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Somnath Jyotirlinga

Somnath Jyotirlinga Sampurn Jankari Aur Katha

Posted on February 3, 2024February 4, 2024 by santwana

सोमनाथ मंदिर(Somnath Jyotirlinga) द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग हैं।इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था जिसका उल्लेख ऋग्वेद में स्पष्ट है।इसका उल्लेख स्कन्धपुराण, लिंगपुराण और शिवपुराण में भी मिलता है।यह गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बन्दरगाह में स्थित है।

इसके समृद्ध हिंदू इतिहास के दौरान, मुस्लिम और पुर्तगाली विजेताओं ने मंदिर को कई बार नष्ट किया। इतने आक्रमण के बावजूद, यह स्थल अब गुजरात के सबसे लोकप्रिय पर्यटक तीर्थ स्थानों में से एक है। वर्तमान मंदिर का निर्माण 1951 में चालुक्य वास्तुकला शैली में किया गया था। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इस मंदिर के लिए वास्तुशिल्प आदेश दिया था, और यह उनकी मृत्यु के बाद पूरा हुआ।

विषय-सूचि
  1. प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ के प्रादुर्भाव की कथा और महिमा-Somnath Jyotirlinga Katha
  2. सोमनाथ मंदिर की स्थिति-Somnath Jyotirlina Location
  3. सोमनाथ मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय
  4. सोमनाथ मंदिर तक कैसे पहुँचें?
  5. सोमनाथ मंदिर के निकट दर्शनीय स्थल
  6. सोमनाथ मंदिर के बारे में रोचक तथ्य

प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ के प्रादुर्भाव की कथा और महिमा-Somnath Jyotirlinga Katha

शिव पुराण के अनुसार प्रजापति दक्ष की 27 कन्याएं थी जिनका विवाह उन्होंने चन्द्रमा के साथ किया था। चन्द्रमा को पति के रूप में पाकर वह दक्षकन्याएं विशेष शोभा पाने लगी तथा चन्द्रमा भी उन्हें पत्नी के रूप में पाकर शुशोभित होने लगे। चन्द्रमा का अपनी सभी पत्नियों में से रोहिणी के प्रति विशेष स्नेह था। इस कारण से वह अपनी अन्य पत्नियों को अनदेखा करने लगे। इस कारण चन्द्रमा की अन्य पत्नियां अत्यंत दुःखी रहती थी।

वे सभी कन्याएं अपने पिता के पास गई और अपना दुःख बताया। उनकी पीड़ा को सुनकर दक्ष प्रजापति भी अत्यंत दुःखी हुए। और चन्द्रमा के पास जाकर शांतिपूर्वक बोले – हे कलानिधे तुम उत्तम कुल में उत्पन्न हुए हो। तुम्हारे आश्रय में जितनी स्त्रियां हैं उनके प्रति तुम्हारे मन में न्यूनाधिक भाव क्यों है ?तुम किसी को अधिक प्रेम और किसी को कम प्रेम क्यों करते हो ? अभी तक जो हुआ सो हुआ परन्तु आगे से ऐसा विषमतापूर्वक बर्ताव नहीं होना चाहिए, क्योंकि उसे नरक देने वाला बताया गया है।

अपने दामाद चन्द्रमा से ऐसी प्रार्थना करके दक्ष प्रजापति वहां से चले गए। उन्हें पूर्ण विश्वाश था कि चन्द्रमा अब आगे से इस प्रकार का बर्ताव नहीं करेगा। परन्तु चन्द्रमा भाव वश होकर केवल रोहिणी में ही आसक्त रहते थे तथा अपनी अन्य स्त्रियों का आदर नहीं करते थे।

चन्द्रमा के इस बर्ताव से दुःखी होकर दक्ष प्रजापति फिर चन्द्रमा के पास आये और उन्हें अपनी पत्नियों के न्यायोचित व्यवहार करने को कहा।परन्तु चन्द्रमा के व्यवहार में कोई अंतर नहीं आया। यह देख दक्ष प्रजापति को चन्द्रमा के ऊपर अत्यंत क्रोध आया तथा उन्होंने चन्द्रमा को क्षय रोग हो जाने का श्राप दिया। दक्ष के उस श्राप के कारण चन्द्रमा क्षय रोग से पीड़ित हो गए।

चन्द्रमा के क्षीण होते ही सब ओर हाहाकार मच गया। सब देवता और ऋषि सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए। चन्द्रमा किस प्रकार से ठीक होंगे। तब समस्त देवता और ऋषि ब्रह्मा जी की शरण में पहुंचे। ब्रह्मा जी ने कहा- जो हुआ सो हुआ। अब उसे पलटा नहीं जा सकता। अतः उसके निवारण के लिए उत्तम उपाय बताता हूँ। आदरपूर्वक सुनो।

चन्द्रमा देवताओं के साथ प्रभास नामक शुभ क्षेत्र में जाएं और वहाँ महामृत्युंजय मंत्र का विधिपूर्वक अनुष्ठान करते हुए भगवान शिव की अराधना करें । अपने सामने शिवलिंग की स्थापना करके वहाँ चंद्रदेव नित्य तपस्या करें। इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव उन्हें क्षय रहित कर देंगे। तब देवताओं और ऋषियों के कहने पर ब्रह्मा जी की आज्ञानुसार चन्द्रमा ने वहां पर छः मास तक निरंतर तपस्या की। महामृत्युंजय मंत्र से भगवान वृषभध्वज का पूजन किया।

somnath jyotirlinga

दस करोड़ मन्त्र का जप और महामृत्युंजय का ध्यान करते हुए चन्द्रमा वहां स्थिरचित्त होकर लगातार खड़े रहे। उन्हें तपस्या करते देख भक्तवत्सल भगवान शंकर प्रसन्न होकर उनके सम्मुख प्रकट हुए और अपने भक्त चन्द्रमा से बोले-चंद्र देव तुम्हारा कल्याण हो। तुम्हारे मन में जो अभीष्ट हो वह वर मांगो। मैं प्रसन्न हूँ तुम्हें सम्पूर्ण उत्तम वर प्रदान करूंगा।

चंद्र देव ने कहा- यदि आप मुझपर प्रसन्न हैं तो मेरे इस क्षय रोग का निवारण कीजिए। मुझसे जो अपराध बन गया है उसके लिए मुझे क्षमा कीजिए। शिव जी ने कहा-चंद्र देव एक पक्ष में तुम्हारी कला निरंतर क्षीण हो तथा दूसरे पक्ष में वह निरंतर बढ़ती रहे।

इसके पश्चात चन्द्रमा ने भक्ति भाव से भगवान शंकर की स्तुति की। इससे पहले निराकार होते हुए भी वे भगवान शिव फिर साकार हो गए। देवताओं पर प्रसन्न हो उस क्षेत्र के माहात्म्य को बढ़ाने तथा चन्द्रमा के यश का विस्तार करने के लिए भगवान शंकर उन्हीं के नाम पर वहाँ सोमेश्वर कहलाये और सोमनाथ के नाम से तीनों लोकों में विख्यात हुए।

सोमनाथ की उपासना करने से वह उपासक के कोढ़ तथा क्षय आदि रोगों का नाश कर देते हैं। वहीं सम्पूर्ण देवताओं के सोमकुंड की स्थापना की, जिसमें ब्रह्मा और शिव का निवास माना जाता है। चन्द्रकुण्ड भूतल पर पापनाशन तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध है। जो मनुष्य इस कुंड में स्नान करता है वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
जो मनुष्य सोमनाथ के प्रादुर्भाव को सुनता है अथवा दूसरों को सुनाता है, वह सम्पूर्ण अभीष्ट को पाता है और सभी पापों से मुक्त हो जाता है।

सोमनाथ मंदिर की स्थिति-Somnath Jyotirlina Location

सोमनाथ मंदिर गुजरात के सौराष्ट्र जिले में वेरावल के पास प्रभास पाटन के तट पर स्थित है। यह अहमदाबाद से लगभग 400 किमी दक्षिण पश्चिम और जूनागढ़ से 82 किमी दक्षिण में स्थित है – जो गुजरात का एक और महत्वपूर्ण पुरातात्विक और तीर्थ स्थल है। यह वेरावल रेलवे इंटरचेंज से लगभग 7 किमी दक्षिण-पूर्व में, पोरबंदर हवाई अड्डे से लगभग 130 किमी दक्षिण-पूर्व में और दीव हवाई अड्डे से लगभग 85 किमी पश्चिम में स्थित है।

सोमनाथ मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय

अक्टूबर से फरवरी तक सर्दियों के महीने सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर की यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय है, जिसमें तापमान 10 से 28 डिग्री सेल्सियस तक होता है।

सोमनाथ मंदिर तक कैसे पहुँचें?

सोमनाथ मंदिर पश्चिमी भारत में गुजरात राज्य के सोमनाथ या प्रभास पाटन में स्थित है।सोमनाथ अहमदाबाद से लगभग 409 किमी दूर है। जूनागढ़ और सोमनाथ के बीच की दूरी लगभग 94 किमी है।
वेरावल निकटतम रेलवे स्टेशन है और वेरावल से सोमनाथ की दूरी लगभग 6 किमी है। सोमनाथ का निकटतम हवाई अड्डा दीव है, जो लगभग 83 किमी दूर है। केशोद हवाई अड्डा सोमनाथ से 55 km दूर है जो कि 2022 से संचालित है।

सोमनाथ मंदिर के निकट दर्शनीय स्थल

सोमनाथ मंदिर के पास तीन नदियों हिरेन, कपिला और सरस्वती का त्रिवेणी संगम है। इस संगम में स्नान करना अत्यंत शुभ माना जाता है।सोमनाथ के निकट बाढगङ्गा के दर्शन और भालका तीर्थ मंदिर के दर्शन करने चाहिए। ऐसी मान्यता है कि बाढगङ्गा के पास से जरा शिकारी ने श्रीकृष्ण को तीर मारा था। भालका तीर्थ मंदिर के पास ही श्रीकृष्ण ने अपने प्राणों का त्याग किया था।अहिल्या बाई होलकर का मंदिर भी दार्शनीय है। सोमनाथ का समुद्री तट भी शाम के समय घूमने योग्य स्थान है।

Nageshvar Jyotirlinga
Dwarikadheesh
Gomti River Ghaat
Rukmani Devi Mandir

सोमनाथ से द्वारिका धाम 235 km है जहाँ 5-6 घंटे में पहुंच जाते हैं। यहाँ पर गोमती नदी घाट पर भी अवश्य जाना चाहिए। रुक्मणि मंदिर, बड़केश्वर महादेव मंदिर भी दर्शन करना चाहिए। रुक्मणि देवी मंदिर द्वारिकाधीश मंदिर से 3 km दूर है। द्वारिका के लिए कई ट्रेन उपलब्ध हैं। द्वारिका से सबसे करीब का एयरपोर्ट जामनगर का है।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग द्वारिका से लगभग 16 km दूर है जो कि नवां ज्योतिर्लिंग है। बेट द्वारिका के मंदिर में भी अवश्य जाना चाहिए। माना जाता है कि यही वो जगह है जहां श्रीकृष्ण से मिलने सुदामा आए थे और उनकी दरिद्रता खत्म हुई।

सोमनाथ मंदिर के बारे में रोचक तथ्य

भारत में 12 आदि ज्योतिर्लिंग हैं और ऐसा माना जाता है कि सोमनाथ ज्योतिर्लिंग उनमें से प्रथम है। सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के स्थान के बारे में एक बेहद चौंकाने वाला तथ्य है। वहां से लेकर पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुव तक मंदिर स्थित है, वहां कोई जमीन नहीं है।
सोमनाथ मंदिर के निकट भालका तीर्थ वह स्थान भी माना जाता है जहां भगवान कृष्ण ने अपनी सांसारिक लीला समाप्त की थी और अपने निज धाम चले गए थे।

किंवदंती है कि सोमनाथ के मंदिर में स्यंतक मणि नामक एक जादुई पत्थर था जो किसी भी चीज को छूने पर उसे सोने में बदल सकता था।
मंदिर के निर्माण से बहुत पहले, सोमनाथ में कपिला, हिरन और सरस्वती का त्रिवेणी संगम है जिस वजह से इसे प्राचीन काल से तीर्थस्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है।

Category: Sprituality Hindi

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