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Vakri Grah

Vakri Graha|Grah Kab Vakri Hote Hai-वक्री ग्रह क्या होते हैं

Posted on June 24, 2023August 22, 2023 by santwana

Vakri Graha | Retrograde Planet

जब कोई ग्रह अपनी सामान्य गति की दिशा से उल्टा चलता हुआ प्रतीत होता है तो उसे वक्री ग्रह कहते हैं। सूर्य और चन्द्रमा को छोड़ शेष सभी ग्रह वक्री होते हैं। राहु-केतु हमेशा वक्री होते हैं।

ग्रहों के वक्री होने के कारण इन्हें एक विशेष प्रकार बल प्राप्त होता है जिसे चेष्टाबल कहते हैं। वक्री ग्रह सामान्य ग्रह से ज्यादा बली होते हैं।

विषय-सूचि
  1. Graha Vakri(Retrograde Planet) Kyon Hote Hai-ग्रह वक्री क्यों होते हैं 
    • Inner Planets-आंतरिक ग्रह 
    • Outer Planets-बाह्य ग्रह
  2. Graha Vakri Kab Hote Hai-ग्रह वक्री कब होते हैं 
    • Retrogression of Inner Planets-आंतरिक ग्रहों का वक्री होना 
    • Retrogression of Outer Planets-बाह्य  ग्रहों का वक्री होना 
  3. Vakri Graha Ke Parinam-वक्री ग्रह के परिणाम
  4. Reference Books-संदर्भ पुस्तकें

Graha Vakri(Retrograde Planet) Kyon Hote Hai-ग्रह वक्री क्यों होते हैं 

सामान्यतः जब हम वक्री ग्रह(Vakri Grah) के विषय में बात करते हैं तो यह मानते हैं की वक्री ग्रह उल्टा चलते हैं जबकि वास्तविकता में वक्री ग्रह उल्टा नहीं चलते अपितु उल्टा चलते हुए दिखाई पड़ते हैं यह महसूस होते हैं। 

ग्रह के वक्री होने की अवधारणा को हम सापेक्ष गति के द्वारा आसानी से समझ सकते हैं। उदहारण के लिए यदि हम किसी रेलगाड़ी में यात्रा कर रहे हों और हमारे साथ वाली पटरी पर दूसरी रेलगाड़ी चल रही हो जो हमारी दिशा में ही जा रही हो परन्तु जिसकी गति हमारी रेलगाड़ी से कम हो ऐसा प्रतीत होता है कि वह विपरीत दिशा में जा रही है, जबकि वास्तविकता में ऐसा नहीं होता है। 

यही वक्री ग्रह की स्थिति में भी होता है। हम जानते हैं हैं की सभी ग्रहों की गति में असमानता है। कुछ ग्रहों की गति हमारी पृथ्वी से ज्यादा है तो कुछ की गति पृथ्वी से कम। 

हमारे सौरमंडल में ग्रहों को दो भाग में बांटा गया है- आंतरिक ग्रह और बाह्य ग्रह। 

Inner Planets-आंतरिक ग्रह 

जो ग्रह सूर्य और पृथ्वी के मध्य स्थित हैं अर्थात जिनकी कक्षा पृथ्वी की कक्षा से छोटी है, उन्हें आंतरिक ग्रह कहते हैं। जैसे – बुध और शुक्र। आंतरिक ग्रहों का कक्षीय वेग पृथ्वी के कक्षीय वेग से ज्यादा है। 

Outer Planets-बाह्य ग्रह

जो ग्रह पृथ्वी की कक्षा के बाहर हैं अर्थात जिनकी कक्षा पृथ्वी की कक्षा से बड़ी है उन्हें बाह्य ग्रह कहते हैं। जैसे – मंगल, बृहस्पति और शनि। बाह्य ग्रहों का कक्षीय वेग पृथ्वी के कक्षीय वेग से कम होता है। 

Revoluion Speed Of  Planets-Grahon Ka Parikraman Kaal
Revoluion Speed Of Planets

Graha Vakri Kab Hote Hai-ग्रह वक्री कब होते हैं 

कोई ग्रह जब पृथ्वी के अत्यन्त समीप होता है तब वक्रीय होता है। 

Retrogression of Inner Planets-आंतरिक ग्रहों का वक्री होना 

सूर्य और पृथ्वी की कक्षा के अंदर परिक्रमा करने वाले दो ग्रह बुध और  शुक्र हैं। हम जानते हैं कि आंतरिक ग्रहों का परिक्रमण काल पृथ्वी के परिक्रमण काल से काफी कम होता है। बुध का परिक्रमण काल मात्र 88 दिन का होता है जबकि शुक्र का परिक्रमण काल 224. दिन का होता है। 

हम यहाँ पर बुध ग्रह के उदहारण से आंतरिक ग्रहों के वक्री होने को समझते हैं। बुध का परिक्रमण काल जहां 88 दिन का है वही पृथ्वी को सूर्य की परिक्रमा करने में 365 दिन लगते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि जितने समय में पृथ्वी अपनी एक परिक्रमा पूरी करती है उतने समय में बुध अपनी चार परिक्रमा पूर्ण कर लेता है। 

इस कारण बुध की कोणीय गति पृथ्वी की अपेक्षा काफी अधिक है। अतः हम पृथ्वी को स्थिर मानकर बुध को पृथ्वी से सम्बंधित कोणीय गति से चलायमान मानकर सूर्य के चारों ओर परिक्रमा कराते हुए इसका विश्लेषण कर सकते हैं –

Antrik Vakri Graha
Antrik Vakri Graha

उपरोक्त चित्र में सबसे बाहरी वृत्त भचक्र है। उसके अंदर वाला वृत्त पृथ्वी का परिक्रमण पथ है। सबसे अंदर वाला परिक्रमण पथ बुध ग्रह का है और सूर्य केंद्र में हैं। ये दोनों ही ग्रह वामावर्त दिशा में चल रहें हैं। यदि हम बुध के सापेक्ष पृथ्वी को स्थिर मानकर बुध की गति को देखें। E बिंदु पर प्रेक्षक पृथ्वी के केंद्र पर है। 

जब बुध ग्रह बिंदु P1 पर होगा तब गोचर में वह नक्षत्र A के ऊपर गति करता दिखाई  देगा,  जब बुध ग्रह बिंदु P2 पर होगा तब गोचर में वह नक्षत्र B के ऊपर गति करता दिखाई  देगा,  जब बुध ग्रह बिंदु P3 पर होगा तब गोचर में वह नक्षत्र C के ऊपर गति करता दिखाई  देगा

जब बुध ग्रह बिंदु P4  पर होगा तब गोचर में वह नक्षत्र D के ऊपर गति करता दिखाई  देगा, जब बुध ग्रह बिंदु P5 पर होगा तब गोचर में वह नक्षत्र E के ऊपर गति करता दिखाई  देगा, जब बुध ग्रह बिंदु P6 पर होगा तब गोचर में वह नक्षत्र F के ऊपर गति करता दिखाई  देगा तथा जब बुध ग्रह बिंदु P7 पर होगा तब गोचर में वह नक्षत्र G के ऊपर गति करता दिखाई  देगा। 

परन्तु यही बुध ग्रह आगे गति करते हुए  P8 पर आएगा तो पुनः यह नक्षत्र F के ऊपर गति करता दिखाई  देगा तथा जब P9 पर होगा तो नक्षत्र E के ऊपर गति करता दिखाई  देगा। इस समय पृथ्वी पर खड़े प्रेक्षक को यह मेहसूस होगा कि बुध ग्रह विपरीत दिशा में गति कर रहा है जबकि वास्तव में ऐसा नहीं होता। 

यही घटना ग्रहों का वक्री होना कहलाती है। यह घटना उसी समय होती है जब ग्रह पृथ्वी के समीप होता है।

Retrogression of Outer Planets-बाह्य  ग्रहों का वक्री होना 

 पृथ्वी की कक्षा के बाहर परिक्रमा करने वाले  ग्रह मंगल, बृहस्पति और शनि  हैं। हम जानते हैं कि बाह्य ग्रहों का परिक्रमण काल पृथ्वी के परिक्रमण काल से काफी अधिक होता है। मंगल का परिक्रमण काल मात्र 88 दिन का होता है , बृहस्पति का 12 वर्ष तथा शनि का परिक्रमण काल 29.5 वर्ष का होता है। 

हम यहाँ पर बृहस्पति ग्रह के उदहारण से बाह्य ग्रहों के वक्री होने को समझते हैं। बृहस्पति का परिक्रमण काल जहां 12 वर्ष का है वही पृथ्वी को सूर्य की परिक्रमा करने में 1 वर्ष (365) दिन लगते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि जितने समय में बृहस्पति अपनी एक परिक्रमा पूरा करता है उतने समय में पृथ्वी अपनी बारह परिक्रमा पूर्ण कर लेती है। 

इस कारण पृथ्वी की कोणीय गति का बृहस्पति की अपेक्षा काफी अधिक होना है। अतः हम बृहस्पति को स्थिर मानकर पृथ्वी को बृहस्पति से सम्बंधित कोणीय गति से चलायमान मानकर सूर्य के चारों ओर परिक्रमा कराते हुए इसका विश्लेषण कर सकते हैं –

Antrik Vakri Graha
Bahya Vakri Graha

उपरोक्त चित्र में सबसे बाहरी वृत्त भचक्र है। उसके अंदर वाला वृत्त बृहस्पति का परिक्रमण पथ है। सबसे अंदर वाला परिक्रमण पथ पृथ्वी का है और सूर्य केंद्र में हैं। ये दोनों ही ग्रह वामावर्त दिशा में चल रहें हैं। यदि हम पृथ्वी के सापेक्ष बृहस्पति को स्थिर मानकर पृथ्वी की गति को देखें। E बिंदु पर प्रेक्षक बृहस्पति के केंद्र पर है। 

जब प्रेक्षक बिंदु P1 पर होगा तब बृहस्पति बिंदु A  पर दिखाई  देगा,  जब  प्रेक्षक बिंदु P2 पर होगा तब बृहस्पति बिंदु B पर दिखाई  देगा,  जब  प्रेक्षक बिंदु P3 पर होगा तब बृहस्पति बिंदु C पर दिखाई  देगा,  जब  प्रेक्षक बिंदु P4  पर होगा तब बृहस्पति बिंदु D पर दिखाई  देगा, जब बुध ग्रह बिंदु P5 पर होगा तब बृहस्पति बिंदु E पर दिखाई  देगा, जब  प्रेक्षक बिंदु P6 पर होगा तब बृहस्पति बिंदु F पर दिखाई  देगा तथा जब  प्रेक्षक बिंदु P7 पर होगा तब बृहस्पति बिंदु G पर दिखाई  देगा। 

परन्तु जब यही प्रेक्षक पृथ्वी की गति के कारण  P8 पर आएगा तो पुनः बृहस्पति बिंदु F पर दिखाई  देगा तथा जब P9 पर होगा तो बिंदु E पर दिखाई  देगा। इस समय पृथ्वी पर खड़े प्रेक्षक को यह मेहसूस होगा कि बुध ग्रह विपरीत दिशा में गति कर रहा है जबकि वास्तव में ऐसा नहीं होता। 

यही घटना ग्रहों का वक्री होना कहलाती है। यह घटना उसी समय होती है जब ग्रह पृथ्वी के समीप होता है।

Vakri Graha Ke Parinam-वक्री ग्रह के परिणाम

वक्री ग्रह को वक्रत्व के कारण एक बल प्राप्त होता है जिसे चेष्टा बल कहते हैं। जो ग्रह पृथ्वी के समीप होते हैं वही वक्री होते हैं क्योंकि उनका पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण अधिक हो जाता है।
वक्री ग्रह में सामान्य से अधिक बल होता है। कुंडली में स्थिति के अनुसार वक्री ग्रह शुभ-अशुभ फल प्रदान करते हैं।

Reference Books-संदर्भ पुस्तकें

  • Brihat Parashara Hora Shastra –बृहत पराशर होराशास्त्र
  • Phaldeepika (Bhavartha Bodhini)–फलदीपिका
  • Saravali–सारावली

Astrology Books In HIndi, Astrology Books In English

Category: Astrology Hindi

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