हिन्दू धर्म में सूर्य पूजा(Surya Puja) का अत्यधिक महत्व है। सूर्य का प्रकाश ही इस सृष्टि में ऊर्जा का मुख्य स्तोत्र है। सूर्य के प्रकाश द्वारा ही पृथ्वी पर उपस्थित समस्त जीव-जंतुओं और वनस्पतियों का पोषण होता है। पृथ्वी पर जीवन के लिए सूर्य का प्रकाश अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके बिना पृथ्वी पर जीवन संभव ही नहीं है।
Surya Puja ka Pauranik Mahatava-सूर्य भगवान की पूजा का महत्व
- आदित्य ह्रदय स्त्रोत(aditya hridaya stotra) का पाठ करके भगवान श्री राम ने रावण का वध किया और विजय प्राप्त की।
- ऐसी कथा प्रसिद्ध है कि भगवान श्री राम रावण की अतुल शक्ति व पराक्रम को सुनकर हतप्रभ रह गये। जब श्रीराम ने यह सुना की महाअसुर रावण ने तो अमृत चख रखा है। उसकी मृत्यु किसी भी अस्त्र-शस्त्र देव दानव द्वारा नहीं हो सकती तो भगवान श्री राम कुछ क्षणों के लिए अपने देवत्व को भूलकर निरुत्साहित होकर चिंतित हो उठे की ऐसे दुर्गम्य, महाबलशाली राक्षस राज रावण का वध कैसे कर पाएंगे और किस प्रकार से सीता जी को उनके चंगुल से छुड़ा पाएंगे।
- भगवान श्री राम के उदास होने पर सारी वानर सेना हतोत्साहित व निराश हो गई। ऐसे में दक्षिण प्रदेश के एक पठार पर अचानक अगस्त्य ऋषि प्रकट हुए और भगवान श्रीराम को आदित्य ह्रदय स्त्रोत पढ़ने को कहा इस स्त्रोत का 3 बार पाठ करते ही भगवान श्रीराम को सूर्य देवता की कृपा से अदम्य उत्साह, आत्मविश्वास एवं नवीन शक्ति का संचार हुआ। वह विशेष इस स्फूर्ति से शत्रु नाश हेतु उद्यत हो उठे। बाल्मीकि रामायण युद्ध कांड में इस संपूर्ण प्रसंग का वर्णन मिलता है।
- भगवान सूर्य के आशीर्वाद से ही कुंती को कर्ण पुत्र के रूप में मिला था तथा वानर राज ऋक्षराज को सुग्रीव पुत्र रूप में मिले।
- भगवान सूर्य की उपासना करते सत्रजीत ने स्यमन्तक मणि प्राप्त की थी।
- धर्मराज ने भगवान सूर्य पूजा करके अक्षय पात्र को प्राप्त किया था जिसका प्रयोग वह अपने अतिथियों को भोजन कराने के लिए करते थे।
- स्कंद पुराण के अनुसार व्यक्ति को सुख और कल्याण के लिए भगवान सूर्य की उपासना करनी चाहिए।
- साम्ब पुराण के अनुसार जाम्बवती के पुत्र साम्ब ने अपने कुष्ठ रोग को भगवान सूर्य की उपासना करके दूर किया था।
- मयूर भट्ट ने भगवान सूर्य की उपासना करके अपने आप को कुष्ठ रोग से रोग मुक्त किया था। उन्होंने सूर्य शतकं की रचना की थी।
Surya Puja Ka Jyotishiya Mahatva-सूर्य पूजा का ज्योतिषीय महत्व
ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को राजा की पदवी प्राप्त है। सूर्य को प्रथम भाव का स्थिर कारक सूर्य है। कुंडली में अच्छा सूर्य अच्छे स्वास्थ्य का द्योतक होता है।
सूर्य आत्मा, शक्ति, बल, प्रभाव, गर्मी, अग्नि तत्व, धैर्य, राजा , कटुता, आक्रामकता, पिता, अभिरुचि, ज्ञान, हड्डी, प्रताप, पाचन शक्ति, उत्साह, वन प्रदेश, आंख, वन भ्रमण, पित्त, नेत्ररोग, शरीर, लकड़ी, मन की पवित्रता, शासन, रोगनाश, देश, सर के रोग, गंजापन, लाल उन, पर्वतीय प्रदेश, पत्थर, प्रदर्शन की भावना, नदी का किनारा, मूँग, लाल चन्दन, चिकित्सा विज्ञान, सोना, ताम्बा, शस्त्र प्रयोग, दवा, समुद्रपार की यात्रा, हृदय आदि का कारक है।
अतः ज्योतिषीय रूप से अच्छे स्वास्थ्य , पिता के सुख, सरकार से लाभ, सरकारी नौकरी आदि के लिए जन्म कुंडली में सूर्य का मजबूत होना आवश्यक है।
Surya Puja Ka Sanskritik Mahatva-सूर्य पूजा का सांस्कृतिक महत्व
भारतीय संस्कृति में सूर्य अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। हमारे कई महत्वपूर्ण त्यौहार सूर्य के ऊपर आधारित हैं। जैसे मकर संक्रांति का पर्व सम्पूर्ण उत्तर भारत में अत्यंत हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन सूर्य देव उत्तरायण होते हैं। मकर संक्रांति को ही भारत के अन्य हिस्सों जैसे तमिलनाडु में पोंगल; कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में संक्रांति ,बिहार के कुछ जिलों में यह पर्व ‘तिला संक्रांत’ कहा जाता है। मकर संक्रान्ति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायण भी कहते हैं। उत्तर प्रदेश में इसे खिचड़ी भी कहा जाता है।
बिहार में दीपावली के पश्चात कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को छठ पूजा होती है जोअत्यंत प्रसिद्ध है। छठ पूजा चार दिवसीय पर्व है जिसमें माताएं अपने पुत्र के लिए व्रत रखती हैं और सूर्य देव का पूजन करती हैं।
SAPTA SAPTIH – SURYA BHAGAVAN-सप्त सप्ति सूर्य भगवान
Surya Dev Ke Saat Ghode-सात घोड़े
भविष्य पुराण के अनुसार सूर्य भगवान के सात घोड़े हैं( सात किरणें)।
जिनके नाम हैं- जया, अजया, विजया, जीत प्राण जीत कर्मा, मनोजपा, जीतक्रोध।
जया- पहली किरण से दृढ़ विश्वास मानसिक और शारीरिक शक्ति दूसरों का अच्छाई और परोपकार की भावना आती है।
अजया-इस किरण से दया शांति बुद्धिमता और आंतरिक समझ मिलती है।
विजया-इसे पढ़ने की आदत सोच और आध्यात्मिकता मिलती है
जीत प्राण-गहरी सोच अत्यधिक दयालु
जीत कर्म- अनुशासन अत्यधिक ज्ञान और वैज्ञानिक मूल्यांकन
मनोजप- समर्पण और भक्ति इमानदारी और सत्य का रास्ता
जीत क्रोध- गहराई से मूल्यांकन कलात्मक सौंदर्य का बोध
Surya Dev Ke Rath Ke Saat Chhand-सात छंद
गायत्री, जागृति, उष्णिक, त्रिष्टुप, अनुष्टुप, पंक्ति छः घोड़े बने। बृहती छंद रथ के बीच की गद्दी बना। सूर्य देव छंदों के रथ पर सवार होकर अंतरिक्ष की यात्रा करते हैं।
Surya Dev Ki Saat Kirine-सात किरणें
सूर्य देव की ग्रह-संज्ञक सात किरणें हैं- सुषुम्ना, सुरादना, उदन्वसु /सयंद्वसु, विश्वकर्मा, उदावसु, विश्वरुचा/अखराट, हरिकेश
सुषुम्ना रश्मि चन्द्रमा का पोषण करती है।इसका तेज हजारों किरणों के समान है जो कि चन्द्रमा की सुंदरता का कारण है। सुषुम्ना नामक रश्मि चन्द्रमण्डल को प्रकाशित करती हुई चन्द्र तल से अमृत बिन्दुओ को पृथ्वी तक पहुचाती है।जिनसे जीवन का संचार होता है।जीवन के दृश्य के लिए जड़ अथवा चेतन बिना शरीर पंच महाभूतो के मिश्रण से दृश्य नही हो सकता।
सुरादना इस किरण से चन्द्रमा की उत्पत्ति हुई है।
विश्वकर्मा नामक रश्मि भू तत्व की संचालिका है यह बुध को प्रकाशित एवम् पोषित करती है।
विश्वव्यचा/अखराट जो शुक्र और शनि को पोषित करती है। शुक्र वीर्य का कारक है और शनि मृत्यु का। इसलिए इस किरण की पूजा करने से जीव को लम्बी आयु मिलती है।
उदन्वसु/संयद्वसु तेज की संचालिका होने के कारण मंगल को पोषित करती है।यह किरण मनुष्यों की रक्त सम्बन्धी विकारों से रक्षा करती है और स्वास्थ्य ,तेज और वैभव देती है।
अर्वावसु/उदावसु आकाश तत्व की संचालिका होने से बृहस्पति को पोषित करती है तथा बृहस्पति ग्रह सभी प्राणियों का कल्याण करता है।
हरिकेश नामक रश्मि नक्षत्रो को पोषित करती है।