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Ya Kundendu Tushara Hara Dhavala

Saraswati Vandana Ya Kundendu Tushara Hara Dhavala Hindi Meaning

Posted on February 7, 2024February 24, 2024 by santwana

Ya Kundendu Tushara Hara Dhavala Lyrics–या कुन्देन्दुतुषारहारधवला लिरिक्स

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवः सदा पूजिता
सा मां पातु सरस्वति भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥१॥

दोर्भिर्युक्ता चतुर्भिः स्फटिकमणिनिभैरक्षमालान्दधाना
हस्तेनैकेन पद्मं सितमपि च शुकं पुस्तकं चापेरण ।
भासा कुन्देन्दुशङ्खस्फटिकमणिनिभा भासमानाऽसमाना
सा मे वाग्देवतेयं निवसतु वदने सर्वदा सुप्रसन्ना ॥ २ ॥

आशासु राशीभवदङ्गवल्ली- भासेव दासीकृतदुग्धसिन्धुम्‌ ।
मन्दस्मितैर्निन्दितशारदेन्दु वन्देऽरविन्दासनसुन्दरि त्वाम्‌ ॥ ३ ॥

शारदा शारदाम्भोजवदना वदनाम्बुजे ।
सर्वदा सर्वदास्माकं सन्निधिं सन्निधिं क्रियात्‌ ॥ ४॥

सरस्वतीं च तां नौमि वागधिष्ठातृदेवताम्‌ ।
देवत्वं प्रतिपद्यन्ते यदनुग्रहतो जनाः ॥ ५॥

पातु नो निकषग्रावा मतिहेम्नः सरस्वती ।
प्राज्ञेतरपरिच्छेदं वचसैव करोति या ६॥

शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्‌व्यापिनीं
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌ ।
हस्ते स्फाटिकमालिकां च दधतीं पद्मासने संस्थितां
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌ ॥ ७॥

वीणाधरे विपुलमङ्गलदानशीले भक्तार्तिनाशिनि विरञ्चिहरीशवन्द्ये ।
कीर्तिप्रदेऽखिकमनोरथदे महार्हे विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम्‌ ।॥ ८ ॥

श्वेताब्जपूर्णविमलासनसंस्थिते हे श्वेताम्बरावृतमनोहरमञ्जुगात्रे ।
उद्यन्मनोज्ञसितपङ्कजमञ्जुलास्ये विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम्‌ ॥ ९॥

मातस्त्वदीयपदपङ्कज भक्तियुक्ता ये त्वां भजन्ति निखिलानपरान्विहाय ।
ते निर्जरत्वमिह यान्ति कलेवरेण भूवहिन्वायुगगनाम्बुविनिर्मितेन ॥ १० ॥

मोहयन्धकारभरिते हृदये मदीये मातः सदैव कुरु वासमुदारभावे ।
स्वीयाखिलावयवनिर्मलसुप्रभाभिः शीघ्रं विनाशय मनोगतमन्धकारम्‌ ॥ ११ ॥

ब्रह्मा जगत्‌ सृजति पालयतीन्दिरेशः शम्भूर्विनाशयति देवि तव प्रभावैः ।
न स्यात्कृपा यदि तव प्रकटप्रभावे न स्युः कथञ्चिदपि ते निजकार्यदक्षाः ॥ १२ ॥

लक्ष्मीर्मेधा धरा पुष्टिर्गौरी तुष्टिः प्रभा धृतिः।
एताभिः पाहि तनुधिरष्टाभिर्मां सरस्वति ॥ १३ ॥

सरस्वत्ययै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नमः।
वेदवेदान्तवेदाङ्गविद्यास्थानेभ्य एव च ॥ १४ ॥

सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने ।
विद्यारूपे विदालाक्षि विद्यां देहि नमोऽस्तु ते ॥ १५ ॥

यदक्षरं पदं भ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत्‌ ।
तत्सर्व क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि ।॥ १६ ॥

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Ya Kundendu Tushara Hara Dhavala Hindi Meaning–या कुन्देन्दुतुषारहारधवला हिंदी अर्थ

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवः सदा पूजिता
सा मां पातु सरस्वति भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥१॥

जो कुन्दके फूल, चन्द्रमा, बर्फ और हारके समान श्वेत हैं , जो शुभ्र(श्वेत) वस्त्र पहनती है, जिनके हाथ उत्तम वीणासे सुशोभित हैं, जो श्वेत कमलासनपर बैठती है, ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि देव जिनकी सदा स्तुति करते हैं ओर जो सब प्रकार की जडता हर लेती है, वे भगवती सरस्वती मेरा पालन करें ॥ 1 ॥

दोर्भिर्युक्ता चतुर्भिः स्फटिकमणिनिभैरक्षमालान्दधाना
हस्तेनैकेन पद्मं सितमपि च शुकं पुस्तकं चापेरण ।
भासा कुन्देन्दुशङ्खस्फटिकमणिनिभा भासमानाऽसमाना
सा मे वाग्देवतेयं निवसतु वदने सर्वदा सुप्रसन्ना ॥ २ ॥

(देवी सरस्वती को नमस्कार) जिनके चार हाथ हैं ; जिनके एक हाथ में स्फटिक की एक माला है जो मणि की तरह चमकती है, और बाकि दो हाथ में एक शुद्ध सफेद कमल और दूसरे हाथ से एक पुस्तक है, चमेली, चंद्रमा, शंख और स्फिटिक के संयोजन की तरह शुद्ध सफेद चमक के साथ, उनका चमकदार रूप अतुलनीय है, वाणी की देवी वह सदैव मेरे मुख (जीभ) में निवास करें और अपनी कृपा बरसाएं ॥2॥

आशासु राशीभवदङ्गवल्ली- भासेव दासीकृतदुग्धसिन्धुम्‌ ।
मन्दस्मितैर्निन्दितशारदेन्दु वन्देऽरविन्दासनसुन्दरि त्वाम्‌ ॥ ३ ॥

हे कमलपर बैठनेवाली सुन्दरी सरस्वति ! तुम सब दिशाओं पुञ्जीभूत हुई अपनी देहलताकी आभासे ही क्षीर-समुद्रको दास बनाने वालीओर मन्द मुसकान से शरद ऋतु के चन्द्रमाको तिरस्कृत करनेवाली हो, तुमको मैं प्रणाम करता हूँ॥ 3 ॥

शारदा शारदाम्भोजवदना वदनाम्बुजे ।
सर्वदा सर्वदास्माकं सन्निधिं सन्निधिं क्रियात्‌ ॥ ४॥

सरस्वतीं च तां नौमि वागधिष्ठातृदेवताम्‌ ।
देवत्वं प्रतिपद्यन्ते यदनुग्रहतो जनाः ॥ ५ ॥

शरदकाल में उत्पन्न कमलके समान मुखवाली और सब मनोरथों को देनेवाली शारदा सब सम्पत्तियोके साथ मेरे मुखमें सदा निवास करें ॥ 4 ॥
उन वचनकी अधिष्ठात्री देवी सरस्वतीको प्रणाम करता हूँ जिनकी कृपासे मनुष्य देवता बन जाता है ॥5॥

पातु नो निकषग्रावा मतिहेम्न: सरस्वती ।
प्राज्ञेतरपरिच्छेदं वचसैव करोति या ॥६॥

बुद्धिरूपी सोनेके लिए कसौटीके समान सरस्वतीजी, जो केवलः वचनसे ही विद्वान्‌ ओर मूर्खोकी परीक्षा कर देती है, हम लोगों का पालन करें ॥ 6॥

शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्‌व्यापिनीं
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌ ।
हस्ते स्फाटिकमालिकां च दधतीं पद्मासने संस्थितां
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌ ॥ ७॥

जिनका रूप श्वेत है, जो ब्रह्मविचारकी परम तत्व है जो सब संसारमे फैल रही है, जो हाथमे वीणा और पुस्तक धारण किये रहती है, अभय देती है, मूर्खतारूपी अन्धकारको दूर करती है, हाथमें स्फटिकमणिकी माला लिए रहती है, कमलके आसनपर विराजमान होती हैं और बुद्धि देनेवाली है, उन आद्या परमेश्वरी भगवती सरस्वतीकी वन्दना करता हूँ ॥7॥

वीणाधरे विपुलमङ्गलदानशीले भक्तार्तिनाशिनि विरञ्चिहरीशवन्द्ये ।
कीर्तिप्रदेऽखिकमनोरथदे महार्हे विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम्‌ ।॥ ८ ॥

हे वीणा धारण करनेवाली, अपार मङ्गल देनेवाली, भक्तोके दुःख छुडानेवाली, ब्रह्म, विष्णु और शिवसे वन्दित होनेवाली, कीर्ति तथा मनोरथ देनेवाली, पूज्यवरा ओर विद्या देनेवाली सरस्वति ! तुमको नित्य प्रणाम करता हूँ ॥8॥

श्वेताब्जपूर्णविमलासनसंस्थिते हे श्वेताम्बरावृतमनोहरमञ्जुगात्रे ।
उद्यन्मनोज्ञसितपङ्कजमञ्जुलास्ये विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम्‌ ॥ ९॥

हे श्वेत कमलसे भरे हए निर्मल आसनपर विराजनेवाली, श्वेत वस्त्रोंसे ठके सुन्दर शरीरवाली, खुले हुए सुन्दर श्वेत कमलके समान मञ्जुल मुखवाली और विद्या देनेवाली सरस्वति ! तुमको नित्य प्रणाम करता हूँ ! ॥9॥

मातस्त्वदीयपदपङ्कज भक्तियुक्ता ये त्वां भजन्ति निखिलानपरान्विहाय ।
ते निर्जरत्वमिह यान्ति कलेवरेण भूवहिन्वायुगगनाम्बुविनिर्मितेन ॥ १०॥

हे मातः! जो (मनुष्य) तुम्हारे चरण-कमलोंमें भक्ति रखकर ओर सब देवताओंको छोडकर तुम्हारा भजन करते है, वे पृथ्वी, अग्नि, वायु, आकाश और जल- इन पाँच तत्वोंके बने शरीरसे ही देवता बन जाते है ॥ 10 ॥

मोहयन्धकारभरिते हृदये मदीये मातः सदैव कुरु वासमुदारभावे ।
स्वीयाखिलावयवनिर्मलसुप्रभाभिः शीघ्रं विनाशय मनोगतमन्धकारम्‌ ॥ ११ ॥

हे उदार बुद्धिवाली मां ! मोहरूपी अन्धकारसे भरे मेरे हृदयमे सदा निवास करो ओर अपने सब अङ्गोकी निर्मल कान्तिसे मेरे मनके अन्धकारका शीघ्र नाश करो ॥ 11 ॥

ब्रह्मा जगत्‌ सृजति पालयतीन्दिरेशः शम्भूर्विनाशयति देवि तव प्रभावैः ।
न स्यात्कृपा यदि तव प्रकटप्रभावे न स्युः कथञ्चिदपि ते निजकार्यदक्षाः ॥ १२ ॥

हे देवी ! तुम्हारे ही प्रभावसे ब्रह्माजगत को बनाते हैं, विष्णु पालते हैं और शिव विनाश करते हैं हे प्रकट प्रभावशाली ! यदि इन तीनोपर तुम्हारी कृपा न हो, तो वे किसी प्रकार अपना काम नहीं कर सकते ॥12॥

लक्ष्मीर्मेधा धरा पुष्टिर्गौरी तुष्टिः प्रभा धृतिः।
एताभिः पाहि तनुधिरष्टाभिर्मां सरस्वति ॥ १३ ॥

हे सरस्वति ! लक्ष्मी, मेधा, धरा, पुष्टि, गौरी, तुष्टि, प्रभा, धृति–इन आठ मूर्तियोंसे मेरी रक्षा करो ॥ 13 ॥

सरस्वत्ययै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नमः।
वेदवेदान्तवेदाङ्गविद्यास्थानेभ्य एव च ॥ १४ ॥

सरस्वतीको नित्य नमस्कार है, भद्रकालीको नमस्कार है ओर वेद, वेदान्त, वेदाङ्ग तथा विद्याओंके स्थानोंको प्रणाम है ॥ 14 ॥

सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने ।
विद्यारूपे विदालाक्षि विद्यां देहि नमोऽस्तु ते ॥ १५ ॥

हे महाभाग्यवती ज्ञानस्वरूपा कमलके समान विशाल नेत्रवाली, ज्ञानदात्री सरस्वति ! मुझको विद्या दो, मैं तुमको प्रणाम करता हूँ ॥15॥

यदक्षरं पदं भ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत्‌ ।
तत्सर्व क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि ।॥ १६॥

हे देवि ! जो अक्षर, पद्‌ अथवा मात्रा छूट गयी हो, उसके लिए क्षमा करो ओर हे परमेश्वरि ! प्रसन्न रहो ॥ 16॥

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