Trishadaya Bhava-त्रिषडाय भाव
जन्म कुंडली के तीसरे,छठे और ग्यारहवें भाव (3,611)को त्रिषडाय के नाम से जाना जाता है। त्रिषडाय(Trishadaya) का अर्थ होता है-
त्रि(तृतीय भाव) + षड(षष्ठम भाव) + आय(एकादश भाव)
लघु पाराशरी के अनुसार –
सर्वे त्रिकोणनेतारो ग्रहाः शुभफलप्रदाः।
पतयस्त्रिषडायानां यदि पापफलप्रदाः।
कोई भी ग्रह यदि त्रिकोण का स्वामी हो तो शुभफलदायक होता है। तथा यदि त्रिषडाय का स्वामी हो तो पापफलदायक होता है।
पराशर ऋषि ने त्रिषडाय के स्वामी को नकारात्मक कहा है। इसका कारण है – त्रिषडाय में से तीसरा और ग्यारहवां भाव जहाँ काम त्रिकोण में आता है वहीं छठा भाव अर्थ त्रिकोण का है। हमारे ऋषि मुनि अर्थ और कामनाओं को आध्यात्मिक उन्नति के दृष्टिकोण से बहुत अच्छा नहीं मानते थे शायद इसलिए ही इनके स्वामी को अच्छे भावों में नहीं रखा जाता है।
यदि किसी व्यक्ति के पास पराक्रम हो ,शत्रु हो अथवा सदैव आय (लाभ या पैसा) आता रहे तो साधु होने के बाद भी उसके स्वाभाव में कुछ नकारात्मकता आ ही जाती है शायद इसलिए ही इन भावों के स्वामी को नकारात्मक कहा जाता है।