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Bandau Guru Pad Padum Paraga

Bandau Guru Pad Padum Paraga Hindi Arth-बंदउँ गुरु पद पदुम परागा

Posted on July 1, 2023February 22, 2024 by santwana

यह गुरु वंदना(Guru Vandana) तुलसीदास जी द्वारा रचित श्री रामचरितमानस के बाल काण्ड से ली गई है। इस वंदना में गुरु की महत्ता को बताया गया है। इस गुरु-पूर्णिमा पर इसका पाठ अवश्य करें।

विषय-सूचि
  1. Bandau Guru Pad Padum Paraga Hindi Arth-बंदउँ गुरु पद पदुम परागा हिंदी अर्थ
  2. Guru Vandana Lyrics Image

Bandau Guru Pad Padum Paraga Hindi Arth-बंदउँ गुरु पद पदुम परागा हिंदी अर्थ

दोहा
बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि। 
महामोह तम पुंज जासु बचन रवि कर निकर ॥

मैं उन गुरु महाराज के चरणकमल की वंदना करता हूं, जो कृपा के समुद्र और नर रूप में श्री हरि ही हैं और जिनके वचन महामोह रूपी घने अंधकार का नाश करने के लिए सूर्य किरणों के समूह हैं॥

चौपाई
बंदउँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुवास सरस अनुरागा ॥
अमिअ मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भाव रुज परिवारू ॥

मैं गुरु महाराज के चरण कमलों की रज की वंदना करता हूं, जो सुरुचि (सुंदर स्वाद), सुगंध तथा अनुराग रूपी रस से पूर्ण है। वह अमर मूल (संजीवनी जड़ी) का सुंदर चूर्ण है, जो सम्पूर्ण भव रोगों के परिवार को नाश करने वाला है॥

सुकृति संभु तन विमल विभूती। मंजुल मंगल मोद प्रसूति॥ 
न मन मंजु मुकुल मल हरनी। किएँ तिलक गुन गन बस करनी॥ 

वह रज सुकृति (पुण्यवान्‌ पुरुष) रूपी शिवजी के शरीर पर सुशोभित निर्मल विभूति है और सुंदर कल्याण और आनन्द की जननी है, भक्त के मन रूपी सुंदर दर्पण के मैल को दूर करने वाली और तिलक करने से गुणों के समूह को वश में करने वाली है॥

श्रीगुरु पद नख मनि गन जोती। सुमिरत दिव्य दृष्टि हियँ होती॥
दलन मोह तम सो सप्रकासू। बड़े भाग उर आवइ जासू॥

श्री गुरु महाराज के चरण-नखों की ज्योति मणियों के प्रकाश के समान है, जिसके स्मरण करते ही हृदय में दिव्य दृष्टि उत्पन्न हो जाती है। वह प्रकाश अज्ञान रूपी अन्धकार का नाश करने वाला है, वह जिसके हृदय में आ जाता है, उसके बड़े भाग्य हैं॥

उघरहिं बिमल बिलोचन ही के। मिटिहिं दोष दुख भव रजनी के॥
सूझहिं  राम चरित मनि मनिक। गुपुत प्रकट जहँ जो जेहि खानिक॥

उसके हृदय में आते ही हृदय के निर्मल नेत्र खुल जाते हैं और संसार रूपी रात्रि के दोष-दुख मिट जाते हैं एवं श्री रामचरित्र रूपी मणि और माणिक्य, गुप्त और प्रकट जहां जो जिस खान में है, सब दिखाई पड़ने लगते हैं।

दोहा
जथा सुअंजन अंजि दृग साधक सिद्ध सुजान।
कौतुक देखत सैल बन भूतल भूरि निधान॥

जैसे सिद्धांजन को नेत्रों में लगाकर साधक, सिद्ध और सुजान पर्वतों, वनों और पृथ्वी के अंदर कौतुक से ही बहुत सी खानें देखते हैं॥

गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन। नयन अमिअ दृग दोष बिभंजन॥
तेहिं करि बिमल बिबेक बिलोचन। बरनउं राम चरित भव मोचन॥

श्री गुरु महाराज के चरणों की रज कोमल और सुंदर नयनामृत अंजन है, जो नेत्रों के दोषों का नाश करने वाला है। उस अंजन से विवेक रूपी नेत्रों को निर्मल करके मैं संसाररूपी बंधन से छुड़ाने वाले श्री रामचरित्र का वर्णन करता हूं॥

Guru Vandana Lyrics Image

Guru Vandana-Bandau Guru Pad Padum Paraga
Guru Vandana-बंदउँ गुरु पद कंज
Category: Stotra/ Stuti

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