भवसागर तारण कारण हे ।रविनन्दन बन्धन खण्डन हे ॥
शरणागत किंकर भीत मने ।गुरुदेव दया करो दीनजने ॥१॥
भवसागर तारण कारण हे ।रविनन्दन बन्धन खण्डन हे ॥
शरणागत किंकर भीत मने ।गुरुदेव दया करो दीनजने ॥१॥
नागों के भारतीय संस्कृति में महत्व को इस बात से समझा जा सकता है कि नागों के लिए नाग पंचमी नामक पर्व मनाया जाता है। इस पर्व में नागों की पूजा और आराधना की जाती है।भारत में अनेक नाग मंदिर है जिनमें से नागचंद्रेश्वर उज्जैन, नागकूप काशी , मन्नारशाला केरला आदि प्रमुख हैं। इस लेख के माध्यम से हम भारत के प्रमुख नाग मंदिरों (Nag Temples) की जानकारी देंगे।
Nag Panchami हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहारों में से है। हिन्दू पंचांग के अनुसार सावन माह की कृष्ण पक्ष के पंचमी को नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन नाग देवता या सर्प की पूजा की जाती है और उन्हें दूध से स्नान कराया जाता है।
Shri Krishnashtakam Hindi Meaning-श्री कृष्णाष्टकम हिंदी अर्थ
भजे व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं,
स्वभक्तचित्तरञ्जनं सदैव नन्दनन्दनम् ।
सुपिच्छगुच्छमस्तकं सुनादवेणुहस्तकं,
अनंगरंगसागरं नमामि कृष्णनागरम् ॥ १ ॥
Ekadashi Vrat Ka Khana
हिंदू पञ्चाङ्ग की ग्यारहवीं तिथि को एकादशी कहते हैं। यह तिथि मास में दो बार आती है – पूर्णिमा में उपरान्त कृष्ण पक्ष की एकादशी और अमावस्या के उपरान्त शुक्ल पक्ष की एकादशी इन दोनों प्रकार की एकादशियोँ का हिन्दू धर्म में बहुत महत्त्व है।
एकादशी के दिन व्रत रखना बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन अन्न का निषेध होता है विशेषकर चावल का। जो लोग व्रत नहीं भी रखते हैं उन्हें भी इस दिन चावल नहीं खाना चाहिए।
भारतीय संस्कृति में सूर्य अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। हमारे कई महत्वपूर्ण त्यौहार सूर्य के ऊपर आधारित हैं। जैसे मकर संक्रांति का पर्व सम्पूर्ण उत्तर भारत में अत्यंत हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन सूर्य देव उत्तरायण होते हैं। मकर संक्रांति को ही भारत के अन्य हिस्सों जैसे तमिलनाडु में पोंगल; कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में संक्रांति ,बिहार के कुछ जिलों में यह पर्व ‘तिला संक्रांत’ कहा जाता है। मकर संक्रान्ति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायण भी कहते हैं। उत्तर प्रदेश में इसे खिचड़ी भी कहा जाता है।
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। गुरु पूर्णिमा भारतवर्ष की महान गुरु शिष्य परम्परा को समर्पित पर्व है। यह दिन गुरु और शिष्य दोनों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इस दिन शिष्य अपने गुरु का पूजन और वंदन कर उनके द्वारा प्रदान किए ज्ञान के प्रति आभार प्रकट करते हैं।
तीनों शरीर को पुनः 5 कोशों पंचकोश(panchkosh) में विभक्त किया गया है।
अन्नमय कोश
प्राणमय कोश
मनोमय कोश
विज्ञानमय कोश
आनन्दमय कोश
ॐ जय लक्ष्मी माता मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशदिन सेवत हरि विष्णु विधाता।
।।ॐ जय लक्ष्मी माता।।
उमा रमा ब्रह्माणी तुम ही जगमाता।
सूर्य चन्द्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता।
।।ॐ जय लक्ष्मी माता।।
Vinay Chalisa Baba Neem Karori
मैं हूँ बुद्धि मलीन अति । श्रद्धा भक्ति विहीन ॥
करूँ विनय कछु आपकी । हो सब ही विधि दीन ॥
॥ चौपाई ॥
जय जय नीब करोली बाबा । कृपा करहु आवै सद्भावा ॥
कैसे मैं तव स्तुति बखानू । नाम ग्राम कछु मैं नहीं जानूँ ॥
जापे कृपा द्रिष्टि तुम करहु । रोग शोक दुःख दारिद हरहु ॥
तुम्हरौ रूप लोग नहीं जानै । जापै कृपा करहु सोई भानै ॥4॥