwana

Rinmochan Mangal Stotram

ज्योतिषशास्त्र में मंगल ग्रह को शक्ति, ऊर्जा, आत्मविश्वास और पराक्रम का स्वामी तथा नवग्रहों का सेनापति माना गया है। इनका रंग लाल है तथा राशि मेष और वृश्चिक हैं तथा मकर राशि में उच्च के होते हैं। मंगल देव को धरती पुत्र भी कहा जाता है।
मंगल देव किसी जातक की कुंडली में यदि अच्छे हो तो उसे मान-सम्मान, पुलिस तथा सेना में उच्च पद मिल सकता है तथा उसे भूमि सुख और छोटे भाई-बहन का सुख मिलता है। वही यदि मंगल देव कुंडली में ख़राब हो तो दुर्घटना, वाद-विवाद, मुकदमा और कर्जा आदि का सामना करना पड़ता है।

इस लेख के माध्यम से हम ऋण मोचन मंगल स्तोत्र को हिंदी अर्थ सहित अपने पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत कर रहें ताकि जो लोग अपने जीवन में मंगल ग्रह के बुरे प्रभाव के कारण कर्जा आदि में घिरे हो वह इसका पाठ कर लाभ प्राप्त कर सकें।

विषय-सूचि
  1. Rinmochan Mangal Stotram Hindi Arth-ऋण मोचन मंगल स्तोत्र अर्थ
  2. Rinmochan Mangal Stotram Lyrics-ऋण मोचन मंगल स्तोत्र

Rinmochan Mangal Stotram Hindi Arth-ऋण मोचन मंगल स्तोत्र अर्थ

मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः ।
स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः ॥1॥

मङ्गल , भूमिपुत्र(धरती का पुत्र), ऋणहर्ता (कर्ज का नाश करने वाले), धनप्रद(धन को प्रदान करने वाले), स्थिरासन(अपने स्थान पर स्थिर रहने वाले), महाकाय (बड़े शरीर वाले), सर्वकर्मविरोधक(समस्त तरह की कार्य बाधा को हटाने वाले) ।

लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः ।
धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः॥2॥

लोहित(लाल, तांबे से निर्मित), लोहिताक्ष (लाल आँखों वाला), सामगानां कृपाकर(सामवेद ज्ञाता पर कृपा करने वाला), धरात्मज(पृथ्वी के गर्भ से उत्पन्न), कुज(एक पेड़, पृथ्वी का पुत्र), भौमो(मंगल या भूमि का), भूतिद (ऐश्वर्य प्रदान करने वाले), भूमिनन्दन (धरती को आनंदित करने वाले) ।

अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः ।
व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः॥3॥

अंगारक, यम, सर्वरोगापहारक(समस्त व्याधियों का नाश करने वाले), वृष्टिकर्ता(वर्षा करने वाले), वृष्टिहर्ता(वर्षा को न करने वाले), सर्वकामफलप्रद(सभी कर्मों के फल को प्रदान करने वाले) ।

एतानि कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत् ।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात् ॥4॥

जो मनुष्य मंगलदेव के इन इक्कीस नाम का नित्य श्रद्धापूर्वक पाठ करता है उसे कभी ऋण नहीं लेना पड़ता तथा शीग्र धन प्राप्त करता है।

धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम् ।
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम् ॥5॥

हे मंगल देव आपकी उत्पत्ति पृथ्वी के गर्भ से हुई है, आपकी कांति आकाश में चमकने वाली विद्युत के समान है, आप समस्त शक्ति को धारण करने वाले हैं, आपको मैं नमस्कार करता हूँ।

स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः ।
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित् ॥6॥

हे मंगलदेव आपके मंगल स्तोत्र का पाठ मनुष्यों को हमेशा पूर्ण श्रद्धा के साथ करना चाहिए। जो लोग इसका पाठ करते हैं उन्हें मंगल से थोड़ी सी भी पीड़ा नहीं होती है।

अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल ।
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय ॥7॥

हे अंगारक (अग्नि की ज्वाला के समान), महभाग(पूजनीय), भगवन, भक्तवत्सल (भक्तो पर स्नेह रखने वाले) मैं आपको नमस्कार करता हूँ। हमारे ऊपर किसी और से उधार लिया हुआ पूर्ण करवाकर हमें कर्ज से मुक्त कीजिए।

ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः ।
भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥8॥

हे मंगलदेव मेरे ऊपर किसी के कर्ज को समाप्त कीजिए, किसी प्रकार की व्याधि हो तो उसे भी समाप्त कीजिए। मेरे दारिद्रय को दूर कीजिए तथा अकाल मृत्यु का नाश कीजिए। मेरे मन से भय क्लेश तथा दुःख का नाश कीजिए।

अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः ।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्ख्शणात् ॥9॥

आप अतिवक्र(अत्यंत टेढ़े), दुरारार्ध्य(कठिनता से संतुष्ट होने वाले), भोगमुक्त, जितात्मन हैं। जब आप किसी पर कृपा करते हैं तो उसे समस्त सुख-संपत्ति साम्राज्य दे सकते हैं तथा रुष्ट होने पर क्षण भर में सब समाप्त कर सकते हैं।

विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा ।
तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः ॥10॥

जब आप किसी पर रुष्ट होते हैं तो आप उसे अनुकम्पा हीन कर देते हैं। आप अप्रसन्न होने पर ब्रह्मा, इन्द्र तथा विष्णु जी के साम्राज्य को भी समाप्त कर सकते हैं फिर मेरे जैसे मनुष्य की क्या बात है। इस तरह के शौर्य के कारण आप सभी ग्रहों में महाबली हो।

पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः ।
ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः ॥11॥

मैं आपकी शरण में आया हूँ मुझे पुत्र प्रदान करें मुझे धन प्रदान करें। मेरे कर्ज समाप्त करें, दारिद्रय समाप्त करें, दुःख समाप्त करें, शत्रुओं को समाप्त करें तथा भय मुक्त करें।

एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम् ।
महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा ॥12॥

जो भी मनुष्य इन बारह श्लोकों द्वारा मगंल देव की पूजा करता है उसे अत्यधिक धन संपत्ति प्राप्त होती है तथा उसपर आयु का कोई प्रभाव नहीं होता अर्थात वह सदैव युवा बना रहता है।

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Rinmochan Mangal Stotram Lyrics-ऋण मोचन मंगल स्तोत्र

Rinmochan Mangal Stotram Lyrics
Rinmochan Mangal Stotram-ऋण मोचन मंगल स्तोत्र
Category: Astrology Hindi, Stotra/ Stuti

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