Shivlinga Kya Hai-शिवलिंग क्या है
- Shivlinga Kya Hai-शिवलिंग क्या है
- Brahma Vishnu Vivad Aur Pratham Shivling Ka Prakatya-ब्रम्हा विष्णु विवाद और प्रथम ज्योतिर्लिंग का प्राकट्य
- Shivling Ki Sthapana Aur Pujan Vidhi-शिव लिंग की स्थापना और पूजन विधि
- Shivling Ke Prakar-शिव लिंग के प्रकार
- Narmadeshwar Shivling-नर्मदेश्वर शिवलिंग
- Jyotirling Kya Hai-ज्योतिर्लिंग क्या है
- Shivling Ki Puja Ka Mahatva-शिवलिंग की पूजा का महत्व
Brahma Vishnu Vivad Aur Pratham Shivling Ka Prakatya-ब्रम्हा विष्णु विवाद और प्रथम ज्योतिर्लिंग का प्राकट्य
शिव पुराण के अनुसार एक समय शेषशायी भगवान विष्णु अपनी पराशक्ति तथा पार्षदों से गिरे हुए शयन कर रहे थे उसी समय ब्रह्मा जी वहां पधारें तथा विष्णु जी से वार्ता करते हुए वाद-विवाद करने लगे वाद विवाद इतना बढ़ गया कि भयंकर युद्ध का रूप धारण कर लिया।
निराकार भगवान शंकर ब्रह्मा और विष्णु जी का युद्ध को देखकर एक विशाल अग्नि स्तंभ के रूप में उन दोनों के बीच में प्रकट हो गए। इस अद्भुत स्तंभ को देखकर ब्रह्मा तथा विष्णु आश्चर्यचकित हो गये ।
ब्रह्मा विष्णु दोनों ने इसकी ऊंचाई तथा जड़ की सीमा देखने का विचार किया और यह निश्चय किया यह जो भी अग्नि स्तंभ के अंत को पा लेगा वहीं सर्वश्रेष्ठ है। विष्णु शूकर का रूप धारण कर इसकी जड़ की खोज में नीचे की ओर चले। इसी प्रकार ब्रह्मा भी हंसिका रूप धारण कर उसका अंत खोजने के लिए ऊपर की ओर चल पड़े।
पाताल लोक को खोदकर बहुत दूर जाने पर भी विष्णु को उस अग्नि स्तंभ का आधार नहीं मिला। वे थक हार कर रणभूमि में वापस आ गए।
दूसरी और ब्रह्मा जी ने आकाश मार्ग से जाते हुए मार्ग में एक अद्भुत केतकी (केवड़े) के पुष्प को गिरते हुए देखा। उस केतकी पुष्पने ब्रह्मा जी से कहा – इस स्तंभ के आदि का कहीं पता नहीं है आप उसे देखने की आशा छोड़ दे ।
ब्रह्मा जी ने केतकी पुष्प से निवेदन किया कि तुम मेरे साथ चल कर विष्णु के समस्या कह देना की ब्रह्मा जी ने इस स्तंभ का अंत देख लिया है मैं इसका साक्षी हूं आपातकाल में मिथ्या भाषण का दोष नहीं है । केतकी ने वैसा ही किया।
भगवान शंकर तो अंतर्यामी थी उन्होंने विष्णु की सत्य निष्ठा से प्रसन्न होकर देवताओं के समक्ष उन्हें अपनी समानता प्रदान की तथा ब्रह्मा से कहा यह ब्रह्मा तुमने असत्य का आश्रय लिया है इसलिए संसार में तुम्हारा सत्कार नहीं होगा और तुम्हारे मंदिर नहीं बनेंगे तथा पूजन उत्सव आदि भी नहीं होंगे।
भगवान शिव में झूठी गवाही देने वाले केतकी के पुष्प से कहा तुम दुष्ट हो मेरी पूजा में उपस्थित तुम्हारा फूल मुझे प्रिय नहीं होगा।
शिवपुराण की विश्वेश्वर संहिता के अनुसार शिवजी के दो रूप हैं – साकार और निराकार। सबसे पहले शिवजी अग्नि स्तम्भ के रूप में प्रकट हुए फिर अपने साक्षात रूप में। ब्रह्मभाव शिवजी का निराकार रूप है तथा महेश्वर भाव शिवजी का साक्षात रूप है।
ब्रह्मरूपता का बोध कराने के लिए शिवजी पहले लिंग रूप में प्रकट हुए फिर अज्ञात ईश्वरत्व का साक्षात्कार कराने के लिए जगदीश्वर रूप में प्रकट हुए।
शिवपुराण के अनुसार शिवलिंग की स्थापना करने वाले उपासकों को शिवजी की समानता प्राप्त हो जाती है और वह संसार सागर से मुक्त हो जाते हैं। मूर्ति की स्थापना लिंग की अपेक्षा गौण है।
Shivling Ki Sthapana Aur Pujan Vidhi-शिव लिंग की स्थापना और पूजन विधि
अनुकूल एवं शुभ समय में किसी पवित्र तीर्थ में ,नदी के तट पर ऐसी जगह पर शिवलिंग की स्थापना करनी चाहिए जहाँ उसका रोजाना पूजन हो सके।
चल प्रतिष्ठा के लिए छोटा शिवलिंग श्रेष्ठ माना जाता है तथा अचल प्रतिष्ठा के लिए बड़ा शिवलिंग अच्छा रहता है। शिवलिंग की पीठ सहित स्थापना करनी चाहिए। अचल शिवलिंग की लम्बाई स्थापना करने वाले मनुष्य के 12 अंगुल के बराबर होनी चाहिए। इससे कम होने पर फल भी कम प्राप्त होता है।
चल लिंग की लम्बाई स्थापना करने वाले के एक अंगुल के बराबर होनी चाहिए उससे कम नहीं।
सूत जी कहते हैं कि कलयुग में शिवलिंग की पूजा सर्वश्रेष्ठ साधन है। शिवलिंग का पूजन भोग और मोक्ष दोनों प्रदान करता है। शिवपुराण के अनुसार लिंग के तीन भेद बताए गए हैं- उत्तम, मध्यम और अधम। शास्त्रज्ञ महाऋषियों ने चार अंगुल से ज्यादा बड़ा शिवलिंग जो देखने में सुन्दर और वेदी से युक्त हो ऐसे शिवलिंग को उत्तम, इससे आधे को मध्यम तथा इससे आधे अर्थात एक अंगुल के शिवलिंग को अधम कहा गया है।
आवाहन ,आसन ,अर्घ्य,पाद्य, पद्यांग ,आचमन,स्नान ,वस्त्र,यज्ञोपवीत ,गंध,पुष्प,धूप ,दीप ,नैवैद्य,ताम्बूल,समर्पण,नीराजन,नमस्कार और विसर्जन ये सोलह उपचार हैं। इनके द्वारा भगवान शिव का पूजन करना चाहिए।
Shivling Ke Prakar-शिव लिंग के प्रकार
प्रणव समस्त अभीष्ट वस्तुओं को देने वाला प्रथम लिंग है।वह सूक्ष्म प्रणव है। सूक्ष्म लिंग निष्कल होता है और स्थूल लिंग सकल। एक अक्षररूप जो ओम है उसे सूक्ष्म प्रणव जानना चाहिए और पंचाक्षर मंत्र नमः शिवाय को स्थूल लिंग कहते हैं।उन दोनों प्रकार के लिंगो का पूजन तप कहलाता है।
पृथ्वी के विकारभूत पांच प्रकार के लिंग ज्ञात हैं-पहला स्वयंभू लिंग, दूसरा बिंदु लिंग, तीसरा प्रतिष्ठित लिंग, चौथा चरलिंग और पांचवां गुरू लिंग।