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तुलसी विवाह कैसे करें-Tulsi Vivah Kaise Karen

Posted on November 19, 2023November 19, 2023 by santwana

Tulsi Vivah-तुलसी विवाह 

देवउठान एकादशी के दिन श्री हरि के शालिग्राम रूप के साथ तुलसी विवाह संपन्न कराया जाता है। इस विवाह को पूरे विधि-विधान के साथ के साथ किया जाता है। जो भी इस दिन शालिग्राम के साथ तुलसी जी के साथ कराता है उसपर सदैव भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है। 

इस दिन महिलाएं तुलसी जी को शृंगार का समान अर्पित करती हैं। तुलसी जी को भी दुल्हन की तरह सजाया जाता है। फिर उनका शालिग्राम के साथ विवाह सम्पन्न कराया जाता है। महिलाएं मंगल गीत गाती हैं। 

Table Of Contents
  1. Tulsi Vivah-तुलसी विवाह 
  2. तुलसी विवाह की कथा-Tulsi vivah ki katha
  3. Tulsi Ka Mahatva
    • तुलसी के पौधे का ज्योतिषीय महत्व
  4. Tulsi Ji Ki Aarti-तुलसी जी की आरती

तुलसी विवाह की कथा-Tulsi vivah ki katha

 महर्षि कश्यप की पत्नियों में एक का नाम दनु था। दनु के बहुत से महाबली पुत्र उत्पन्न हुए उनमें से एक का नाम विप्रचित्ति था जो महान बल पराक्रम से संपन्न था। उसका पुत्र दम्भ हुआ जो जितेंद्रिय धार्मिक तथा विष्णु भक्त था जब उसके कोई पुत्र नहीं हुआ तो उसको चिंता हुई उसने शुक्राचार्य को गुरु बना कर उनसे श्री कृष्ण मंत्र प्राप्त किया और पुष्कर में जाकर घोर तप करना आरंभ किया।

उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसको दर्शन दिया तब दंभ ने भगवान विष्णु से उनकी वंदना करके ऐसे वीर पुत्र का वरदान मांगा जो त्रिलोक को जीत ले परंतु देवता उसे पराजित ना कर सके।

कुछ समय पश्चात दंभ की पत्नी गर्भवती हुई और उसके गर्भ में श्री कृष्ण के पार्षदों में अग्रणी सुदामा नामक गोप  प्रविष्ट हुआ। सुदामा को  राधा जी ने  क्रोधित होकर राक्षस कुल में जन्म लेने का श्राप दिया था।

कुछ समय पश्चात दंभ की पत्नी ने एक तेजस्वी बालक को जन्म दिया जिसका नाम शंखचूर्ण रखा गया शंखचूर्णअपने पिता के घर में शुक्ल पक्ष के चंद्रमा की भांति बढ़ने लगा वह बहुत तेजस्वी था अतः उसने बचपन में ही सारी विद्या सीख ली शंखचूर्ण जब बड़ा हुआ तो पुष्कर में जाकर ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए तपस्या करने लगा उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे दर्शन दिया।शंखचूर्ण ने ब्रह्मा जी की वंदना की और और ब्रह्मा जी से वरदान मांगा कि वह देवताओं के लिए अजेय हो जाए तब ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर तथास्तु कहा।

ब्रह्मा जी ने शंखचूर्ण को दिव्य श्री कृष्ण कवच प्रदान किया ब्रह्मा जी ने शंखचूर्ण को आज्ञा दी कि वह बद्री वन को जाए जहां पर धर्म ध्वज की कन्या तुलसी सकाम भाव से तपस्या कर रही है ब्रह्मा जी ने शंखचूड़ को तुलसी से विवाह करने की आज्ञा दी। 

वहीं तुलसी धर्मध्वज जो कि माता लक्ष्मी के परम भक्त थे की कन्या थी। तुलसी पूर्वजन्म में विराजा नाम की एक गोपिका थी जिसे राधा जी के श्राप के कारण पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ा था। जन्म के बाद से ही तुलसी के मन में नारायण को प्राप्त करने की उत्कंठा थी। 

(स्वर्ग के गोलोक में सुदामा और विराजा निवास करती थी। सुदामा विराजा से प्रेम करता था लेकिन विराजा श्री कृष्ण से प्रेम करती थी, एक बार जब विराजा और कृष्ण प्रेम में लीन थे, तो स्वयं राधा वहां प्रकट हो गईं। और राधा ने विराजा को श्रीकृष्ण के साथ देख कर विराजा को गोलोक से पृथ्वी पर निवास करने का श्राप दे दिया और किसी कारणवश राधा जी ने सुदामा को भी पृथ्वी पर निवास करने का श्राप दे दिया। जिससे उन्हे स्वर्ग से पृथ्वी पर आना पड़ा। मृत्यु के पश्चात सुदामा का जन्म राक्षस राजदम्ब के यहां शंखचूर्ण के रूप में हुआ और विराजा का जन्म धर्मध्वज के यहां तुलसी के रूप में हुआ।)

इसलिए नारायण की प्राप्ति हेतु उसने ब्रह्मा जी की तपस्या प्रारम्भ की। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे दर्शन दिए और उसे आज्ञा दी कि वह दानव राज शंखचूर्ण से विवाह कर ले तब ही उसे नारायण की प्राप्ति हो सकती है।

इस प्रकार धर्मध्वज की कन्या तुलसी और दानव राज शंख चूर्ण का विवाह संपन्न हुआ विवाह के पश्चात शंख चूर्ण अपने घर लौट कर आया तो उसे दानवों का अधिपति बना दिया गया।

दानवों का अधिपति बनने के पश्चात राज्य विस्तार की कामना से शंखचूर्ण में देवताओं पर आक्रमण कर कर उनका संघार करना आरंभ कर दिया

उसने समस्त देवलोक पर अपना अधिकार प्राप्त कर लिया तब सारे देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास गए और उन्हें सारी कथा सुनाई तब भगवान विष्णु हंसकर बोले शंख चूर्ण मेरा परम भक्त सुदामा गोप है जिसने राधा के श्राप वश दानव कुल में जन्म लिया है। भगवान शंकर द्वारा उसका वध पूर्व निर्धारित है तब सारे देवता मिलकर भगवान शिव के पास जाकर उनसे शंखचूड़ के वध की प्रार्थना करते हैं।

भगवान शिव शंखचूर्ण से युद्ध करते हैं परंतु जब तक शंखचूर्ण के पास ब्रह्मा जी द्वारा दिया हुआ दिव्य श्रीकृष्ण कवच था और जब तक उसकी पतिव्रता पत्नी तुलसी का सतीत्व अखंडित रहता तब तक वह शंखचूर्ण का वध नहीं कर सकते थे।

अतः भगवान विष्णु एक वृद्ध ब्राह्मण का रूप धरकर शंखचूर्ण के पास भिक्षा मांगने जाते हैं और शंख चूर्ण से वचन लेते हैं  कि जब वह भिक्षा देने का वचन देगा तभी वह क्या भिक्षा चाहिए अन्यथा नहीं बताएगा। अतः शंखचूर्ण उसे वचन दे देता है। 

वह वृद्ध ब्राह्मण भिक्षा में वह दिव्य कवच मांग लेता है जिसे शंखचूर्ण उसे दे देता है। इसके पश्चात भगवान विष्णु शंखचूर्ण का रूप धारण करके तुलसी के पास पहुंचे जहाँ पर तुलसी ने उन्हें अपना पति शंखचूर्ण समझकर उनका पूजन किया बातें की और रमण किया। तभी उनके रूप से तुलसी को यह एहसास हो गया कि यह उनका पति नहीं अपितु कोई और है। 

उधर जैसे ही विष्णु जी तुलसी के सतीत्व को नष्ट करते है शिव जी अपने त्रिशूल द्वारा उसका वध कर देते हैं। वध के पश्चात् उसे श्राप से मुक्ति मिल जाती है और उसे पहले की भांति श्री कृष्ण के पार्षद रूप की प्राप्ति हो जाती है और उसके शरीर की राख से शंख जाति का प्रादुर्भाव हुआ जिस शंख का जल शंकर जी अतिरिक्त अन्य सभी देवताओं के लिए प्रशस्त माना जाता है। 

तब तुलसी ने क्रोधित होकर पूछा कि तू कौन है जिसने मेरे सतीत्व को नष्ट कर दिया। तब भगवान विष्णु उसके समक्ष अपने असली रूप को प्रकट करते है। तब तुलसी क्रोधित होकर भगवान विष्णु को यह श्राप देती है कि जिस प्रकार से आपका ह्रदय पाषाण का हो गया है आप भी पाषाण में बदल जाएं। 

तब भगवान शिव उसके समक्ष प्रकट होकर उसे समझाते है कि तुमने जिस मनोरथ को लेकर तप किया था वह भला अन्यथा कैसे जा सकता है। यह उसी तपस्या का फल है। अब तुम दिव्य देह धारण कर लक्ष्मी जी के समान वैकुण्ठ में विहार करती रहो। 

तुम्हारा यह शरीर प्राण त्यागने के पश्चात् नदी के रूप में परिवर्तित हो जायेगा। वह नदी भारतवर्ष में पुण्यरूपा गंडकी के नाम से प्रसिद्ध होगी। कुछ काल के पश्चात् मेरे वर के प्रभाव से देव पूजन सामग्री में तुलसी का प्रधान स्थान हो जायेगा। तुम स्वर्गलोक में,मृत्युलोक में तथा पाताललोक में सदा ही श्री हरि के निकट निवास करोगी और पवित्र तुलसी का वृक्ष बन जाओगी। 

उधर जो तुम्हारा नदी रूप होगा वह पुण्य प्रदान करने वाला होगा और वह श्री हरि के अंशभूत लवणसागर की पत्नी बनेगा। तथा श्रीहरि भी तुम्हारे श्रापवश पत्थर का रूप धारण कर भारत में गण्डकी नदी के जल में निवास करेंगे। वहाँ तीखी दाढ़ वाले कीड़े पत्थर को काटकर उसमें शंख की आकृति बनाएंगे। उसके भेद से वह अत्यंत पुण्य प्रदान करने वाली शालिग्राम शिला कहलाएगी। 

devuthan ekadashi tulsi vivah तुलसी विवाह

उसे लक्ष्मीनारायण के नाम से भी जाना जायेगा। विष्णु जी की शालिग्राम शिला और वृक्षस्वरूपणी तुलसी का समागम सदा अनुकूल तथा बहुत प्रकार के पुण्यों की वृद्धि करने वाला होगा। 

जो व्यक्ति शालिग्राम शिला के ऊपर से तुलसीपत्र को दूर करेगा उसे पत्नीवियोग सहना पड़ेगा और जो शंख को दूर करके तुलसी पत्र को हटायेगा उसे भी भार्याहीन होना पड़ेगा। जो लोग शालिग्राम शिला,तुलसी और शंख को एकत्रित करके उनकी रक्षा करते हैं वे सदैव ही श्री हरि को प्यारे होते हैं। 

Tulsi Ka Mahatva

तुलसी के पौधे का ज्योतिषीय महत्व

तुलसी के पौधे का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। जहाँ कहीं भी तुलसी का पौधा लगा होता है वहाँ पर सकारात्मक ऊर्जा होती है तथा तुलसी के पौधे लगाने से बहुत बड़े-बड़े वास्तु सम्बन्धी दोष नष्ट हो जाते है।
ज्योतिष शास्त्र में तुलसी के पौधे को बुध ग्रह से जोड़कर देखा जाता है। अतः यदि कुंडली में बुध कमजोर हो तो तुलसी और भगवान श्री कृष्ण की पूजा करें और भगवान श्री कृष्ण को तुलसी पत्र अर्पित करें।
यदि किसी बच्चे में कंसंट्रेशन की कमी हो तो उसे सफ़ेद या लाल धागे में तुलसी की जड़ रविवार के दिन पहनाएं।

Tulsi Ji Ki Aarti-तुलसी जी की आरती

वैसे तो सम्पूर्ण कार्तिक मास में तुलसी जी की आरती करनी चाहिए। परन्तु Tulsi Vivah के पश्चात तुलसी जी की आरती अवश्य करें।

जय जय तुलसी माता,मैया जय तुलसी माता ।
सब जग की सुख दाता,सबकी वर माता ॥
जय जय तुलसी माता……..

सब योगों से ऊपर,सब रोगों से ऊपर ।
रज से रक्षा करके,सबकी भव त्राता ॥
जय जय तुलसी माता……..

बटु पुत्री है श्यामा,सुर बल्ली हे ग्राम्या ।
विष्णुप्रिये जो तुमको सेवे,सो नर तर जाता
जय जय तुलसी माता……..

हरि के शीश विराजत,त्रिभुवन से हो वन्दित।
पतित जनों की तारिणी,तुम हो विख्याता।
जय जय तुलसी माता……..

लेकर जन्म विजन में,आई दिव्य भवन में ।
मानव लोक तुम्हीं से,सुख-संपति पाता ॥
जय जय तुलसी माता……..

हरि को तुम अति प्यारी,श्याम वर्ण सुकुमारी ।
प्रेम अजब है उनका,तुमसे कैसा नाता ॥
हमारी विपद हरो तुम,कृपा करो माता ॥
जय जय तुलसी माता……..

जय जय तुलसी माता,मैया जय तुलसी माता ।
सब जग की सुख दाता,सबकी वर माता ॥
जय जय तुलसी माता……..

Category: Sprituality Hindi, Festival

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