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Shivling

Shivlinga Ke Prakar Aur Mahatava-शिवलिंग क्या है

Posted on August 16, 2021February 22, 2024 by santwana

Shivlinga Kya Hai-शिवलिंग क्या है

शिवलिंग का अर्थ होता है – शिव का प्रतीक। शिवलिंग को सृष्टि के निर्माण का प्रतीक माना जाता है।शिव पुराण की विद्येश्वर संहिता अनुसार शिवलिंग शिव जी का निराकार स्वरूप है। शिवलिंग के पूजन से भगवान महादेव की सगुण और निर्गुण दोनों प्रकार की भक्ति प्राप्त होती है। शिवलिंग का पूजन करने से शिव और शक्ति दोनों का पूजन हो जाता है। 

सर्वप्रथम सृष्टि की उत्पत्ति के लिए ज्योति प्रकट हुई थी जो कि प्रथम ज्योतिर्लिंग माना जाता है।

विषय-सूचि
  1. Shivlinga Kya Hai-शिवलिंग क्या है
  2. Brahma Vishnu Vivad Aur Pratham Shivling Ka Prakatya-ब्रम्हा विष्णु विवाद और प्रथम ज्योतिर्लिंग का प्राकट्य
  3. Shivling Ki Sthapana Aur Pujan Vidhi-शिव लिंग की स्थापना और पूजन विधि 
  4. Shivling Ke Prakar-शिव लिंग के प्रकार
    • Swaymbhu Ling-स्वयंभू लिंग
    • Bindu Ling-बिंदु लिंग
    • Pratishit Ling-प्रतिष्ठित लिंग-
    • Charling-चरलिंग-
  5. Narmadeshwar Shivling-नर्मदेश्वर शिवलिंग
  6. Jyotirling Kya Hai-ज्योतिर्लिंग क्या है
  7. Shivling Ki Puja Ka Mahatva-शिवलिंग की पूजा का महत्व

Brahma Vishnu Vivad Aur Pratham Shivling Ka Prakatya-ब्रम्हा विष्णु विवाद और प्रथम ज्योतिर्लिंग का प्राकट्य

शिव पुराण के अनुसार एक समय शेषशायी भगवान विष्णु अपनी पराशक्ति तथा पार्षदों से गिरे हुए शयन कर रहे थे उसी समय ब्रह्मा जी वहां पधारें तथा विष्णु जी से वार्ता करते हुए वाद-विवाद करने लगे वाद विवाद इतना बढ़ गया कि भयंकर युद्ध का रूप धारण कर लिया। 

निराकार भगवान शंकर ब्रह्मा और विष्णु जी का युद्ध को देखकर एक विशाल अग्नि स्तंभ के रूप में उन दोनों के बीच में प्रकट हो गए। इस अद्भुत स्तंभ को देखकर ब्रह्मा तथा विष्णु आश्चर्यचकित हो गये ।

Pratham Shivling Ka Prakatya

ब्रह्मा विष्णु दोनों ने इसकी ऊंचाई तथा जड़ की सीमा देखने का विचार किया और यह निश्चय किया यह जो भी अग्नि स्तंभ के अंत को पा लेगा वहीं सर्वश्रेष्ठ है। विष्णु शूकर का रूप धारण कर इसकी जड़ की खोज में नीचे की ओर चले। इसी प्रकार ब्रह्मा भी हंसिका रूप धारण कर उसका अंत खोजने के लिए ऊपर की ओर चल पड़े।

पाताल लोक को खोदकर बहुत दूर जाने पर भी विष्णु को उस अग्नि स्तंभ का आधार नहीं मिला। वे थक हार कर रणभूमि में वापस आ गए। 

दूसरी और ब्रह्मा जी ने आकाश मार्ग से जाते हुए मार्ग में एक अद्भुत केतकी (केवड़े) के पुष्प को गिरते हुए देखा। उस केतकी पुष्पने ब्रह्मा जी से कहा – इस स्तंभ के आदि का कहीं पता नहीं है आप उसे देखने की आशा छोड़ दे ।

ब्रह्मा जी ने केतकी पुष्प से निवेदन किया कि तुम मेरे साथ चल कर विष्णु के समस्या कह देना की ब्रह्मा जी ने इस स्तंभ का अंत देख लिया है मैं इसका साक्षी हूं आपातकाल में मिथ्या भाषण का दोष नहीं है । केतकी ने वैसा ही किया।

भगवान शंकर तो अंतर्यामी थी उन्होंने विष्णु की सत्य निष्ठा से प्रसन्न होकर देवताओं के समक्ष उन्हें अपनी समानता प्रदान की तथा ब्रह्मा से कहा यह ब्रह्मा तुमने असत्य का आश्रय लिया है इसलिए संसार में तुम्हारा सत्कार नहीं होगा और तुम्हारे मंदिर नहीं बनेंगे तथा पूजन उत्सव आदि भी नहीं होंगे।

भगवान शिव में झूठी गवाही देने वाले केतकी के पुष्प से कहा तुम दुष्ट हो मेरी पूजा में उपस्थित तुम्हारा फूल मुझे प्रिय नहीं होगा।

शिवपुराण की विश्वेश्वर संहिता के अनुसार शिवजी के दो रूप हैं – साकार और निराकार। सबसे पहले शिवजी अग्नि स्तम्भ के रूप में प्रकट हुए फिर अपने साक्षात रूप में। ब्रह्मभाव शिवजी का निराकार रूप है तथा महेश्वर भाव शिवजी का साक्षात रूप है। 

ब्रह्मरूपता का बोध कराने के लिए शिवजी पहले लिंग रूप में प्रकट हुए फिर अज्ञात ईश्वरत्व का साक्षात्कार कराने के लिए जगदीश्वर रूप में प्रकट हुए। 

शिवपुराण के अनुसार शिवलिंग की स्थापना करने वाले उपासकों को शिवजी की समानता प्राप्त हो जाती है और वह संसार सागर से मुक्त हो जाते हैं। मूर्ति की स्थापना लिंग की अपेक्षा गौण है। 

Shivling Ki Sthapana Aur Pujan Vidhi-शिव लिंग की स्थापना और पूजन विधि 

अनुकूल एवं शुभ समय में किसी पवित्र तीर्थ में ,नदी के तट पर ऐसी जगह पर शिवलिंग की स्थापना करनी चाहिए जहाँ उसका रोजाना पूजन हो सके। 

चल प्रतिष्ठा के लिए छोटा शिवलिंग श्रेष्ठ माना जाता है तथा अचल प्रतिष्ठा के लिए बड़ा शिवलिंग अच्छा रहता है। शिवलिंग की पीठ सहित स्थापना करनी चाहिए। अचल शिवलिंग की लम्बाई स्थापना करने वाले मनुष्य के 12 अंगुल के बराबर होनी चाहिए। इससे कम होने पर फल भी कम प्राप्त होता है। 

चल लिंग की लम्बाई स्थापना करने वाले के एक अंगुल के बराबर होनी चाहिए उससे कम नहीं। 

सूत जी कहते हैं कि कलयुग में शिवलिंग की पूजा सर्वश्रेष्ठ साधन है। शिवलिंग का पूजन भोग और मोक्ष दोनों प्रदान करता है। शिवपुराण के अनुसार लिंग के तीन भेद बताए गए हैं- उत्तम, मध्यम और अधम। शास्त्रज्ञ महाऋषियों ने चार अंगुल से ज्यादा बड़ा शिवलिंग जो देखने में सुन्दर और वेदी से युक्त हो ऐसे शिवलिंग को उत्तम, इससे आधे को मध्यम तथा इससे आधे अर्थात एक अंगुल के शिवलिंग को अधम कहा गया है।

आवाहन ,आसन ,अर्घ्य,पाद्य, पद्यांग ,आचमन,स्नान ,वस्त्र,यज्ञोपवीत ,गंध,पुष्प,धूप ,दीप ,नैवैद्य,ताम्बूल,समर्पण,नीराजन,नमस्कार और विसर्जन ये सोलह उपचार हैं।  इनके द्वारा भगवान शिव का पूजन करना चाहिए। 

Shivling Ke Prakar-शिव लिंग के प्रकार

प्रणव समस्त अभीष्ट वस्तुओं को देने वाला प्रथम लिंग है।वह सूक्ष्म प्रणव है। सूक्ष्म लिंग निष्कल होता है और स्थूल लिंग सकल। एक अक्षररूप जो ओम है उसे सूक्ष्म प्रणव जानना चाहिए और पंचाक्षर मंत्र नमः शिवाय को स्थूल लिंग कहते हैं।उन दोनों प्रकार के लिंगो का पूजन तप कहलाता है।

पृथ्वी के विकारभूत पांच प्रकार के लिंग ज्ञात हैं-पहला स्वयंभू लिंग, दूसरा बिंदु लिंग, तीसरा प्रतिष्ठित लिंग, चौथा चरलिंग और पांचवां गुरू लिंग।

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Swaymbhu Ling-स्वयंभू लिंग

जब भगवान शिव स्वयं अंकुर की भांति भूमि को भेदकर नाथ लिंग के रूप में व्यक्त हो जाते हैं तो उसे स्वयंभू लिंग कहते हैं स्वयंभू लिंग की पूजा से उपासक का ज्ञान स्वयं ही बढ़ने लगता है स्वयंभू लिंग को ही ज्योतिर्लिंग कहते हैं।

Bindu Ling-बिंदु लिंग

सोने चांदी आदि के पत्र पर पर भूमि पर अथवा वेदी पर अपने हाथ से लिखित जो शुद्ध प्रणव मंत्र रूप लिंग है उसे बिंदु नाथ में लिंग है ऐसे बिंदु में लिंग स्थावर और जंगम दोनों ही प्रकार का होता है इसमें शिव का दर्शन भावना में ही है अपने हाथ से लिखे हुए यंत्र में भगवान शिव का आवाहन करके 16 उपचारों से उनकी पूजा करें ऐसा करने से साधक को ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।

Pratishit Ling-प्रतिष्ठित लिंग-

देवता और ऋषि यों में आत्मसिद्धि के लिए अपने हाथ से वैदिक मंत्रों के उच्चारण पूर्वक शुद्ध मंडल में शुद्ध भावना द्वारा जिस उत्तम शिवलिंग की स्थापना की है उसे पौरुष लिंग कहते हैं तथा यही प्रतिष्ठित लिंग है।

महान ब्राह्मण और महादानी राजा किसी कारीगर से शिवलिंग का निर्माण करा कर जो मंत्र पूर्वक उसकी स्थापना करते हैं उनके द्वारा स्थापित हुआ लिंग भी प्रतिष्ठित लिंग है किंतु यह प्राकृत लिंग है इसलिए प्राकृत लिंग ऐश्वर्य भोग को ही देने वाला होता है।

Charling–चरलिंग-

नाभि, जिह्वा, नासाग्र और शिखा के क्रम से कटि, हृदय और मस्तिष्क तीनों स्थानों में जो लिंग की भावना की गई है उस आध्यात्मिक लिंग को ही चरलिंग कहते हैं।

लिंग पुराण के अनुसार द्रव्यों के भेद से छह प्रकार के शिवलिंग कहे गए हैं उनके उनके भी 44 भेद हैं। पहला शैलज वह 4 प्रकार का है, दूसरा रत्नज वह 7 प्रकार का है, तीसरा धातुज 8 प्रकार का, चौथा दारूज 16 प्रकार का, पांचवा मृणामय(मिट्टी) 2 प्रकार का, छठा क्षणिक 7 प्रकार का होता है।

रत्नज शिवलिंग लक्ष्मीप्रद होता है,शैलज शिवलिंग सर्वसिद्धिप्रद होता है और उत्तम माना जाता है।धातुज शिवलिंग धनप्रद होता है, दारुज भोग सिद्धि के लिए और मिट्टी का शिवलिंग सर्वसिद्धि दाता होता है।

सावन में शिव पूजा

Narmadeshwar Shivling-नर्मदेश्वर शिवलिंग

Narmedshwar Shivling
Narmadeshwar Shivling

नर्मदेश्वर एक बाणलिंग है।नर्मदा नदी से प्राप्त होने वाले शिवलिंग को नर्मदेश्वर शिवलिंग कहते हैं।नर्मदेश्वर शिवलिंग की पूजा सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और फलदाई होती है।

नर्मदा नदी को भगवान शिव ने वरदान दिया था कि इससे कण-कण में भगवान शिव का वास होगा इसलिए नर्मदा से निकलने वाले शिवलिंग  को इतना पवित्र माना जाता है।

नर्मदेश्वर शिवलिंग को सीधा स्थापित किया जाता है इसको प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती है।नर्मदा से निकलने वाले शिवलिंग पहले से ही जागृत होते हैं।जहां पर नर्मदेश्वर शिवलिंग होता है वहां काल और यम का भय नहीं होता। व्यक्ति अपनी समस्त मनोकामना पूर्ति का शिवलिंग की पूजा द्वारा कर सकता है।

Jyotirling Kya Hai-ज्योतिर्लिंग क्या है

ज्योतिर्लिंग स्वयं प्रकट होते है जबकि शिवलिंग को बनाया जाता है फिर उसकी स्थापना की जाती है। शिवपुराण की रुद्रसंहिता की कथा के अनुसार जब ब्रह्मा जी और विष्णु जी के मध्य विवाद हुआ तब पहला ज्योति स्तम्भ प्रकट हुआ।

यह पहला ज्योतिर्लिंग है। इस ज्योति स्तम्भ का कोई ओर-छोर नहीं था। विष्णु जी और ब्रम्हा जी जब उस ज्योति स्तम्भ का ओर छोर ढूढ़ने में असफल रहे तो शिव जी ने उन्हें ज्योतिर्लिंग का रहस्य बताया। 

शास्त्रों में 64 ज्योतिर्लिंगों का वर्णन मिलता है जिनमें से हम 12 ज्योतिर्लिंगों और 12 उपज्योतिर्लिंगों के बारे में हमें पता है बाकी के बारे में हमें पता नहीं है। 

इस भूतल पर उपस्थित 12 ज्योतिर्लिंग के नाम है-सौराष्ट्र में सोमनाथ, श्रीशैल पर मलिकार्जुन, उज्जैनी में महाकाल, ओंकार तीर्थ में परमेश्वर ,हिमालय के शिखर पर केदार ,डाकनी में भीमाशंकर ,वाराणसी में विश्वनाथ,गोदावरी के तट पर त्र्यम्बक, चिताभूमि में बैद्यनाथ, दारूकावन में नागेश, सेतुबंध में रामेश्वर तथा शिवालय में घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग हैं।  

Dwadash Jyotirling Stuti

Shivling Ki Puja Ka Mahatva-शिवलिंग की पूजा का महत्व

शिव पुराण में शिवलिंग की पूजा को अत्यंत श्रेष्ठ माना गया है। यूँ तो शिव जी साकार(महेश्वर) या निराकार (लिंग) दोनों प्रकार के पूजन को अच्छा माना गया है। परन्तु उसमें भी शिव जी के निराकार रूप अर्थात शिवलिंग के पूजन को सवश्रेष्ठ माना गया है।

  • शिवपुराण के अनुसार जो मनुष्य शिवलिंग को विधिपूर्वक स्नान कराकर उस स्नान के जल का तीन बार आचमन करता है उसके कायिक, वाचिक और मानसिक तीनों प्रकार के पाप शीघ्र नष्ट हो जाते हैं।
  • शिव पुराण में बिल्ब-पत्र(बेल-पत्र) को बहुत शुभ माना गया है। इसे स्वयं महादेव का रूप कहा गया है। सम्पूर्ण जगत में जितने भी तीर्थ हैं उनका बिल्ब के मूल में निवास होता है। अतः बिल्ब की मूल का पूजन करने से समस्त तीर्थों के दर्शन के समान फल मिलता है। इसलिए शिव जी की पूजा बिल्ब-पत्र का विशेष महत्व है।
  • शिवलिंग का रोजाना भावपूर्वक जलाभिषेक करने से शनि, राहु, केतु, मंगल आदि ग्रहों से मिलने वाली पीड़ा का निवारण हो जाता है।
  • शिवलिंग का जलभिषेक करने से चन्द्रमा मजबूत होता है। जिन लोगों की कुंडली में चंद्र कमजोर हो या उन्हें किसी भी प्रकार की मानसिक पीड़ा हो उन्हें रोजाना शिवलिंग का जलाभिषेक करना चाहिए।
  • यदि किसी की मारक ग्रह की दशा चल रही हो तो उसे रुद्रभिषेक कराना चाहिए।

शिव तांडव स्तोत्रं

Category: Sprituality Hindi

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